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MUDA Case: मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण में अनियमितता के मामले में कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने सितंबर 2024 सीएम सिद्धारमैया और उनकी पत्नी के खिलाफ जांच शुरू की थी.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ी राहत मिली है. लोकायुक्त को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) साइट आवंटन घोटाले में कोई सबूत नहीं मिले हैं. लोकायुक्त ने इस मामले में सीएम और उनकी पत्नी बीएम पार्वती को क्लीन चिट दे दी है. लोकायुक्त पुलिस ने 138 पन्नों की फाइनल रिपोर्ट बेंगलुरु मुख्यालय को सौंपी थी.
लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा को नोटिस भेजकर कहा कि जांच में लगाए गए आरोपों के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले. आरोप दीवानी प्रकृति के थे. उनपर आपराधिक कार्रवाई की आवश्यकता नहीं थी. लोकायुक्त ने नामित मजिस्ट्रेट के समक्ष रिपोर्ट को चुनौती देने के लिए शिकायतकर्ता को एक हफ्ते का समय दिया है.
MUDA का क्या था मामला?
सीएम सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और अन्य के खिलाफ मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) के साइट आवंटन में अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया था. MUDA ने साल 1992 में रियाशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से कुछ जमीन ली थी. लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का कुछ हिस्सा वापस कर दिया था. लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब साल 2004 में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई बीएम मल्लिकार्जुन ने इस जमीन से 3.16 एकड़ खरीद ली. RTI कार्यकर्ता कृष्णा ने आरोप लगाया कि मल्लिकार्जुन ने यह जमीन खरीदी नहीं बल्कि अवैध रूप से हासिल की थी.
RTI कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकारी और राजस्व अधिकारियों की मदद से जाली दस्तावेजों के आधार पर इस जमीन को रजिस्टर्ड कराया गया. इतना ही नहीं जमीन को साल 1998 में खरीदा दिखाया गया, ताकि इसका मुआवजा लिया जा सके. मल्लिकार्जुन ने इस जमीन को अपनी बहन और सीएम सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती को गिफ्ट कर दी थी. पार्वती ने इस जमीन के लिए मुआवजे की मांग की थी. उस दौरान सिद्धरमैया राज्य के डिप्टी सीएम थे.
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