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बिहार की राजनीति देश की राजनीतियों से काफी अलग है. यहां सरकार बनाना इतना आसान नहीं माना जाता है.
बिहार की राजनीति देश में सबसे जटिल है. बीजेपी भी इस खास राज्य को अभी भी अकेले जीतने में सक्षम नहीं हो सकी है. कभी इस प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. पर अब बात कुछ और है. बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार काफी सक्रिय नजर आ रहा है. माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस बिहार में कुछ अलग करने वाली है. इसी कड़ी में कांग्रेस ने बिहार में 'पलायन रोको, नौकरी दो' नाम से एक पदयात्रा शुरू की है. यात्रा यूथ कांग्रेस और NSUI द्वारा निकाली जा रही है. कांग्रेस की ओर से इस पदयात्रा के लिए किसी नाम की औपचारिक तौर पर घोषणा नहीं की गई है. पर यात्रा के फोकस में कन्हैया कुमार ही हैं.
कन्हैया कुमार लालू यादव को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं. वो नहीं चाहते की बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव के अलावा कोई उतरे. दूसरी तरफ इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि बिहार में लालू के भरोसे कांग्रेस की सांसें चलती हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन ने कांग्रेस को 70 सीटें देकर एक अहसान किया था. अगर यह सब जानते हुए भी कांग्रेस आरजेडी प्रमुख लालू यादव की मर्जी के खिलाफ चलना चाहती है तो शायत दिल्ली की तरह बिहार में भी कांग्रेस अप नी लड़ाई खुद लड़ने वाली है.
बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस केवल दिखावे के लिए ये भ्रम बना रही है कि वह राज्य में अलग चुनाव लड़ सकती है.दरअसल कहा जा रहा है कि आरजेडी इस बार कांग्रेस को महागठबंधन में 40 से 50 सीटें देने पर विचार कर रही है. पर कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीट से कम लेने को तैयार नहीं है.
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पप्पू यादव किसी न किसी बहाने लालू परिवार पर आक्षेप करते ही रहते हैं. लोकसभा चुनावों में उन्हें जो दर्द आरजेडी की तरफ से मिला था उसका दर्द उन्हें सालता रहता है. पप्पू यादव पूर्णिया सीट से महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की जिद की वजह से उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा. हालांकि, उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती को हरा दिया. लेकिन तेजस्वी यादव ने उन्हें हराने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. जाहिर है कि पप्पू यादव आने वाले विधानसभा चुनाव में वो उसका बदला जरूर लेना चाहेंगे.
कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने का नुकसान वैसे तो महागठबंधन का होना तय है पर बीजेपी भी इससे अछूती रहेगी यह कहा नहीं जा सकता है. पिछले साल फरीदाबाद के सूरजकुंड में हुए बीजेपी के एक सम्मेलन में एक वरिष्ठ नेता ने कहा था कि बिहार में हमारी कोशिश होनी चाहिए कि कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़ें. दरअसल बिहार में बीजेपी का कोर वोटर्स सवर्ण हैं. उसी तरह कांग्रेस के भी कोर वोटर्स सवर्ण हैं. अगर कांग्रेस के कैंडिडेट सवर्ण जाति से संबंध रखते हैं और बीजेपी का कैंडिडेट किसी पिछड़ी जाति से है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि एक बड़ा तबका जो बीजेपी को वोट देने वाला होगा वो कांग्रेस की ओर चला जाएगा.
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