लाइफस्टाइल
World Happiness Index के मुताबिक भारत खुशहाल रहने के मामले में 147 देशों में से 118वें स्थान पर है. हालांकि इस साल भारत के स्कोर में पहले के मुकाबले सुधार हुआ है...
हर साल 20 मार्च को दुनियाभर में वर्ल्ड हैप्पीनेस डे (World Happiness Day) मनाया जाता है, इसी दिन यूएन एक रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें यह बताया जाता है कि कौन से देश में लोग कितने खुश हैं. आज यानी 20 मार्च को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर ने गैलप और यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क के साथ मिलकर वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (World Happiness Index) प्रकाशित की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत खुशहाल रहने के मामले में 147 देशों में से 118वें स्थान पर है. हालांकि इस साल भारत के स्कोर में पहले के मुकाबले सुधार हुआ है. वहीं फिनलैंड और अन्य नॉर्डिक देश इस (World Happiness Index List) लिस्ट में शीर्ष पर बने हुए हैं...
बता दें कि यह रिपोर्ट कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलुओं के आधार पर दुनिया के अलग-अलग देशों की खुशहाली मापता है और इस इंडेक्स में 0 से 10 के स्केल पर देशों की खुशी को आंका जाता है. इसकी रैंकिंग सर्वे के डेटा के आधार पर तय होती है. इसके लिए हर देश से एक से तीन हजार लोगों को चुना जाता है और इन लोगों से कुछ सवाल पूछे जाते हैं, जिसके आधार पर डेटा तैयार किया जाता है.
इस सर्वे में जो सवाल शामिल किए जाते हैं वह छह फैक्टर्स पर आधारित होते हैं. इनमें किसी देश की जीडीपी, उदारता, सोशल सपोर्ट, आजादी और भ्रष्टाचार शामिल है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत 147 देशों में से 118वें स्थान पर है और खुशहाली के मामले में भारत पाकिस्तान(109वें), नेपाल (92वें), ईरान (100वें), फिलिस्तीन (103वें) और यूक्रेन (105वें) से भी पीछे है. यह लिस्ट 2022-2024 के दौरान देशों के प्रति व्यक्ति आय, सामाजिक समर्थन, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार जैसे कारकों के आधार पर तैयार की गई है.
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वहीं अफगानिस्तान (नंबर 147) एक बार फिर सूची में सबसे नीचे है और सिएरा लियोन (नंबर 146), लेबनान (नंबर 145), मलावी (नंबर 144) और जिम्बाब्वे (नंबर 143) खुशहाली के मामले में सबसे निचे पांच देशों की लिस्ट में शामिल हैं.
इसके पीछे कई वजहें जिम्मेदार मानी जाती हैं, इनमें पर्यावरण की चुनौतियां, ग़रीबी और आय असमानता, सामाजिक सपोर्ट की कमी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता आदि शामिल है. दरअसल पर्यावरण की चुनौतियां में वायु, जल प्रदूषण आदि का असर नागरिकों की सेहत पर असर पड़ता है, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, युवाओं के पास सामाजिक सपोर्ट का न होना खुशहाल जीवन पर असर डालता है.
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