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Trending News: शिरडी के साईं बाबा मंदिर में गुरू पूर्णिमा के दिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे थे, जिसके चलते दर्शन के लिए 5-6 घंटे तक लंबी कतारों में लगना पड़ा था.
Trending News: शिरडी साईं बाबा मंदिर (Shirdi Sai Baba Temple) में भारी-भरकम दान चढ़ाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन एक शख्स का दिया गया दान चर्चा का सबब बन गया है. इसका कारण है दान देने वाले शख्स द्वारा अपना नाम गुप्त रखना. गुरू पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन गुरुवार को किसी अज्ञात श्रद्धालु ने साईं बाबा मंदिर में करीब 65 लाख रुपये के गहने दान पात्र में चढ़ाए, जिनमें अकेले सोने के मुकुट की ही कीमत करीब 59 लाख रुपये बताई जा रही है. गुरू पूर्णिमा के दिन साईं बाबा मंदिर में उनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी थी, जिसके चलते श्रद्धालुओं को कतार में 5-6 घंटे तक खड़े होने के बाद ही साईं बाबा के दर्शन करने का मौका मिला था.
दान में ये गहने दे गया है अज्ञात दानवीर
साईं ट्रस्ट शिरडी के CEO गोरक्ष गाडिलकर ने बताया कि अज्ञात दानवीर ने करीब 65 लाख रुपये के गहने दान में दिए हैं, जिनमें 566 ग्राम सोने से बना मुकुट भी है. इस मुकुट की कीमत मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से करीब 59 लाख रुपये है. इसके अलावा दान में दिए आभूषणों में 54 ग्राम के सोने के फूल और 2 किलोग्राम वजन का चांदी का नेकलेस भी शामिल है. यह दान देने वाले ने अपना नाम-पता गोपनीय रखा है. उन्होंने कहा,'यह केवल आर्थिक दृष्टि से ही मूल्यवान दान नहीं है, बल्कि गहरी भक्ति और श्रद्धा का भी प्रतीक है. अर्पित किया गया मुकुट और हार केवल धातु नहीं हैं, बल्कि उस साईं भक्त की हृदय की भक्ति और कृतज्ञता का प्रमाण हैं.'
1908 से मनाया जा रहा है मंदिर में गुरू पूर्णिमा उत्सव
सीईओ गाडिलकर के मुताबिक, शिरडी साईं मंदिर में गुरू पूर्णिमा का उत्सव साल 1908 से हर साल मनाया जा रहा है. इस दिन पूरे देश से आने वाले श्रद्धालु मंदिर में भारी चढ़ावा देते हैं. देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. करीब 61 देशों के विदेशी यहां प्रार्थना करने के लिए आते हैं, जिनमें जर्मनी, कोलंबिया, श्रीलंका आदि के श्रद्धालु अभी भी मौजूद हैं.'
कई देशों में मनाई जाती है गुरू पूर्णिमा
गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा (Vyasa Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. इसे हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन समुदाय भी मनाता है. यह पर्व भारत ही नहीं नेपाल, भूटान समेत उन कई देशों में आज भी मनाया जाता है, जहां सनातन धर्म की उपस्थिति रही है. इसे महर्षि वेद व्यास (Maharishi Ved Vyasa) की जयंती के मौके पर मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों को संकलित किया था और महाभारत की कथा लिखी थी.
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