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Bali Pratha: नेपाल, बंगाल, बिहार में आज भी मां को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है बलि, क्या हैं मान्यताएं

आज भी बंगाल, बिहार, नेपाल में देवी मां के मंदिर के सामने पशुओं की बलि दी जाती है, जानते हैं क्या है वहां की मान्यताएं

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Bali Pratha: नेपाल, बंगाल, बिहार में आज भी मां को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है बलि, क्या हैं मान्यताएं

डीएनए हिंदी: Bali Pratha in Bengal, Bihar, Nepal- दुर्गा पूजा हो या फिर काली पूजा या फिर कोई भी देवी का पर्व, बंगाल,बिहार और नेपाल में बलि प्रथा का एक प्रचलन आज भी है. भले ही अब जाकर इसका विरोध होने लगा है लेकिन कोई कानून न होने की वजह से आज भी देवी को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि दी जाती है. ऐसी मान्यता है कि अगर किसी पशु की बलि नहीं दी गई तो मां नाराज हो जाएंगे. कहीं काली मां को प्रसन्न करने के लिए ऐसा होता है, तो कहीं दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों को, जिसमें आदि शक्तिपीठ शामिल हैं. हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाए जाने की परंपरा है

बंगाल में बलि प्रथा (Bali Pratha in Bengal)

जैसे बंगाल के कूचबिहार और मालदा जिले के गांव लस्करपुर की बात करें तो वहां बकरे या फिर किसी भी पशु की बलि देना आवश्यक है. इन पूजाओं में देवी को प्रसन्न करने के लिए भैंसा, सूअर या फिर पाठे या फिर कबूतरों की बलि दी जाती है. ऐसा भी बताया जाता है कि कूचबिहार रियासत की देवाबाड़ी में नर बलि भी दी जाती थी,  बाद में इस प्रथा को बंद कर दिया गया. उसकी जगह एक परिवार के लोग अपनी अंगुली काटकर उसके रक्त को देवी को उत्सर्ग करते थे. इसके संदर्भ में फिर आस पास गांव में जबरदस्त मेला भी लगता है. यह पर्व ज्यादातर दुर्गा पूजा या फिर काली पूजा के दौरान होता है. काली मंदिर में अगर आप बलि देना छोड़ देते हैं तो इसका मतलब है कि आपने तय कर लिया है कि आपको काली की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ समय बाद उनकी शक्ति घटती जाएगी और फिर वह नष्ट हो जाएंगी 

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बिहार में बलि प्रथा (Bali Pratha in Bihar)

इधर बिहार के समस्तीपुर जिले 15 किलोमीटर दूरी पर उजियारपुर प्रखंड के रूपौली गांव में जमंगला स्थान है, जहां सैकड़ों वर्ष पुराना एक मंदिर है, जमंगला माई का दरबार,जहां बकरे की बलि दी जाती है और कहा जाता है कि 500 साल पुराने इस मंदिर में आने से आप खाली हाथ कभी वापस नहीं जाते हैं. बताया जाता है कि जिस स्थान पर आज जमंगला माई है पहले इस जगह बड़ा जंगल था इसी जगह पांडव भी ठहरे थे और इसी जगह एक घर था जिसमें एक किसान और उसकी बेटी रहती थी. एक दिन लोगों ने उस किसान की बेटी को बाघ और सांप के साथ खेलते हुए देखा और फिर वो गायब हो गई और पूर्वज के सपने में आकर मन्दिर स्थापित करने की बात कही. तभी से ये मंदिर स्थापित है और देवी लोगों की मन्नतें पूरे करती हैं.

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नेपाल में बलि (Nepal Bali pratha)

नेपाल की हिन्दू देवी गढीमाई को प्रसन्न करने के लिए वहां पशु बलि दी जाती है. यह बहुत ही पुराना मंदिर और आदि शक्तिपीठ में से एक है. यहां कसाई आकर भैंसों की बलि देते हैं. ऐसा माना जाता है कि अगर आप बलि देना छोड़ दें तो मां नाराज हो जाएंगे. दक्षिणकाली मंदिर में भक्त अपनी स्थिति और इच्छा के अनुसार जानवर की बलि देते हैं. ज्यादातर भैंस, बकरा, मुर्गा, बत्तख और भेंड़ की बलि दी जाती है. दक्षिणकाली मंदिर में बलि से समब्धित पंच पूजा की जाती है, जिसमें पांच प्रकार के जानवरों की बलि दी जाती है, दक्षिणकाली मंदिर में प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन भक्त देवी काली की पूजा करते है और ज्यादातर इन्हीं दिनों में जानवरों की बलि दी जाती है

इधर, ओड़िशा में भी इसे लेकर काफी विरोध हुआ है, लेकिन अब तक कोई कानून नहीं बना है जो इसपर पाबंदी लग सके. गुजरात मे 2011 द गुजरात एनिमल परिज्वेन्सन एक्ट के तहत पशु बलि को बंद कर दिया गया.

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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