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डीएनए एक्सप्लेनर
दुनिया की सबसे बड़ी आईटी और बीपीओ सर्विसेज कंपनियों में शामिल टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने ऐसा ही किया. कंपनी ने अपने वर्कफोर्स में 2 फीसदी कमी करने का ऐलान कर दिया है. 1968 में शुरू हुई टीसीएस में इससे पहले कभी छंटनी नहीं हुई.
यदि किसी कंपनी के 57 साल के इतिहास में कभी छंटनी न हो और वो अचानक 12 हजार लोगों को नौकरी से हटाने का ऐलान कर दे तो चिंता होना लाजिमी है. खासकर तब जबकि वो देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में शामिल हो और प्रतिष्ठित टाटा ग्रुप से जुड़ी हो. दुनिया की सबसे बड़ी आईटी और बीपीओ सर्विसेज कंपनियों में शामिल टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने ऐसा ही किया. कंपनी ने अपने वर्कफोर्स में 2 फीसदी कमी करने का ऐलान कर दिया है. 1968 में शुरू हुई टीसीएस में इससे पहले कभी छंटनी नहीं हुई. कोरोना महामारी के दौरान भी नहीं जब कमोबेश हर सेक्टर में कॉस्ट कटिंग कंपनियों की मजबूरी बन गई और उन्हें छंटनी का फैसला लेना पड़ा. टीसीएस का ये फैसला टेंशन की बात तो है, लेकिन किसके लिए... उन प्रोफेशनल्स के लिए जिन्हें पिंक स्लिप थमाई जा रही है, या टीसीएस के लिए जिसे स्टाफ की कमी के कारण आने वाले प्रोजेक्ट्स को पेंडिंग रखना पड़ सकता है. या फिर ये कहीं देश के आईटी सेक्टर में छंटनी कल्चर की औपचारिक शुरुआत तो नहीं है.
टीसीएस का ये निर्णय किसके लिए बड़ा घाटा है, ये समझने के लिए इसकी वजह जानना जरूरी है. कंपनी ने इस फैसले को अपनी भविष्य के लिए तैयारियों का हिस्सा बताया है. कंपनी ने खुलकर भले नहीं कहा हो, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) है. एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि एआई और ऑटोमेशन के असर से आईटी सेक्टर की दूसरी कंपनियों को भी आने वाले दिनों में ऐसे फैसले लेने पड़ सकते हैं. इससे ये तो स्पष्ट है कि तकनीक-आधारित आईटी इंडस्ट्री की कंपनियां भी एआई के लिए तैयार नहीं हैं. यानी ये कर्मचारियों से ज्यादा कंपनियों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि वे खुद को भविष्य के लिए तैयार नहीं कर पाईं.
प्रोफेशनल्स के लिए खास चिंता की बात इसलिए भी नहीं है क्योंकि एआई के रूप में नौकरी का नया विकल्प उन्हें मिल गया है. बेन एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 से अब तक एआई से जुड़ी नौकरियों में हर साल 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इतना ही नहीं, इन नौकरियों में सैलरी में भी औसतन 11 फीसदी की वृद्धि हुई है. खास बात ये है कि एआई के स्किल्ड प्रोफेशनल्स की देश में निहायत कमी है. 2027 तक इस फील्ड में 23 लाख नौकरियां पैदा होंगी, लेकिन बमुश्किल 12 लाख प्रोफेशनल्स ही उपलब्ध होंगे. इससे ऑटो, फार्मा, कंस्ट्रक्शन और टेक्सटाइल सेक्टर में काम प्रभावित हो सकता है. अच्छी बात ये है कि हर सेक्टर की कंपनियां अपने वर्कफोर्स को एआई के अनुरूप तैयार कर रही हैं. उन्हें ट्रेनिंग दे रही हैं. प्रोफेशनल्स के लिए ये अवसर है कि वे अपने काम के साथ भी एआई की ट्रेनिंग हासिल करें और भविष्य के लिए खुद को तैयार करें.
टीसीएस का ये फैसला भारत के आईटी सेक्टर के भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़े करता है. सवाल ये है कि क्या भारतीय कंपनियां भी अमेरिका की सिलिकॉन वैली के रास्ते पर चल पड़ी हैं. इससे भी बड़ा सवाल ये है कि कहीं ये भारत के आईटी ड्रीम्स के अंत की शुरुआत तो नहीं है.
सिलिकॉन वैली की चर्चा इसलिए क्योंकि पिछले साल अमेरिका की बड़ी आईटी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंटनी की थी. अमेजन, सिस्को, गूगल, मेटा, डेल टेक्नोलॉजिस- सिलिकॉन वैली की कमोबेश हर कंपनी से कर्ममचारियों को निकाला गया था. तभी से ये डर बना हुआ था कि इसका असर भारत की आईटी कंपनियों पर भी दिख सकता है. टीसीएस का फैसला इस डर को सही साबित कर सकता है. टीसीएस जैसी भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी को अब तक युवा सरकारी नौकरी जैसी सुरक्षित मानते थे. यदि आईटी क्षेत्र की दूसरी भारतीय कंपनियां भी टीसीएस की तरह छंटनी के रास्ते पर चल पड़ती हैं तो स्पष्ट है कि अब इस सेक्टर में भी स्थायित्व की गारंटी नहीं होगी.
इससे बड़ा सवाल देश में आईटी सेक्टर के भविष्य का है. दो हजार के दशक की शुरुआत के साथ भारत में आईटी सेक्टर रोजगार के बड़े जरिये के रूप में विकसित होना शुरू हुआ. इसकी शुरुआत से लेकर अब तक ये सेक्टर लगातार आगे बढ़ता रहा है. मंदी जैसे कारकों से करीब-करीब अप्रभावित रहे इस सेक्टर ने भारत के आईटी ड्रीम्स को लगातार उड़ान दी. देश की चार बड़ी आईटी कंपनियां- टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक्नोलॉजिस- में करीब 13.70 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इन कंपनियों ने 2015 से 2025 के बीच अपने वर्कफोर्स में 90 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी की. इससे पहले कभी वर्कफोर्स में कमी की चर्चा नहीं हुई. टीसीएस ने इसकी शुरुआत कर दी है.
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