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भारत
धनखड़ ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों को शामिल करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की और इसे 'न्याय का उपहास' और 'सनातन की भावना का अपमान' बताया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के शब्दों को दोहराते हुए, उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने शनिवार को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों को शामिल करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की और इसे 'न्याय का उपहास' और 'सनातन की भावना का अपमान' बताया. जोड़े गए शब्दों को नासूर (घाव) कहते हुए, उन्होंने कहा कि इन बदलावों ने 'अस्तित्व संबंधी चुनौतियां' पैदा की हैं और राष्ट्र से संविधान के निर्माताओं की मूल मंशा पर विचार करने का आह्वान किया.
दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर बोलते हुए उन्होंने प्रस्तावना को संविधान की आत्मा बताया और दावा किया कि संविधान का कोई विशेष भाग परिवर्तनीय नहीं है.
धनखड़ ने कहा, 'प्रस्तावना में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता. यह वह आधार है जिस पर संविधान विकसित हुआ है. प्रस्तावना संविधान का बीज है. यह संविधान की आत्मा है.'
उनकी यह टिप्पणी आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले द्वारा इस बात पर राष्ट्रीय बहस का आह्वान करने के कुछ दिनों बाद आई है कि क्या प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द बने रहना चाहिए.
होसबोले ने यह भी तर्क दिया कि ये शब्द मूल रूप से बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल (1975-77) के दौरान जोड़ा गया था.
1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम का हवाला देते हुए, जिसमें ये तीन शब्द जोड़े गए थे, उन्होंने कहा कि यह 'आराम से, हास्यास्पद तरीके से और बिना किसी औचित्य के' किया गया था, उस समय जब कई विपक्षी नेता आपातकालीन शासन के तहत जेल में थे.
होसबोले की टिप्पणी से राजनीतिक प्रतिक्रिया भड़क गई है, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरएसएस पर 'राजनीतिक अवसरवाद' और संविधान के मूलभूत मूल्यों पर 'जानबूझकर हमला' करने का आरोप लगाया है.
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर के संपादकीय में समीक्षा के आह्वान का समर्थन करते हुए कहा गया कि इसका उद्देश्य संविधान को खत्म करना नहीं है, बल्कि इसकी 'मूल भावना' को बहाल करना है, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली इमरजेंसी के दौरान शुरू की गई 'विकृतियों' से मुक्त है.
उपराष्ट्रपति ने कहा, 'यह हजारों सालों से इस देश की सभ्यतागत संपदा और ज्ञान को कमतर आंकने के अलावा और कुछ नहीं है. यह सनातन की भावना का अपमान है.'
उन्होंने संविधान और प्रस्तावना का मसौदा तैयार करने में अंबेडकर द्वारा किए गए थकाऊ काम का भी उल्लेख किया और कहा कि तत्कालीन सरकार को इसमें बदलाव करने के बजाय इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था.