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पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर इन दिनों अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर हैं, लेकिन वाशिंगटन में उनकी मौजूदगी एक बड़े विरोध प्रदर्शन की वजह से विवादों में आ गई है. यह प्रदर्शन अमेरिका में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों और प्रवासी पाकिस्तानियों द्वारा किया गया.
वाशिंगटन डीसी के एक होटल के बाहर जब असीम मुनीर बाहर निकले, तो वहां दर्जनों प्रदर्शनकारियों ने उन्हें घेर लिया और ज़ोरदार नारेबाजी करने लगे. "असीम मुनीर, तुम कायर हो", "तानाशाह मुनीर", और "पाकिस्तानियों का कातिल" जैसे नारों से माहौल गूंज उठा. प्रदर्शनकारियों में से अधिकतर का संबंध पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी से बताया जा रहा है, जो पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की अगुआई में पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ मुखर रही है. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि पाकिस्तान में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है और सेना की दखलअंदाजी से आम नागरिकों की आज़ादी छीनी जा रही है.
इलेक्ट्रॉनिक बिलबोर्ड से मिला सपोर्ट
विरोध को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एक मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक बिलबोर्ड का भी इस्तेमाल किया गया, जिस पर लिखा था. "असीम मुनीर, सामूहिक हत्यारा" "बंदूकें बोलने पर लोकतंत्र मर जाता है". ये बिलबोर्ड होटल के पास घूमता रहा और सोशल मीडिया पर इसके कई वीडियो वायरल हो गए.
मुनीर की अमेरिका यात्रा
डॉन अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, जनरल असीम मुनीर अमेरिका की 5 दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर 14 जून को वाशिंगटन पहुंचे. इस यात्रा का उद्देश्य अमेरिका के साथ सैन्य और रणनीतिक सहयोग को और मजबूत करना बताया गया है.
अमेरिकी सेना की वर्षगांठ में आमंत्रित
हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि मुनीर को अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ की परेड में आमंत्रित किया गया है, लेकिन व्हाइट हाउस ने इन दावों को खारिज कर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, मुनीर वाशिंगटन में तो मौजूद थे, लेकिन वे किसी सार्वजनिक समारोह का हिस्सा नहीं बने.
https://hindicms.dnaindia.com/hindi/world/news-pakistan-army-chief-asim-munir-faces-protests-in-washington-4175702
क्या है विरोध का असली संदेश?
प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य पाकिस्तान में "अप्रतिबंधित लोकतंत्र" की बहाली की मांग है. PTI समर्थक सेना प्रमुख को लोकतंत्र विरोधी और मानवाधिकार हनन का ज़िम्मेदार मानते हैं. ऐसे में मुनीर की अमेरिका यात्रा पाकिस्तान की छवि के लिए चुनौती बन गई है.ये घटनाक्रम अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की भूमिका और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर उसके प्रभाव को एक बार फिर बहस के केंद्र में ले आया है.
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