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Bihar Election: विपक्षी दल खफा तो BJP के सहयोगी भी हैं नाखुश, क्यों उठ रहे Bihar Voter List revision पर सवाल? पढ़ें 5 पॉइंट्स

Bihar Assembly Election 2025: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इससे ठीक पहले 25 जून से Election Commission of India ने वोटर वेरीफिकेशन ड्राइव शुरू की है, जिसे लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. अब सत्ताधारी NDA के अंदर भी इसे लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

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Bihar Election: विपक्षी दल खफा तो BJP के सहयोगी भी हैं नाखुश, क्यों उठ रहे Bihar Voter List revision पर सवाल? पढ़ें 5 पॉइंट्स

Bihar Assembly Election 2025: बिहार में इस साल विधासभा चुनाव होने हैं. इसके लिए राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी फील्डिंग बिछानी शुरू कर रखी है, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वोटर लिस्ट रिवीजन (Bihar Electoral Roll Revision) से सबके समीकरण बिगड़ते दिख रहे हैं. इसके चलते भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) की इस कवायद पर हंगामा बढ़ता ही जा रहा है. विपक्षी दल इस अचानक शुरू की गई ड्राइव को लेकर सवाल उठा रहे हैं. विपक्षी I.N.D.I.A ब्लॉक का प्रतिनिधिमंडल इसे लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलकर आपत्ति भी जता चुका है. अब इसे लेकर खुद सत्ताधारी NDA के अंदर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. बिहार में BJP के सहयोगी दलों ने ही इस कवायद को लेकर संशय जताना शुरू कर दिया है.

चलिए 5 पॉइंट्स में पूरी बात समझने की कोशिश करते हैं-

1. पहले जान लीजिए क्यों हो रहा है वोटर वेरीफिकेशन

भारतीय निर्वाचन आयोग ने दो जगह बनी हुई वोट और फर्जी वोटर हटाने के लिए बिहार में वोटर वेरीफिकेशन ड्राइव शुरू की है. इस वोटर वेरीफिकेशन ड्राइव का आधार साल 2003 रखा गया है यानी जिनका नाम इस साल की वोटर लिस्ट में नहीं था, उन्हें दोबारा से अपने दस्तावेज दिखाकर वोट का सत्यापन कराना होगा. यदि वे दस्तावेज नहीं दिखा पाते हैं तो उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा यानी वे वोट नहीं डाल पाएंगे. यह कवायद 25 जून को शुरू हुई है और चुनाव आयोग का दावा है कि इसे 25 जुलाई को पूरा करके नई वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी कर दिया जाएगा. इसके बाद लोग अपना नाम हटाने को लेकर आपत्ति जता सकते हैं और दस्तावेज दिखाकर फाइनल वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा सकते हैं. 

यह भी पढ़ें- Rahul Gandhi उठा रहे वोटर लिस्ट पर सवाल, ऐसे में Bihar Elections 2025 से पहले खास वोटर वेरीफिकेशन, जानें पूरी बात

2. क्या चुनाव आयोग को है ऐसे वोटर लिस्ट रिवीजन का अधिकार? 
चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 (Representation of the People Act, 1950) के तहत नए सिरे से वोटर लिस्ट तैयार करने का अधिकार अपने पास होने की बात कही है. चुनाव आयोग के मुताबिक, देश में पहली बार वोटर लिस्ट रिवीजन ड्राइव नहीं चलाई जा रही है. इससे पहले भी चुनाव आयोग अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह ड्राइव चला चुका है. साल 1952 से 2004 के बीच ही 13 बार ऐसी ड्राइव चलाकर फर्जी वोटर्स को हटाया गया है. 

3. किन प्रावधानों के कारण उठ रहे हैं सवाल
चुनाव आयोग ने बिहार में स्पेशल इंटेन्सिव रिवीजन ड्राइव के नाम से जो कवायद शुरू की है, उसमें 1 जुलाई, 1987 से पहले पैदा होने वाले वोटर्स को फॉर्म भरकर अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान को सत्यापित करना होगा. जो वोटर 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच पैदा हुए हैं. उन वोटर्स के साथ ही उनके माता या पिता को भी अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान का प्रमाण देना होगा ताकि यह तय हो सके कि वे घुसपैठिए नहीं हैं. 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे वोटर्स को अपने माता-पिता, दोनों की जन्म तिथि और जन्म स्थान का प्रमाण चुनाव आयोग को उपलब्ध कराना होगा. ये ही वे प्रावधान हैं, जिनके चलते विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि इतने कम समय में इतने दस्तावेज उपलब्ध कराना आसान नहीं है. RJD सांसद मनोज झा ने NDTV से कहा, जो वोटर 2003 की लिस्ट में नहीं थे, उन्हें 11 तरह के दस्तावेज उपलब्ध कराने हैं. यह कैसे होगा? यदि चुनाव आयोग की कवायद का मकसद वोटर्स को लिस्ट में जोड़ने के बजाय हटाना है तो इसके दुष्परिणाम होंगे. करोड़ों वोटर बाहर होंगे और फिर सड़कों पर हर तरह विरोध प्रदर्शन ही दिखाई देंगे.'

4. यदि वोटर लिस्ट गलत थी तो आज तक क्यों हो रहे थे इस पर चुनाव?
विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य चुनाव आयुक्तों को साथ मीटिंग की है, लेकिन मीटिंग के बाद विपक्षी दल पहले से भी ज्यादा नाखुश दिखे. पहली बार आयोग के अंदर आने वाले प्रतिनिधिमंडल में हर दल से केवल दो व्यक्तियों को ही आने की इजाजत दी गई. इस पर भी विपक्षी दलों ने सवाल उठाया. विपक्षी दलों ने मीटिंग के बाद कहा,' हमने आयोग से पूछा कि यदि साल 2003 में आखिरी बार वोटर वेरीफिकेशन हुआ था और उसके बाद वोटर लिस्ट गड़बड़ हो गई तो इस गड़बड़ लिस्ट पर इतने साल तक चुनाव क्यों कराए गए? अब विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) में महज 2-3 महीने बचे हैं तो अचानक यह कवायद क्यों शुरू की गई है? ऐसा चुनाव के बाद भी कराया जा सकता था.' कांग्रेस नेता व सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी के मुताबिक,' बिहार में करीब 8 करोड़ वोटर हैं, जिनमें से कम से कम 2 करोड़ वोटर इस वेरीफिकेशन ड्राइव में समय पर कागज नहीं दिखा पाने के चलते वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं. चुनाव आयोग हर जगह आधार कार्ड (Aadhaar Card) मांगता है, लेकिन यहां इसे ठीक नहीं मान रहा, ऐसा क्यों?'

5. क्या कह रहे हैं भाजपा के सहयोगी दल
बिहार में भाजपा के सहयोगी दल JDU, LNJP, HAM आदि सीधेतौर पर वोटर लिस्ट वेरीफिकेशन को लेकर कुछ नहीं कह रहे हैं. विपक्षी दलों की आलोचना के बीच सार्वजनिक तौर पर NDA के सभी नेता इस ड्राइव का समर्थन करते हुए दिखे हैं, लेकिन अंदरखाने वहां भी इससे खुशी नहीं है. JDU के एक सीनियर लीडर के मुताबिक, महज 1 महीने के अंदर इतना बड़ा कैंपेन कैसे सही तरीके से पूरा हो पाएगा? इससे बड़े पैमाने पर वोटर्स से वोट डालने का अधिकार छिन सकता है, जिसमें अधिकतर दलित और महादलित तबके के लोग होंगे. दलित और महादलित तबके के लोगों के लिए दस्तावेज जुटाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. यदि दलित और महादलित तबके के लोग वोटर लिस्ट से बाहर हुए तो इसका बड़ा खामियाजा JDU, LNJP और HAM को ही उठाना होगा, क्योंकि इन पार्टियों के कोर वोटर्स में सबसे ज्यादा इन्हीं तबकों की जातियां आती हैं.

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