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Sawan Kanwar 2024: सावन में कावड़ लाने के पीछे क्या है रहस्य, जानें क्यों भरकर लाया जाता है जल, रावण से जुड़ी है कथा

सावन माह के शुरुआत होते ही सड़कों पर कांवड़ियों रैला दिखाई पड़ने लगता है. शिवभक्त कांवड़िये अपने कंधों पर जल रखकर हरिद्वार से पैदल अपने घर आते हैं. यह प्रथा कई युगों से चली आ रही है. आइए जानते हैं इसके पीछे रहस्य

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Sawan Kanwar 2024: सावन में कावड़ लाने के पीछे क्या है रहस्य, जानें क्यों भरकर लाया जाता है जल, रावण से जुड़ी है कथा

Sawan Kanwar 2024: सावन के महीने की शुरुआत हो चुकी है. इस महीने में शिवभक्त महादेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी उपासना करते हैं. इसी महीने में लाखों लोग कावड़ हरिद्वार से कावड़ लेकर आते हैं. माना जाता है कि इससे भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. भगवान शिव और मां पार्वती को कंधे पर लेकर चलने का भाव ही कांवड़ यात्रा कहलाता है. कावड़ यात्रा पूरे सावन माह के 28 दिनों तक चलती है. जिसमें शिवभक्त हरिद्वार से जल लाकर भगवान शिव की शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. यह प्रथा आज से नहीं त्रेतायुग से चली आ रही है,​ जो भगवान शिव के परम भक्त रावण ने शुरू की थी. आइए जानते हैं सावन में कावड़ लाने के पीछे का रहस्य और क्यों भरकर लाया जाता है इसमें जल...   

सावन के पहले दिन से शुरू होती है कावड़ यात्रा 

कांवड़ यात्रा सावन माह के पहले दिन से ही शुरू होती है और माह के अंतिम दिन तक चलती है. इसमें कांवड़ का अर्थ होता है “कंधों पर रखा हुआ”. लकड़ी की एक डंडी जिसके दोनों सिरों पर एक-एक पात्र होते हैं. इनमें शिवभक्त गंगा नदी से जल भरकर लाते हैं. जल लेने के बाद शिवधाम पर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. 

रावण से जुड़ी है कथा

पुराणों के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन और रावण से जुड़ी है. माना जाता है कि समुद्र मंथन से निकलने वाले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में समा लिया था. इससे ​भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था. विष के ताप को कम करने के लिए शिव के अनन्य भक्त रावण ने गंगाजल से भरे कांवड़ से उनका जलाभिषेक किया. इसके बाद से ही सावन माह में कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई. 

श्रवण कुमार से भी मानी जाती है कावड़ की शुरुआत

कांवड़ यात्रा को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है. इसके अनुसार, श्रवण कुमार ने इस यात्रा की शुरुआत की थी. श्रावण अपने ​माता पिता की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें अपने कंधों पर कांवड़ में बैठकार हरिद्वार लाकर गंगा में स्नान कराया था. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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