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जब भारत ने अमेरिकी ताकत को दी चुनौती, इतिहास की ये घटनाएं हैं गवाही
भारत
राजा राम | Aug 02, 2025, 05:32 PM IST
1.भारत ने कई बार अमेरिकी दबावों का डटकर सामना किया
भारत और अमेरिका के रिश्ते हमेशा से सरल नहीं रहे हैं. स्वतंत्रता के बाद से ही भारत ने कई बार अमेरिकी दबावों का डटकर सामना किया है. भारत ने हर बार यह दिखाया कि उसकी नीतियां आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं, चाहे सामने कोई भी महाशक्ति क्यों न हो. 1965 के खाद्यान्न संकट से लेकर 1998 के परमाणु परीक्षणों और ट्रंप प्रशासन के टैरिफ तक, भारत ने अपनी रणनीतिक संप्रभुता से कभी समझौता नहीं किया.
2.भारत किसी के इशारे पर नहीं चलेगा
भारत ने हर दशक में अमेरिकी दबावों का सामना न सिर्फ साहस से किया, बल्कि दूरदृष्टि के साथ भी अपने फैसले लिए. यह सिलसिला शुरू हुआ 1950-60 के दशक में, जब भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई. अमेरिका को यह रुख रास नहीं आया, लेकिन पंडित नेहरू ने साफ कर दिया कि भारत किसी के इशारे पर नहीं चलेगा.
3.भारत ने युद्ध नहीं रोका तो गेहूं की आपूर्ति रोक दी जाएगी
1965 में जब भारत पाकिस्तान से युद्ध में था, उसी समय देश भयंकर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था. अमेरिका पीएल-480 योजना के तहत भारत को गेहूं भेजता था. युद्ध के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने धमकी दी कि अगर भारत ने युद्ध नहीं रोका तो गेहूं की आपूर्ति रोक दी जाएगी.
4.आत्मनिर्भर भारत की सोच की नींव
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने बिना झुके जवाब दिया,'बंद कर दीजिए गेहूं देना.' उन्होंने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की. इसी दौरान ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा जन्मा, जो आत्मनिर्भर भारत की सोच की नींव बना.
5.भारत ने कदम पीछे नहीं खींचे
1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया. अमेरिका ने तुरंत प्रतिबंध लगाए, पर भारत ने कदम पीछे नहीं खींचे.
6.भारत अपने रुख पर अडिग
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने फिर पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए. अमेरिका ने सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने 'Credible Minimum Deterrence' की नीति स्पष्ट की. विदेश मंत्री जसवंत सिंह और अमेरिकी राजनयिक स्ट्रोब टैलबोट के बीच लंबी बातचीत चली और भारत अपने रुख पर अडिग रहा.
7.नीति में आत्मविश्वास हो तो दबाव झेला जा सकता है
हाल ही में, ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25% टैरिफ लगाया. भारत ने जवाबी टैक्स न लगाकर संयम दिखाया लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि व्यापारिक आत्मसम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होगा. भारत का यह इतिहास बताता है कि चाहे कितनी भी बड़ी ताकत क्यों न हो, अगर नीति में आत्मविश्वास हो तो दबाव झेला जा सकता है.