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भारत
Chenab Rail Bridge: 272 किलोमीटर लंबे इस रेल मार्ग में 1315 मीटर का यह ब्रिज उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस पुल का निर्माण 43,780 करोड़ की लागत से किया गया है. 43,780 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में 943 पुल और 36 सुरंगें हैं.
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में 26 टूरिस्टों की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद एक बार फिर से पूरी दुनिया की निगाहें कश्मीर पर टिक गई. टूरिस्टों की पहली पसंद और भारत का सरताज कहा जाने वाला कश्मीर एकबार फिर चर्चा में है, क्योंकि यहां दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल चिनाब रेल ब्रिज बनाया गया है. जिसे पीएम नरेंद्र मोदी खुद 6 जून को देश को समर्पित करेंगे.
यह ऐतिहासिक पुल न केवल कश्मीर घाटी को पूरे भारत से जोड़ेगा, बल्कि क्षेत्र में व्यापार, पर्यटन और औद्योगिक विकास को भी नई गति देगा. दरअसल, ‘चिनाब रेल ब्रिज' को इंजीनियरिंग का चमत्कार कहा जाएगा. जम्मू और कश्मीर में स्थित यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज बनने का रिकॉर्ड बनाने जा रहा है. यह ब्रिज पेरिस के मशहूर एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है और दिल्ली की सबसे ऊंची मीनार से लगभग 287 मीटर ऊंचा है.
चिनाब रेल ब्रिज की ऊंचाई नदी के तल से 359 मीटर है.
272 किलोमीटर लंबे इस रेल मार्ग में 1315 मीटर का यह ब्रिज उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस पुल का निर्माण 43,780 करोड़ की लागत से किया गया है. 43,780 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में 943 पुल और 36 सुरंगें हैं.
यह 266 किमी प्रति घंटे तक की हवा की गति का सामना करने की क्षमता रखने वाला यह ब्रिज भूकंप प्रूफ भी बनाया गया है. बता दें कि भूकंपीय क्षेत्र पांच में स्थित है और रिक्टर स्केल पर 8 तीव्रता के भूकंप को सहने में सक्षम बनाया गया है. ये जितनी आसानी से मैं बोल रही हूं..ये पूरा प्रोजेक्ट चुनौतियों से भरा रहा है.कभी इसे बनाने में भौगोलिक चुनौती सामने आई तो कभी नदियों और पहाड़ों ने रास्ता रोका लेकिन प्रोजेक्ट पर ब्रेक तो लगता लेकिन रुका नहीं.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब छह जून को कटरा से श्रीनगर के लिए पहली वंदे भारत ट्रेन को झंडी दिखाएंगे तो उन हजारों इंजीनियरों, कर्मचारियों व श्रमिकों की मेहनत भी रंग लाएगी, जिन्होंने परियोजना को पूरा करने में दिन- रात एक कर दिया. नदियों, पहाड़ों के बीच बनी यह परियोजना इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल है. आइए जानें इस परियोजना की लागत के बारे में.
63 किलोमीटर बचा ट्रैक तैयार है. ट्रायल भी हो चुके हैं. परियोजना का यह पांचवां व अंतिम चरण है. इसके शुरू होते ही कश्मीर रेल के जरिए देश से जुड़ जाएगा.
इस ब्रिज का ख्वाब 1994- 1995 में देखा गया और इसे स्वीकृत भी मिल गई थी लेकिन जैसा की होता है हर अच्छे काम में समय लगता है और अब इस परियोजना को जनवरी 2025 में इसे पूरा कर लिया गया है.
उधमपुर श्रीनगर बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना की कुल लंबाई 272 किलोमीटर है. 209 किलोमीटर के ट्रैक पर वैसे तो रेल परिचालन जारी है. यह पूरा प्रोजेक्ट चार चरण में पूरा किया गया है.
पहले चरण में बारामुला -काजीगुंड का 118 किलोमीटर का संभाग है. यहां डीएमयू चलती है और यह ट्रैक कश्मीर में पड़ता है. इस खंड का उद्घाटन अक्टूबर, 2009 में किया गया था.
दूसरे चरण में काजीगुंड-बनिहाल का 18 किलोमीटर का ट्रैक है जो कश्मीर और जम्मू संभाग को जोड़ता है. इस खंड की शुरुआत जून, 2013 में हुआ था. इसे भी डीएमयू से जोड़ा गया.
तीसरा चरण उधमपुर कटरा का है जो 25 किमी का है यह भी जम्मू संभाग के अंतर्गत आता है. इस हिस्से में वंदे भारत सहित कई ट्रेनों की आवाजाही जारी है. जुलाई, 2014 को इस खंड में रेल परिचालन शुरू हुआ था.
चौथा चरण 48 किलोमीटर का है और ये बनिहाल- खड़ी-संगलदान में पड़ने वाला यह ट्रैक भी जम्मू संभाग में पड़ता है. पीएम नरेन्द्र मोदी ने 20 फरवरी 2024 को इसका उद्घाटन किया और डीएमयू को बनिहाल से आगे संगलदान तक यात्रियों के लिए शुरू कर दिया गया.
पांचवां चरण ऐतिहासिक होने जा रहा है 63 किमी. का यह ट्रैक कटरा रियासी-संगलदान तक तैयार हो चुका है. छह जून को यहां भी रेल परिचालन शुरू हो जाएगा और कश्मीर से जुड़ते ही परियोजना पूरी हो जाएगी.
पुल की विशेषताएं?
कटरा - रियासी ट्रैक पर अंजी खड्ड पर देश का पहला रेलवे का केबल स्टे ब्रिज बनाया गया है. भूकंप, तूफान आए या फिर कोई तकनीकी खराबी ही क्यों न आ जाए इसकी सूचना कंट्रोल रूम से तुरंत जारी होगी और यदि जरूरत पड़ी तो ट्रेन को रास्ते में रोका जा सकता है. रियासी जिला में चिनाब नदी पर बनाए गए विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे का शेप भी आर्च है. इस पुल की नदी से ऊंचाई 359 मीटर है, जो एफिल टावर जिसकी ऊंचाई 330 मीटर है से भी ऊंचा है. यह पुल बेहद मजबूत और सुरक्षित बनाया गया है, इंजीनियरों ने इस पुल की एज कम से कम 125 वर्ष आंकी है.
कटरा के पास माता वैष्णो देवी (Vaishno Devi) के त्रिकुटा पर्वत के नीचे बनी टी-1 (सुरंग) से ट्रेन गुजरेगी. बता दें कि यह वही सुरंग है जहां से लगातार पानी रिसता ही रहता है. जिसके कारण इस सुरंग में काम करना सबसे चुनौतिपूर्ण रहा था. इसे पूरा करने में कई कंपनियों ने हाथ खड़े कर दिए थे. अकेले इस सुरंग के अंदर निर्माण में करीब करीब 20 साल लग गए. यह सुरंग इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल है . रामबन जिला में खड़ी - सुंबड ट्रैक के बीच रेलवे की देश की सबसे लंबी 12.77 किलोमीटर सुरंग (टी-50 ) भी है.
खासियत क्या होगी तो भाई रेल कोच में हीटिंग सिस्टम लगाया गया है जो श्रीनगर जैसे इलाकों में माइनस टेंप्रेचर होने पर भी यात्रियों को ठंड से बचाएगा. यात्रियों को 360 डिग्री घूमने वाली सीट और चॉर्जिंग प्वाइंट की सुविधा मिलेगी.
1990 के दशक में कश्मीर में पंडितों के पलायन के बाद एकबार फिर से धर्म और कश्मीर के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा. बता दें कि वन्दे भारत की रफ्तार से कश्मीर में धार्मिक पर्यटन के लिए खीर भवानी मंदिर, मार्तण्ड सूर्य मंदिर और अमरनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का सफर आसान होगा. यही नहीं व्यापार को भी बूम मिलेगा और बनिहाल से बारामूला के बीच चार कार्गो टर्मिनल से व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. सेव, सूखे मेवे, हस्तशिल्प और पश्मीना शॉल जैसे उत्पादों को बाजारों तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी. साथ ही इस प्रोजेक्ट से रेल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती मिलेगी. LoC और LAC तक सैन्य साजो सामान की आपूर्ति भी तेज होगी.
इस ब्रिज की नींव 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी और इसे बनाने में 22 साल से अधिक का समय लगा है लेकिन यहां यह जानना बहुत जरूरी है कि जैसे आज भी हम अंग्रेजों के बनाए लोहे के पुल पर चढ़ते हुए उनकी कारीगरी की दाद देते हैं ठीक वैसे ही हमारे इस पुल की दाद 125 साल बाद हमारी पीढ़ियां करेंगी. इसकी डिजाइन और टेक्नोलॉजी दुनियाभर में चर्चा का विषय बना हुआ है वहदिन दूर नहीं जब विदेश से इंजीनियर हमारे इस पुल पर रिसर्च करेंगे. यह आने वाले समय में जम्मू कश्मीर की लाइफ लाइन होगा बल्कि इतिहास में दर्ज होगा.
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