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डीएनए एक्सप्लेनर
Indian Bunker Booster Missile Project: पहले पाकिस्तान के खिलाफ भारत के Operation Sindoor और अब Iran-Israel War ने दिखा दिया है कि आने वाला वक्त पारंपरिक युद्ध का नहीं है बल्कि जिस देश की मिसाइल और ड्रोन्स बेहतरीन होंगे, वो बाजी मारेगा. इसके चलते भारत ने खुद को एडवांस करना शुरू कर दिया है.
Indian Bunker Booster Missile Project: सीमा पर आमने-सामने गोलियां और तोप चलाते सैनिकों वाले पारंपरिक युद्ध (Conventional War) का दौर खत्म हो गया है. अब वह देश सबसे ज्यादा ताकतवर होंगे, जिनके पास आधुनिक हथियार (Advanced Warfare) होंगे. इनमें भी एडवांस मिसाइल और ड्रोन्स रखने वाले देश का जलवा रहेगा. ये बात पहले पाकिस्तान के खिलाफ भारत के Operation Sindoor ने तय की. इसके बाद अब Iran-Israel War में भी यही साबित हुआ है. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) में भी मिसाइलों और ड्रोन्स ने ही तबाही मचाई है. यह देखकर भारत ने भी खुद को एडवांस करना शुरू कर दिया है. भारत की मिसाइलों की दुनिया में अव्वल दर्जे की माना जाता है. लेकिन अब तक भारत के पास ऐसी 'बंकर बूस्टर (Bunker Booster)' मिसाइल नहीं है, जो धरती की सतह में बेहद गहराई पर मौजूद दुश्मन के सुरक्षित बंकरों को भी चकनाचूर कर दे. अपने परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी बंकर बूस्टर मिसाइल के तबाही मचाते ही जिस तरह ईरान घुटनों पर आ गया है, उसे देखते हुए भारत ने भी इसकी अहमियत समझ ली है. इसके चलते रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (DRDO) ने भी भारतीय बंकर बूस्टर मिसाइल (Indian Bunker Booster Missile) डेवलप करना शुरू कर दिया है. यह भारतीय इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल अग्नि का लेटेस्ट वर्जन (Indian Intercontinental Ballistic Missile Agni) होगा, जिसे Agni-5 कहा जाएगा.
आइए आपको 5 पॉइंट्स में इस बारे में सबकुछ बताते हैं-
1. क्या है भारत का अग्नि मिसाइल प्रोग्राम
प्रकृति के 5 तत्वों में से एक अग्नि नाम से भारत का इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल प्रोग्राम साल 1983 में शुरू हुआ था. इस इंटिग्रेटिड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) ने शुरू किया था. इसे रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) संचालित कर रहा है. इस मिसाइल ने पहली बार उड़ान 22 मई, 1989 को भरी थी, लेकिन इसका पहला ऑफिशियल टेस्ट 25 जनवरी, 2002 को किया गया था. यह 1,000 किलोग्राम पेलोड (विस्फोटक) लेकर करीब 12,00 किलोमीटर दूर मौजूद दुश्मन के ठिकाने तक पहुंचने में सक्षम थी. इसे साल 2007 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था. इसके अब तक 4 वर्जन भारतीय सेना को मिल चुके हैं.
2. अग्नि-5 मिसाइल का टेस्ट 2016 में हुआ था शुरू
अग्नि मिसाइल का सबसे लेटेस्ट वर्जन अग्नि-5 (Agni-5) है, जिसे पहली बार 26 दिसंबर, 2016 को टेस्ट किया गया था, उस समय इसकी रेंज 1,500 किलोग्राम विस्फोटक लेकर 5,500 किलोमीटर दूरी तक निशाना भेदने की आंकी गई थी. अब इसे 'बंकर बूस्टर' के तौर पर मॉडीफाई किया जाएगा. नया संस्करण अपने साथ 7,500 किलोग्राम का भारी-भरकम विस्फोटक लेकर जाएगा, जो किसी भी ठिकाने के आसपास के इलाके में भयानक तबाही मचाएगा. हालांकि ज्यादा वजन लेकर जाने के कारण माना जा रहा है कि इसकी रेंज कम होगी यानी यह 2,500 से 3,000 किलोमीटर दूर तक ही दुश्मन के ठिकाने को निशाना बना पाएगी.
3. जमीन में 100 मीटर नीचे भी मच जाएगी तबाही
DRDO का दावा है कि अग्नि-5 का नया संस्करण बेहद घातक 'बंकर बूस्टर' का काम करेगा, जो जमीन के अंदर 80 से 100 मीटर गहराई पर बने कंक्रीट की मोटी परतों से बने बंकर को भी ध्वस्त करने में सक्षम होगा. इससे दुश्मन के गोपनीय परमाणु ठिकाने, जमीन के अंदर बने कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, हथियारों के गोदाम और अन्य अहम मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर को आसानी से खत्म किया जा सकेगा.
3. परमाणु हथियार भी लेकर जा सकती है अग्नि-5 मिसाइल
अग्नि-5 मिसाइल 17.5 मीटर लंबी और 2 मीटर मोटी होती है. करीब 50,000 किलोग्राम वजन वाली इस मिसाइल की स्पीड 2 Mac है, इसका मतलब है कि इस मिसाइल को पारंपरिक हथियार से खत्म नहीं किया जा सकता है. यह 3 स्टेज सॉलिड फ्यूल बेस्ड प्रोपेलेंट मिसाइल है. यह मिसाइल परमाणु हथियार भी लेकर जा सकती है.
4. नए मॉडिफिकेशन में दो वर्जन तैयार कर रहा DRDO
सड़क पर चलने वाले लॉन्चर (मोबाइल लॉन्चर) से दागने में सक्षम अग्नि-5 मिसाइल के DRDO नए मॉडिफिकेशन में दो वर्जन तैयार कर रहा है. इनमें एक वर्जन बंकर बूस्टर होगा, जबकि दूसरा वर्जन जमीन के ऊपर बने ठिकानों को टारगेट बनाने के लिए होगा. हालांकि दोनों पर ही 7,500 किलोग्राम से 8,000 किलोग्राम तक का वारहेड होगा, जो इसे दुनिया का अब तक का सबसे पॉवरफुल पारंपरिक वॉरहेड (most powerful conventional warhead) बना देगा. हालांकि इसके चलते इन दोनों की फायरिंग रेंज घटकर 2,500 किलोमीटर रह जाएगी. हालांकि इनकी स्पीड मैक-8 सेमैक-20 तक होगी, जिसे ये हाइपरसोनिक वैपन्स की कैटेगरी में आएंगी.
5. क्या होती हैं बैलेस्टिक मिसाइल
बैलेस्टिक मिसाइल तीन फ्लाइट्स वाली मिसाइल होती है. पहला Boost Phase होता है. यह बेहद शॉर्ट पीरियड का होता है, जिसमें मिसाइल अपनी ट्रेजेक्टरी यानी राह सेट करती है. यह कुछ मिनट का होता है. दूसरा Midcourse Phase होता है. बूस्ट फेज के बाद आने वाले इस फेज में मिसाइल एक्सीलरेट करना बंद कर देती है और हवा में अपने मोमेंटम पर तैरने लगती है. तीसरा और आखिरी होता है Terminal Phase, जिसमें मिसाइल अपने वॉरहेड का मुंह हवा में ही खोलकर रिसेंटर करती है और टकराव के बाद ब्लास्ट हो जाती है. इकोई भी ICBM मिडकोर्स फेज में करीब 20 मिनट तक अंतरिक्ष में रहने के बाद टर्मिनल फेज के लिए दोबारा पृथ्वी के वातावरण में एंट्री करती है और फिर टारगेट को निशाना बनाती है.
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