धर्म
श्रावण मास की शुरुआत से पहले आने वाली अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. मान्यता के अनुसार, इस अमावस्या को पितरों के तर्पण के लिए शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान दान-पुण्य करने से पितरों के पापों से भी मुक्ति मिलती है.
सावन की अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. अमावस्या के दिन नदियों में स्नान, दान और पितरों का श्राद्ध करना शुभ माना जाता है. यह अमावस्या श्रावण मास के आरंभ से पहले आती है. इस अमावस्या को दीप अमावस्या भी कहा जाता है. इस अमावस्या का विशेष महत्व है.
श्रावण मास की शुरुआत से पहले आने वाली अमावस्या को सबसे खास माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस माह में आने वाली अमावस्या को पिठोरी अमावस्या या दीप अमावस्या कहा जाता है. हिंदू धर्म में इस अमावस्या का विशेष महत्व है. क्योंकि यह अमावस्या पितरों को समर्पित होती है. अगर यह अमावस्या सोमवार को पड़े तो इसे सोमवती अमावस्या भी कहते हैं. इस साल पड़ने वाली यह अमावस्या 24 जुलाई, गुरुवार को है. इस अमावस्या को दीप अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस दिन पितरों की पूजा के साथ-साथ दीप पूजन भी किया जाता है. इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करते हैं. इसके बाद ध्यान करते हैं. बाद में पूजा-पाठ और दान का भी विशेष महत्व है. श्रावण अमावस्या कब है और मुहूर्त क्या है?
अमावस्या तिथि मुहूर्त
इस वर्ष अमावस्या तिथि गुरुवार, 24 जुलाई को प्रातः 2.28 बजे से प्रारम्भ होकर शुक्रवार, 25 जुलाई को दोपहर 12.40 बजे समाप्त होगी. इस बार पूजा का मुहूर्त सुबह 5.38 बजे से 7.20 बजे तक रहेगा. चर मुहूर्त सुबह 10.35 बजे तक रहेगा. अतः अमावस्या तिथि गुरुवार, 24 जुलाई को ही है.
अमावस्या तिथि पर शुभ योग
इस बार अमावस्या पर हर्ष योग समेत कई शुभ योग बन रहे हैं. इनमें गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और शिववास योग प्रमुख योग हैं. मान्यता है कि इस समय देवताओं की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
अमावस्या का महत्व क्या है?
श्रावण मास के आरंभ से पहले आने वाली अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहते हैं. क्योंकि इस दिन देवी को आटे का नैवेद्य चढ़ाने की परंपरा है. साथ ही, इस दिन सुवहसिनी संतान प्राप्ति हेतु देवी की पूजा करती हैं और संतान के उत्तम स्वास्थ्य और सुख की कामना करती हैं. इस अमावस्या को 'कुशाग्रहणी' या 'दर्भाग्रहणी' अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन वर्ष भर के लिए आवश्यक कुश यानी घास एकत्रित की जाती है. धार्मिक कार्यों में कुश घास, जिसे हम दूर्वा कहते हैं, महत्वपूर्ण मानी जाती है.
यह खबर सामान्य जानकारी और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.
अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.