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महाराष्ट्र के जैन समुदाय और मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के बीच एक विवाद सामने आया है और मामले ने ऐसा तूल पकड़ा है कि अब ये सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. चलिए विस्तार से जानें ये माधुरी को लेकर क्या ही मामला है और विवाद कहां से पैदा हुआ.
महाराष्ट्र के जैन समुदाय ने कोल्हापुर जैन मठ से एक हाथी 'महादेवी' (माधुरी) को गुजरात के अनंत अंबानी द्वारा संचालित वंतारा पशु बचाव केंद्र में स्थानांतरित करने पर अपना विरोध जताया है.इस तीव्र विरोध के बीच, महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि वह हाथी को कोल्हापुर वापस लाने के प्रयास कर रही है.
महाराष्ट्र के मंत्री प्रकाश अबितकर ने कहा, "कोल्हापुर जिले से भाजपा सांसद धनंजय महादिक और शिवसेना सांसद धैर्यशील माने, केंद्र सरकार से हाथी को वापस कोल्हापुर भेजने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर करने का प्रयास कर रहे हैं. वन अधिकारियों ने भी इस मामले में सहयोग का आश्वासन दिया है."
यह मामला क्या है?
कर्नाटक में जन्मी बताई जा रही 36 वर्षीय हथिनी 'महादेवी' (माधुरी) पिछले 30 वर्षों से कोल्हापुर के नंदनी स्थित श्री जिनसेना भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी जैन मठ में थी. एक पशु कल्याण संगठन ने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि हथिनी की हालत बिगड़ रही है और उसकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ रही है, इसलिए उसे किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए. बंबई उच्च न्यायालय ने 16 जुलाई को अपना फैसला सुनाते हुए हथिनी को गुजरात के वंतारा पशु बचाव केंद्र में पुनर्वासित करने का आदेश दिया था. बाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा. तदनुसार, हथिनी को वंतारा भेज दिया गया है.
जैन समुदाय में क्यों फैल आक्रोश:
लेकिन इससे उनकी धार्मिक आस्था को ठेस पहुँची है और जैन समुदाय हाथी को मठ को वापस करने की माँग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहा है. कई लोगों ने अपने मोबाइल सिम को जियो से बदलकर किसी और सिम में बदलकर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया है. हाथी को वापस करने की माँग को लेकर सवा लाख से ज़्यादा लोगों ने राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं.
कर्नाटक की हाथी है माधुरी
महादेवी उर्फ माधुरी नाम की यह हथिनी तीन साल की उम्र में कर्नाटक में थी. 1992 में उसे कोल्हापुर मठ को सौंप दिया गया. कोल्हापुर मठ में 30 साल तक उसकी देखभाल की गई. इसलिए इसे कर्नाटक की हाथी इसे माना जा रहा है और जैन समुदाय इसी से नाराज है क्योंकि मठ ही इसकी देखभाल करता था.
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