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धर्म
इस साल पुत्रदा एकादशी तिथि 5 अगस्त 2025 को पड़ रही है. इसके अलावा इस दिन कई विशेष संयोग बन रहे हैं. अगर आप भी पुत्रदा एकादशी व्रत करना चाहते हैं तो इसकी कथा जरूर पढ़ें
हिंदू धर्म में तिथियों का बड़ा महत्व होता है. इनमें भी सबसे बड़ी तिथि एकादशी को माना जाता है. एकादशी साल में 24 आती हैं. इनमें सावन माह में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी बेहद विशेष होती है. इस साल पुत्रदा एकादशी तिथि 5 अगस्त 2025 को पड़ रही है. इसके अलावा इस दिन कई विशेष संयोग बन रहे हैं. अगर आप भी पुत्रदा एकादशी व्रत करना चाहते हैं तो इसकी कथा जरूर पढ़ें आइए जानते हैं किस दिन है पुत्रदा एकादशी से लेकर इस व्रत की कथा और महत्व...
सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 4 अगस्त 2025 को सुबह 11 बजकर 42 मिनट पर शुरू होगी. यह अगले दिन 5 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. सूर्योदय कालीन एकादशी होने की वजह से एकादशी व्रत 5 अगस्त को रखा जाएगा. इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र के संयोग में रवि योग का भी संयोग बन रहा है. इसके साथ ही सुबह 4 बजकर 20 मिनट से 5 बजकर 02 बजे तक रहेगी. वहीं दोपहर 12 बजे से 12 बजकर 54 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. यह दोनों ही उत्तम मुहूर्त माने जाते हैं. इनमें भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के साथ ही कथा पढ़ना बेहद शुभ होता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय भद्रावती नदी के तट पर राजा संकेतमान नाम का राजा राज्य करता था. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. राज्य मे धन-धान्य संपन्न और प्रजा सुखी थी. बस राजा को एक बात का दुख था कि उसके कोई संतान नहीं थी. इस वजह से राजा परेशान रहता था. राजा अपनी प्रजा का भी पूर्ण ध्यान रखता था. संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी. वह आत्मघात के बारे में सोच रहा था. उसने पुत्र की कामना के लिए यज्ञ किया, लेकिन देवताओं का आशीर्वाद भी नहीं मिला. अंत में राजा वन में चला गया. वन में वो घूमते हुए एक सरोवर के पास पहुंचा. सरोवर में सभी मेढ़क आदि अपने पुत्रों के साथ खेल रहे थे, राजा को इस बात से निराशा हुई. तभी रास्त में एक मुनि का आश्रम पड़ा. राजा ने घोड़ा रोककर मुनि को प्रणाम किया. मुनि को प्रणाम कर राजा ने उन्हें अपनी परेशानी बताई. मुनि ने उन्हें पुत्र की कामना के लिए किए जाने वाले व्रत पुत्रदा एकादशी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि राजा इस व्रत को करें और रात्रि जागरण करें, तो निश्चय ही उनके संतान होगी. इसके बाद राजा को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है.
राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूर्ण किया और नियम से व्रत का पारण किया. इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया. आगे चलकर राजा का पुत्र श्रेष्ठ राजा बना.
Disclaimer: यह खबर सामान्य जानकारी गणनाओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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