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क्या Hassan Nasrallah की मौत के बाद एक बड़े युद्ध का साक्षी बनेगा Middle East?

इजरायल द्वारा लेबनान में हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या से मध्य पूर्व में नए संघर्ष की आशंका पैदा हो गई है. जैसे हालात हैं दुनिया की नजरें अब ईरान और हिजबुल्लाह पर टिकी हैं, जो इस बात पर विचार कर रहे हैं कि आगे क्या करना है.वहीं बात इजरायल की हो तो गतिरोध रोकने की प्लानिंग वो भी कर रहा है.

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क्या Hassan Nasrallah की मौत के बाद एक बड़े युद्ध का साक्षी बनेगा Middle East?

Hassan Nasrallah 

बेरूत से आ रही ताजा तस्वीरों ने संपूर्ण विश्व को गहरी चिंता में डाल दिया है. इन तस्वीरों को देखते हुए बड़ी ही आसानी के साथ निकट भविष्य के लिए भविष्यवाणियां की जा सकती हैं. कह सकते हैं कि बेरूत में हिजबुल्लाह प्रमुख की मौत के बाद सुलग चुकी चिंगारी, यदि पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले ले तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए. 

इजरायल द्वारा हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद जैसा उबाल मध्य पूर्व की राजनीति में दिख रहा है, तमाम सवाल अपना जवाब चाह रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या मध्य पूर्व में कोई ऐसा क्षेत्रीय संघर्ष छिड़ने वाला है जो तमाम देशों के लिए ख़तरा बन सकता है? 

बीते एक साल से मध्य पूर्व में बड़े युद्ध के कयास लगाए जा रहे थे. अब जबकि इजरायल द्वारा हसन नसरल्लाह को मारा जा चुका है, सवाल फिर पैदा होता है कि क्या यही वो वक़्त है जब दुनिया एक बड़ी जंग की गवाह बनेगी?

हिजबुल्लाह अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा घोषित आतंकवादी संगठन है. इसने पिछले कुछ वर्षों में इन तमाम देशों के सैकड़ों नागरिकों की हत्या की है.और शायद यही वो कारण है जिसके चलते घटना के बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने नसरल्लाह की हत्या को 'न्याय' कहा था. लेकिन इस बात का भी डर है कि आगे क्या होगा? 

ध्यान रहे कि मध्य पूर्व संकट को रोकने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाली कूटनीति विफल रही है.

भले ही नसरल्लाह को मार दिया गया हो. मगर मध्य पूर्व की राजनीति को समझने वाले तमाम एक्सपर्ट्स हैं, जिनका मानना है नसरल्लाह की हत्या अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए एक झटका है.

कहा तो यहां तक जा रहा है कि अमेरिका की तरफ से इजरायलियों को जितने भी बम और डॉलर दिए हैं, अगर इसके बदले उन्हें (इजरायल) बाइडेन के लिए कुछ करना ही था, वो वो कुछ ऐसा करते,जिससे लेबनान में युद्ध विराम लग जाता.

अब चूंकि तमाम तरह की कूटनीतिज्ञ संभावनाएं लगभग समाप्त हो गयीं हैं तो आगे क्या होगा? या होता है? यह ईरान और इजरायल दोनों पर निर्भर करता है. 

अपनी ओर से, ईरान को लग सकता है कि उसके पास मामले में हस्तक्षेप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. उसे डर हो सकता है कि उसने जो विशाल मिसाइल शस्त्रागार की आपूर्ति की, वह ख़तरे में है और उसे (ईरान को ) हस्तक्षेप करके एक संगठन के रूप में हिजबुल्लाह को बचाना ही होगा.

गौरतलब है कि ईरानियों ने लंबे समय से हिजबुल्लाह को उस दिन के लिए एक बीमा पॉलिसी के रूप में माना है, जब इजरायल ईरान पर हमला करेगा. अगर ईरान अपने सहयोगी को पूरी तरह से टूटने के करीब देखता है, तो बड़ा सवाल यह है कि क्या वह तब भी हस्तक्षेप करेगा?

अगर ऐसा होता है, तो अमेरिका के नेतृत्व में इजरायल के सहयोगी इजरायल के बचाव में आने के लिए मजबूर हो सकते हैं. ज्ञात हो कि गुजरे एक साल से आशंका जताई जा रही थी कि युद्ध का विस्तार होगा और यह क्षेत्र उसकी चपेट में आ जाएगा. 

लेकिन ईरान के पास कार्रवाई करने में जल्दबाजी न करने के अच्छे कारण हैं.

कहा जाता है कि मिडिल ईस्ट एक खतरनाक और अप्रत्याशित जगह है, लेकिन यहां तमाम तरह की अराजकताओं के बावजूद कुछ नियम और धारणाएं ऐसी हैं, जो यहां न केवल लागू होती हैं. बल्कि बहुत हद तक ख़राब स्थिति को सही भी करती हैं.  

अपनी तमाम कट्टरता के बावजूद, तेहरान के आयतुल्ला व्यावहारिक हैं और सत्ता पर अपनी पकड़ को बनाए रखना चाहते हैं. 45 साल पहले जब से उन्होंने सत्ता पर कब्ज़ा किया है, तब से इस मध्य पूर्वी भूभाग में यही नियम रहा है.

क्या यह व्यावहारिक है या फिर ये कहें कि क्या यह बुद्धिमानी है कि जब हिजबुल्लाह अपनी सबसे कमज़ोर स्थिति में हो, तो उसे और अधिक सीधे समर्थन दिया जाए? ध्यान रहे कि ईरानी शासन भी उतना मज़बूत नहीं है. माना जाता है कि कई प्रतिबंधों और कुप्रबंधन के कारण एक देश के रूप में ईरान आर्थिक रूप से अपंग है.

बीते कई महीनों से चल रही नागरिक अशांति के कारण सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी ईरान कमजोर है, हालांकि यहां पर तमाम तरह के गतिरोध दबा दिए गए हैं.

ईरान अपनी सीमाओं से 2,000 किमी दूर युद्ध में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से जो हासिल कर सकता है, उसकी भी अपनी सीमाएं हैं. पूर्व में हुए युद्ध में जैसी हालत ईरान की हुई और जो कुछ भी आम ईरानी आवाम ने भोगा तमाम ईरानियों का मानना ​​है कि इज़राइल के खिलाफ़ युद्ध का यह दौर खत्म हो गया है. तो क्या ईरानी दोबारा युद्ध के लिए सामने आएंगे या फिर अपने को तैयार करेंगे? अभी इसपर कुछ कहना जल्दबाजी है.  

ताजा हालात देखने के बाद इसमें भी कोई संदेह नहीं कि ईरान में शोर-शराबे के दिन आएंगे, और ये इतने भयावह होंगे जिसकी कल्पना शायद ही कभी किसी ने की हो.  ईरान को लेकर माना ये भी जा रहा है कि नसरल्लाह और उनके सहयोगियों के शोक का सीधा असर यहां की सियासत पर पड़ेगा जिसके बाद तनाव बढ़ेगा. लेकिन उसके बाद जो होगा वो पूरी तरह से इजराइल और उसकी नीतियों पर निर्भर करेगा.  

नसरल्लाह को मारकर इजरायल उत्साहित है. कहा ये भी जा रहा कि आने वाले वक़्त में किसी भी क्षण वह लेबनान पर आक्रमण करके हिजबुल्लाह को सीमा से पीछे धकेलने का मौका भुना लेगा. मध्य पूर्व की राजनीति को समझने वाले जानकार इस बात को भी मानते हैं कि यह एक बेहद खतरनाक क्षण भी होगा, जिसमें संभावित रूप से सीरिया में स्थित सहायक मिलिशिया और ईरानी सेनाएं शामिल हो सकती हैं.

दक्षिणी लेबनान की पहाड़ियां इजरायल जैसी सेना के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं. कहा ये भी जा रहा है कि यदि इजरायल की पैदल सेना और टैंक यहां आते हैं तो हिजबुल्लाह के लड़ाके उसे परेशानी में डाल सकते हैं. जिससे अभियान लंबा खिंच सकता है जिससे क्षेत्र में अस्थिरता बरक़रार रहेगी.

ईरान के बाद बात यदि लेबनान की हो तो 1970 और 80 के दशक में लेबनान में गृहयुद्ध के युद्धरत गुटों के बीच एक असहज समझौता दशकों तक कायम रहा, लेकिन इसकी हमेशा से नाजुक रही यथास्थिति अब खतरे में है. यदि लेबनान गुटीय लड़ाई में वापस उतरता है, तो निश्चित तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता कमज़ोर हो जाएगी.

कुल मिलाकर मध्य पूर्व में और भी अधिक उग्रता का गंभीर खतरा है. पश्चिमी और क्षेत्रीय राजनयिक इसे कगार से वापस लाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन हाल फ़िलहाल में सभी प्रयास विफल रहे हैं. जैसी स्थिति वर्तमान में है चाहे वो इज़रायल हो या फिर हिजबुल्लाह दोनों में से कोई भी सुनने को तैयार नहीं है.

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