Lionel Messi करेंगे 14 साल बाद भारत का दौरा, विराट-रोहित साथ खेलेंगे मैच; इतनी होगी टिकट की कीमत
जब भारत ने अमेरिकी ताकत को दी चुनौती, इतिहास की ये घटनाएं हैं गवाही
Diabetes Upay: डायबिटीज के मरीज मानसून में कैसे रखें शुगर कंट्रोल? जानिए बेस्ट आयुर्वेदिक उपाय
Home Loan: होम लोन लेते समय की ये गलतियां तो 20 की जगह 33 साल तक भरनी पड़ेगी EMI
Heart Risk: खाने की ये सफेद चीज बढ़ाती है Heart Attack का खतरा, जानिए क्या है इसकी वजह
भारत
Narayana Murthy: इंफोसिस के सह- संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा है कि UPSC की मौजूदा भर्ती प्रक्रिया को बदलना चाहिए. साथ ही बिजनेस स्कूलों से अधिकारियों को चुनने पर विचार किया जाना चाहिए.
Infosys: इंफोसिस के को-फॉउंडर नारायण मूर्ति ने भारत की सिविल सेवा में सुधार के लिए एक नया सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि यूपीएससी(UPSC) की मौजूदा भर्ती प्रक्रिया को बदलना चाहिए. अधिकारियों को बिजनेस स्कूलों से चुनने पर विचार किया जाना चाहिए. उनका मानना है कि ऐसा करने से "प्रशासनिक सोच" के बजाय "प्रबंधन की सोच" वाली नौकरशाही विकसित होगी.
नारायण मूर्ति ने कही ये बात
14 नवंबर को एक ग्लोबल लीडरशिप समिट में बोलते हुए, मूर्ति ने कहा कि मौजूदा UPSC प्रक्रिया से ऐसे अधिकारी तैयार होते हैं जो यथास्थिति बनाए रखने पर ध्यान देते हैं. उन्होंने कहा कि भारत को ऐसे सिविल सेवकों की जरूरत है जो नवाचार करें, दूरदर्शिता लाएं और नीतियों को तेज़ी से लागू करें. उन्होंने बिजनेस स्कूलों से प्रशिक्षित अधिकारियों को इन ज़रूरतों के लिए बेहतर माना है.
पूर्व IAS अधिकारी का विरोध
नारायण मूर्ति के इस सुझाव पर पूर्व IAS अधिकारी संजीव चोपड़ा ने असहमति जताई. चोपड़ा, जो लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के पूर्व निदेशक रह चुके हैं ने UPSC प्रणाली का बचाव किया. उन्होंने इसे समावेशी और योग्यता आधारित बताया. चोपड़ा ने कहा कि UPSC परीक्षा उम्मीदवारों को 22 भाषाओं में परीक्षा देने की अनुमति देती है, जो अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों को मौका देती है. उन्होंने यह भी कहा कि बिजनेस स्कूलों पर निर्भरता से ग्रामीण और गैर-शहरी क्षेत्रों के प्रतिभाशाली उम्मीदवार बाहर हो सकते हैं.
लोकतंत्र और प्रशासन
चोपड़ा ने तर्क दिया कि विजन-सेटिंग का काम सिविल सेवकों का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं का है. उन्होंने कहा कि सिविल सेवकों की भूमिका नीतियों को लागू करने की होनी चाहिए न कि उन्हें परिभाषित करने की. चोपड़ा ने यह भी कहा कि सार्वजनिक सेवाओं को केवल लागत-प्रभावशीलता के आधार पर नहीं आंका जा सकता. उन्होंने एम्स और आंगनवाड़ी योजनाओं जैसे उदाहरण दिए, जो भले ही आर्थिक रूप से लाभदायक न हों, लेकिन समाज के लिए अनमोल हैं.
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से..