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Terror Funding: फिल्मों की पाइरेसी के पीछे का बड़ा घोटाला हालिया रिपोर्ट्स में सामने आया है. चिंता की बात ये है कि यह घोटाला महज इकोनॉमी के लिए खतरा नहीं है बल्कि आतंकवादी विचारधाराओं के पालन-पोषण का भी जरिया बन रहा है.
Terror Funding: रेड 2, सिकंदर, जाट, द भूतनी- ये चारों फिल्में बीते दो महीने में रिलीज हुई हैं, लेकिन इनके बीच केवल यही एक समानता नहीं है. ये चारों फिल्में रिलीज की तय तारीख से एक दिन पहले ही ऑनलाइन लीक हो गई थीं. भारत में फिल्मों की पाइरेसी कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसमें एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है. पहले फिल्में रिलीज के बाद पाइरेसी का शिकार होती थीं, अब रिलीज से पहले ही ऐसा होने लगा है. इससे फिल्म इंडस्ट्री में चिंताएं बढ़ गई हैं. 2024 की द रॉब रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म पाइरेसी एक बहुत बड़ा घोटाला है और यह पिछले कई सालों से लगातार चल रहा है. फिल्म उद्योग के जानकार और पाइरेसी मामलों की जांच करने वाले लोगों का मानना है कि रिलीज से पहले ऑनलाइन लीक अंदर के लोगों की सहभागिता का स्पष्ट संकेत है. साफ है कि इसमें पोस्ट प्रोडक्शन स्टूडियो, कंटेंट डिलीवरी सर्विस और सिनेमा का प्रदर्शन करने वाली कंपनियां शक के दायरे में हैं. चिंता की बात ये है कि पाइरेसी का यह घोटाला महज देश की इकोनॉमी को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहा है बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा यह आतंकी विचारधाराओं के पालन-पोषण के लिए होने वाली फंडिंग का जरिया बन रहा है. इस मुद्दे की तरफ पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा जी ने सभी का ध्यान खींचने की कोशिश की है.
अकेले 2023 में 22,400 करोड़ रुपये का घोटाला
रिलीज से पहले पाइरेसी फिल्म की कामयाबी पर ग्रहण लगा देती है. इससे फिल्म की डिजिटल स्ट्रीमिंग और सैटेलाइट रिलीज से होने वाली कमाई बुरी तरह प्रभावित होती है. फिल्म के पहले शो से पहले ही दर्शकों की जिज्ञासा कम हो जाती है जिसका सीधा असर उसकी कमाई पर पड़ता है. द रॉब रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में ही देश की मीडिया इंडस्ट्री को पाइरेसी के चलते 22 हजार 400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 51 फीसदी भारतीय उपभोक्ताओं तक पाइरेटेड कंटेंट पहुंचता है. अवैध स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, मोबाइल एप, सोशल मीडिया और टोरेंट पाइरेसी का बड़ा माध्यम होते हैं. हाल के दिनों में टेलीग्राम भी इसका एक बड़ा जरिया बन गया है. इसका सबसे ज्यादा नुकसान कम बजट वाली फिल्मों को होता है. बड़े प्रोडक्शन हाउस अपने प्रभाव के बूते लीक के बाद भी स्ट्रीमिंग डील करने में सफल हो जाते हैं, लेकिन छोटी कंपनियां इससे वंचित रह जाती हैं.
'विचारधारा नहीं पैसे पर जिंदा है आतंकवाद, जिसका जरिया बन रही पाइरेसी'
पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा जी के मुताबिक,'आतंकी नेटवर्क अकेले विचारधारा के बल पर जिंदा नहीं रह सकते हैं. इन्हें जिंदा रहने के लिए पैसे की जरूरत होती है और पाइरेटेड कंटेंट आतंकी नेटवर्कों को पालने-पोसने वाले पैसे का इंतजाम करने वाले सबसे छिपे हुए तरीकों में से एक बन गया है.'
वीडियो पाइरेसी में पहले नंबर पर है भारत
पूरी दुनिया में देखें तो ऑनलाइन वीडियो पाइरेसी के मामले में भारत पहले नंबर पर है. भारत के करीब 90.3 मिलियन यूजर्स पाइरेटेड वीडियो कंटेंट देखते हैं. 47.5 मिलियन यूजर्स के साथ इंडोनेशिया दूसरे और 31.1 मिलियन यूजर्स के साथ फिलीपींस इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर है. रिलीज से पहले फिल्म पाइरेसी का आर्थिक असर केवल इसकी कमाई तक ही सीमित नहीं होता. ऑनलाइन लीक का सीधा संबंध फिल्म को लेकर लोगों की उत्सुकता से होता है. जिस फिल्म पर निगाहें ज्यादा टिकी होती हैं, उसके लीक की आशंका उतनी ज्यादा होती है.
पाइरेसी रोकने के तरीके तलाश रही फिल्म इंडस्ट्री
फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग तकनीक के सहारे पाइरेसी से बचाव के तरीके ढूंढ रहे हैं. एक तरीका ये है कि पूरी फिल्म को तीन अलग-अलग हिस्सों में सुरक्षित रखा जाए. ये तीनों हिस्से एक पासवर्ड डालने से ही जुड़ सकते हैं. कुछ कंपनियां इस तरह की कोशिशें कर रही हैं. दूसरी ओर, कुछ कंपनियां प्रोडक्शन हाउसेज की मदद से पाइरेटेड कंटेंट का पता करने और उसको हटाने के तरीके पर काम कर रही हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी फिल्म पाइरेसी को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है. पाइरेसी के खिलाफ ये लड़ाई इतनी आसान नहीं है. भारत के डिजिटल ईकोसिस्टम में असली और पाइरेटेड कंटेंट के बीच फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसी हालत में फिल्म उद्योग अपनी रचनात्मकता और आर्थिक ताकत को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.
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