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भारत
सेना ने 'ऑपरेशन महादेव' में पहलगाम हमले के बाद 96 दिनों से छिपे लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को मारकर नर्क पहुंचाया गया है. उनकी लोकेशन का पता चल गया और यह कार्रवाई चीनी अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम की बदौलत संभव हो पाई.
पहलगाम में खून की होली खेलने वाले आतंकियों को आखिरकार भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन महादेव' में मार गिराया. इस ऑपरेशन में लश्कर-ए-तैयबा का कुख्यात कमांडर हाशिम मूसा भी शामिल था, जिसे सेना ने मार गिराया. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि पहलगाम हमले के बाद इतनी सुरक्षा व्यवस्था थी कि चप्पे-चप्पे पर जांच हो रही थी. इसके बावजूद ये आतंकी 96 दिनों तक कैसे छिपे रहे?
अब ऐसा क्या बदल गया कि इतने लंबे समय से लापता ये आतंकवादी मिल गए और मारे गए? इसके पीछे एक खास तकनीक है - चीनी अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम. ऑपरेशन महादेव के पीछे की सारी बातें अब सामने आ गई हैं.
ऑपरेशन महादेव की अंदरूनी कहानी: उस कॉल के बाद चिनार कॉर्प्स ने शुरू किया उत्पात
पहलगाम हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं. सूत्रों के अनुसार, भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के ज़रिए आतंकवादियों की तलाश जारी है. ड्रोन, थर्मल इमेजिंग और मानव खुफिया नेटवर्क की मदद से उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है.
इस बीच, एक चौंकाने वाला सुराग मिला - घने जंगल में एक चीनी अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम के सक्रिय होने का संकेत. इस सिस्टम के ज़रिए लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी एन्क्रिप्टेड संदेशों के ज़रिए एक-दूसरे के संपर्क में थे. इसके बाद सेना को पता चल गया कि आतंकवादी किस इलाके में छिपे हैं और उन्होंने तुरंत 'ऑपरेशन महादेव' शुरू कर दिया.
चीनी अल्ट्रा रेडियो संचार क्या है?
चाइनीज़ अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन एक उच्च तकनीक वाली रेडियो संचार प्रणाली है जो उच्च आवृत्ति और अल्ट्रा हाई फ़्रीक्वेंसी (UHF) बैंड का उपयोग करती है. यह तकनीक मज़बूत एन्क्रिप्शन के साथ संचार को सक्षम बनाती है और विशेष रूप से दूरस्थ, पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छी तरह काम करती है.
2026 में इसे 'WY SMS' के नाम से जाना गया और इसका इस्तेमाल आतंकवादी संगठनों के लिए एक सुरक्षित संचार माध्यम के रूप में किया जाने लगा. यह प्रणाली एक चीनी कंपनी द्वारा विकसित की गई थी और कई आतंकवादी समूहों द्वारा इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है. सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, इसकी खासियत यह है कि इसके सिग्नल को जाम करना बेहद मुश्किल है. इसलिए, यह आतंकवादियों का पसंदीदा हथियार बन गया है.
ऑपरेशन महादेव का खेल-परिवर्तक क्षण
जब सुरक्षा एजेंसियों को इस अल्ट्रा रेडियो के सक्रिय होने का संकेत मिला, तो तुरंत 'ऑपरेशन महादेव' शुरू किया गया. ड्रोन और खुफिया सूचनाओं के आधार पर माउंट महादेव इलाके में आतंकियों के ठिकानों पर नज़र रखी गई.
28 जुलाई की सुबह सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर दी. छह घंटे चली मुठभेड़ में एके-47, ग्रेनेड और आईईडी समेत कई हथियार बरामद हुए. ये वही हथियार थे जिनका इस्तेमाल पहलगाम हमले में किया गया था.
सूत्रों ने बताया कि इस ऑपरेशन में अल्ट्रा रेडियो सिस्टम के सिग्नलों से आतंकियों की लोकेशन का पता लगाने में काफी मदद मिली, जिसके चलते उन्हें समय रहते घेरकर मार गिराया जा सका.
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