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भारत
Bihar Election 2025: बिहार चुनाव 2025 में लालू यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी यादव आमने-सामने होने वाले हैं. यहां जानिए पूरा मामला क्या है.
पिछले दो दिनों में तेज प्रताप यादव ने दो महत्वपूर्ण काम किए. पहले उन्होंने विधायक भाई वीरेंद्र के विवादित ऑडियो को लेकर आरजेडी को घेरा. दूसरा लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण काम उन्होंने एक दिन पहले यानी सोमवार को रात के 11 बजे किया. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें सैकड़ों युवाओं की भीड़ उन्हें घेरे खड़ी है और तेजू भैया जिंदाबाद के नारे लगा रही है. आरजेडी से निकाले जाने के बाद अब तक पार्टी के प्रति दोस्ताना रवैया दिखा रहे तेज प्रताप ने इन दो कामों से आने वाले चुनावों से अपनी सियासी रणनीति और ताकत का संकेत दे दिया. साथ ही, इशारों में यह भी बता दिया कि वे पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं.
सामने आएगी लालू कुनबे की कलह
मई, 2025 में खुद पिता लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से निकालने का ऐलान किया था. तब से तेज प्रताप ने पार्टी नेतृत्व को लेकर दोस्ताना रवैया रखा था. वे सीधा हमला करने से परहेज कर रहे थे. पंचायत सचिव के साथ भाई वीरेंद्र की बातचीत के मुद्दे पर उन्होंने पहली बार पार्टी नेतृत्व को सीधी चुनौती दी है. उन्होंने साफ कहा है कि जिस तरह उनके खिलाफ कार्रवाई की गई, भाई वीरेंद्र के खिलाफ भी एक्शन होना चाहिए. जाहिर है, यह चुनौती सीधे तेजस्वी यादव के लिए है. यानी विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ लालू परिवार का अंदरूनी झगड़ा भी सामने आने की संभावना दिखने लगी है.
तेज प्रताप के इशारों की अनदेखी
आरजेडी नेतृत्व के खिलाफ तेज प्रताप का बगावती अंदाज एकबारगी नहीं हुआ. उन्होंने इसका पहला संकेत तब दिया जब उन्होंने महुआ से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. फिर उन्होंने आरजेडी की हरे रंग की टोपी की जगह पीली टोपी पहन ली. टीम तेज प्रताप यादव बनाकर ये इशारा कर दिया कि जरूरत पड़ी तो वे अपना अलग संगठन भी बना सकते हैं. अंततः तेजस्वी यादव को प्रतिक्रिया देनी पड़ी, लेकिन उन्होंने जो कहा, वो ये बताता है कि तेज प्रताप की गतिविधियां आरजेडी के लिए परेशानी का कारण बन रही हैं.
लालू से वैर नहीं, लेकिन तेजस्वी...
तेज प्रताप अब भी अपने भाषणों में लालू यादव को आदर्श और राजनीतिक गुरु बताना नहीं भूलते, लेकिन यह भी याद दिलाते हैं कि कुछ जयचंदों ने उन्हें पार्टी से दूर करने की साजिश रची. उनके सीधे निशाने पर तेजस्वी यादव के करीबी लोग हैं. यदि चुनाव में तेज प्रताप का यही रवैया रहा तो क्या तेजस्वी के करीबी उन पर सीधा हमला नहीं करेंगे. यदि ऐसा हुआ तो परिवार की कलह खुलकर सामने आ जाएगी. इसका नुकसान तेज प्रताप से ज्यादा तेजस्वी को होगा जो चुनाव के बाद बिहार का मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं. इससे भी ज्यादा लालू यादव को होगा जिन्होंने परिवार और पार्टी को बदनामी से बचाने के लिए ही तेज प्रताप के खिलाफ कार्रवाई की थी. यदि चुनावी गरमाहट में आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे तो पार्टी और परिवार के गड़े मुर्दे भी सामने आएंगे, ये तय है.
पहले भी खड़े किए सवाल
2020 में विधानसभा चुनाव से पहले भी तेज प्रताप आक्रामक हुए थे. तब भी उनके निशाने पर तेजस्वी यादव के करीबी नेता ही थे. तेज प्रताप ने पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदानंद सिंह को ही चुनौती दे दी थी. करीब 6 साल पहले उन्होंने लालू राबड़ी मोर्चा बनाया और खुद सारण से ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. ‘लालू-राबड़ी मोर्चा’ के बैनर तले महागठबंधन के उम्मीदवारों के खिलाफ चार प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए थे. साफ कह दिया था कि तेजस्वी ने नहीं सुनी तो 20 सीटों पर महागठबंधन के खिलाफ भी लड़ेंगे. हालांकि, तब यह मामला परिवार में ही सुलझ गया था. इस बार हालात अलग हैं क्योंकि तेज प्रताप पार्टी से बाहर हैं.
यादव वोट बैंक में सेंध का डर
अब सवाल है कि तेज प्रताप कर क्या सकते हैं. लालू की सियासी विरासत के मामले में वो तेजस्वी को चुनौती नहीं दे सकते. इसका फैसला तो उसी दिन हो गया था जब तेजस्वी डिप्टी सीएम और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने थे. ये जरूर है कि खुद को पीड़ित बताकर वे सहानुभूति हासिल कर सकते हैं. युवाओं के बीच तेज प्रताप की अच्छी-खासी लोकप्रियता भी है. ऐसे में चुनाव के दौरान आरजेडी के यादव वोट बैंक पर चोट पहुंच सकती है. यादव वोट बैंक पर आरजेडी की पकड़ कमजोर करने की कोशिश बिहार की हर पार्टी सालों से कर रही है. जाहिर है, ये पार्टियां अंदरखाने तेज प्रताप को शह देंग…
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