एजुकेशन
जया पाण्डेय | Aug 05, 2025, 09:47 AM IST
1.कौन हैं दीपेश कुमार?
यूपीएससी की सफलता की कहानियों के सागर में दीपेश कुमारी की यात्रा दृढ़ता और पारिवारिक समर्पण का प्रमाण है. राजस्थान के भरतपुर की रहने वाली पकौड़ी बेचने वाले गोविंद की बेटी दीपेश ने कई चुनौतियों का सामना करते हुए अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी सीएसई 2021 में 93वीं रैंक हासिल की.
2.पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं दीपेश
दीपेश कुमारी के पिता गोविंद पिछले 25 सालों से ठेले पर पकौड़ियां बेच रहे हैं. वह अपनी पत्नी उषा, दो बेटियों और तीन बेटों के साथ साधारण से घर में रहते हैं. अपनी बेटी की यूपीएससी परीक्षा में सफलता के बावजूद गोविंद अपनी जड़ों से जुड़े रहे और शहर की तंग गलियों में पकौड़ियां बेचना जारी रखा.
3.आईआईटी बॉम्बे से पढ़ी हैं दीपेश
पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी दीपेश ने तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी. भरतपुर से बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने जोधपुर के एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री और बाद में आईआईटी मुंबई से एम.टेक की डिग्री हासिल की.
4.क्या करते हैं दीपेश के भाई-बहन?
दीपेश की लगन से प्रेरित होकर उनकी छोटी बहन दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में डॉक्टर बनीं, जबकि उनके दो भाइयों ने लातूर और एम्स गुवाहाटी से एमबीबीएस की पढ़ाई की. दीपेश ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपनी पूरी तनख्वाह अपने भाई-बहनों की शिक्षा में लगा दी.
5.सॉफ्टवेयर कंपनी में एक साल काम के बाद शुरू की तैयारी
एम.टेक के बाद दीपेश ने एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम किया लेकिन यूपीएससी परीक्षा पास करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए एक साल के बाद ही इस प्राइवेट नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
6.कोविड की वजह से वापस लौटना पड़ा घर
दीपेश ने 2019 में यूपीएससी की तैयारी शुरू की और शुरुआत में दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला लिया. लेकिन कोविड 19 लॉकडाउन के कारण उन्हें घर वापस लौटना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी तैयारी जारी रखी.
7.दूसरे प्रयास में यूपीएससी में पकौड़े बेचने वाले की बेटी को मिली 93वीं रैंक
अपने पहले प्रयास में वह इंटरव्यू राउंड तक पहुंची लेकिन फाइनल लिस्ट में जगह बनाने में नाकामयाब रहीं. लेकिन अपने दूसरे प्रयास में उन्होंने इतिहास ही रच दिया और मैथ्स को अपना ऑप्शनल सब्जेक्ट बनाकर पूरे भारत में 93वीं रैंक हासिल की.
8.बेहद खूबसूरत है सफलता की कहानी
दीपेश अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार खासकर अपनी मां के अटूट सहयोग को देती हैं जिन्होंने इस चुनौतीपूर्ण सफर में उन्हें प्रोत्साहन और आश्वासन दिया. दीपेश इस बात पर जोर देती हैं कि सफर कठन हो सकता है लेकिन कभी भी उम्मीद न खोएं. उनकी सफलता इस बात का उदाहरण है कि कोई भी पृष्ठभूमि और सीमित संसाधन कभी भी सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकते.
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