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कर्नाटक चुनाव: सीएम पद से हटाया फिर भी बीजेपी के लिए अहम क्यों हैं येदियुरप्पा? समझिए लिंगायत वोटों का गणित

Karnataka Elections: कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले बी एस येदियुरप्पा एक बार फिर से बीजेपी के लिए बेहद अहम हो गए हैं.

कर्नाटक चुनाव: सीएम पद से हटाया फिर भी बीजेपी के लिए अहम क्यों हैं येदियुरप्पा? समझिए लिंगायत वोटों का गणित

BJP Roadshow

डीएनए हिंदी: 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद बी एस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ले ली. विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा. फिर कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने मिलकर सरकार बनाई. हालांकि, यह सरकार नहीं चली और एच डी कुमारस्वामी की सरकार अपने विधायकों की भितरघात के चलते गिर गई. बीजेपी ने एक बार फिर से येदियुरप्पा को ही सीएम बनाया लेकिन चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री को बदल दिया गया. 

अब कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सरकार का चेहरा हैं लेकिन बीजेपी चाहकर भी येदियुरप्पा को नहीं छोड़ पा रही है. सार्वजनिक मंचों से पीएम मोदी येदियुरप्पा की तारीफ कर रहे हैं. अमित शाह येदियुरप्पा के घर जा रहे हैं और उनको जोड़े रखने की हर संभव कोशिश की जा रही है. यह सारा खेल कर्नाटक के लिंगायत वोटों के लिए हो रहा है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं.

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बीजेपी से नाराज है लिंगायत समुदाय? 
कर्नाटक चुनाव से पहले बीजेपी ने येदियुरप्पा को केंद्रीय कोर टीम में शामिल किया है. उनसे लिंगायत समुदाय से अपील कराई गई है कि उन्हें सत्ता से हटाने के लिए बीजेपी के प्रति कोई दुर्भावना न रखें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुले तौर पर येदियुरप्पा की प्रशंसा कर रहे हैं और उनके साथ अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि बीजेपी समझ गई है कि इसके पहले येदियुरप्पा को पार्टी द्वारा नजरअंदाज किए जाने से लिंगायत समुदाय नाराज है.

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उत्तर कर्नाटक के कुष्टगी से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक अमरेगौड़ा पाटिल ने कहा, 'बीजेपी के लिए अब खोई हुई जमीन वापस पाना असंभव है. बीजेपी ने येदियुरप्पा को खत्म कर दिया है. उन्होंने बहुत दुखी मन से इस्तीफा दिया. एक विधायक के रूप में, मैं कह सकता हूं कि बीजेपी में किसी अन्य नेता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं किया गया था. अब, वे उनके साथ वापस आ गए हैं और दावा कर रहे हैं कि वह उनके नेता हैं. येदियुरप्पा को प्रोजेक्ट किए जाने से लिंगायत समुदाय का बीजेपी को वोट देने का कोई सवाल ही नहीं है. वे कैसे बीजेपी के लिए वोट कर सकते हैं?'

कर्नाटक में 17 प्रतिशत हैं लिंगायत
दरअसल, 80 साल की उम्र में, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपी येदियुरप्पा अभी भी लिंगायत समुदाय के निर्विवाद नेता हैं. कर्नाटक में इस समुदाय से लगभग 40 से 50 विधायक विधानसभा के लिए चुने जाते हैं. गौरतलब है कि कर्नाटक में बीजेपी की मुख्य ताकत लिंगायत समुदाय है, जो राज्य की जनसंख्या का 17 प्रतिशत है. इस समुदाय की मौजूदगी पूरे कर्नाटक में है. उत्तर कर्नाटक क्षेत्र में इसका एक बड़ा जनसंख्या आधार है. लिंगायत पूरे राज्य में फैले हुए हैं और दक्षिण कर्नाटक के कई जिलों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

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येदियुरप्पा ने कर्नाटक में पार्टी को शून्य से खड़ा किया था. अन्य प्रमुख नेताओं के साथ उन्होंने राज्य में बीजेपी को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह विपक्ष के नेता के पद तक पहुंचे और ऑपरेशन लोटस के माध्यम से बीजेपी को सत्ता में लाने के बाद वे मुख्यमंत्री बने. राज्य भर का लिंगायत समुदाय उनके साथ मजबूती से खड़ा था. येदियुरप्पा, अन्य समुदाय के नेताओं के वादों को भी पूरा करके, एक जननेता बन गए, जो राज्य में सभी समुदायों को आकर्षित कर सकते हैं.

अब बीजेपी को डर लग रहा है कि उसका लिंगायत वोट खिसक रहा है. सूत्रों ने कहा कि बीजेपी कर्नाटक में येदियुरप्पा के अलावा और कोई जननेता पेश करने में विफल रही, जो जनता का दिल जीत सके, इससे लिंगायत वोट बैंक में सेंध लगना तय है, जिसने दशकों से बीजेपी का समर्थन किया है.

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