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डीएनए एक्सप्लेनर
मणिपुर में कुकी और मैतेई दोनों समुदायों को सुरक्षाबलों पर भरोसा नहीं है. मणिपुर पुलिस पर भी कुकी समुदाय पक्षपात का आरोप लगाता रहा है. आइए जानते हैं 10 वजहें, जिनकी वजह से मणिपुर में जंग थम नहीं रही है.
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डीएनए हिंदी: मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी हिंसा, अब तक थमी नहीं है. 4 मई से ही राज्य में हिंसा भड़की है लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी, शांति बहाल नहीं हो सकी है. कुकी समुदाय का आरोप है कि राज्य के ज्यादातर संसाधनों पर मैतेई समुदाय के लोगों का कब्जा है. सरकार से लेकर प्रशासन तक, मैतेई समुदाय के लोगों को राज्य में प्राथमिकता दी जाती है, वहीं कुकी समुदाय उपेक्षा का शिकार है. दोनों समुदाय केंद्र और राज्य सरकारों से नाराज हैं.
मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजाति का दर्जा मिले. कुकी समुदाय का कहना है कि अगर यह दर्जा मिल गया तो पहाड़ी इलाकों में जमीनों को खरीदने का अधिकार मैतेई समुदाय को मिल जाएगा. कुकी समुदाय के सामुदायिक हित, इस आरक्षण से प्रभावित होंगे. राज्य में 4 मई को हिंसा भड़कने के मूल में भी यही आंदोलन रहा है. ऐसी स्थिति में आइए जानते हैं कि क्या हैं 10 वजहें, जिनके चलते मणिपुर में शांति बहाली नहीं हो पा रही है.
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10 चुनौतियां, जिनकी वजह से मणिपुर में हालात हैं बेकाबू
1. मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके के नेतृत्व में गृह मंत्रालय की ओर से गठित शांति समिति जनता को समझाने में फेल रही है. कुकी और मैतेई समुदायों के प्रभावशाली संगठनों ने इस शांति समिति का बहिष्कार कर दिया.
2. सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस और मैतेई सिविल सोसाइटी के तहत कुकी विद्रोही समूहों के साथ बातचीत चल रही है. ये बैठकें चर्चा में नहीं हैं, इस वजह से जनता का इन पर यकीन कर पाना मुश्किल है. दोनों समुदायों को एक-दूसरे पर अब भरोसा नहीं है.
3. मणिपुर सरकार और मैतेई समाज का कहना है कि वे मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करेंगे. कुकी समुदाय, खुद को अलग-थलग मान रहा है. वे मैतेई समुदाय के साथ रहने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं.
4. कुकी समुदाय का कहना है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 विधायकों के साथ मैतेई लोगों का राजनीतिक प्रभुत्व है. कुकी समुदाय इससे नाराज है और अपने लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहा है.
5. कुकी और मैतेई दोनों समुदायों को सुरक्षा बलों पर भरोसा नहीं है. कुकी मणिपुर पुलिस को पक्षपाती मानते हैं, जबकि मैतेई को असम राइफल्स पर यकीन नहीं है. केंद्रीय बल मणिपुर में हमेशा नहीं रह सकते हैं. कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य पुलिस के पास है. असम राइफल्स म्यांमार के साथ सीमाओं की हिफाजत कर रही है.
6. बीजेपी मणिपुर में अपने सबसे बड़े संकटमोचक, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा के बाद, हिमंत बिस्वा सरमा को राज्य संभालने की जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने मैतेई और कुकी समुदाय के नेताओं के साथ बातचीत की. कुकी सीज फायर पर विद्रोही समूहों के साथ गुप्त समझौते का आरोप लगाने वाला 2017 का एक पेपर लीक हुआ तो मैतेई समुदायक का उन पर भरोसा उठ गया.
7. कुकी समूहों ने तब तक बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया है, जब तक कि एन बीरेन सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से नहीं हटा दिया जाता. वहीं मैतेई लोगों का एक बड़ा वर्ग उनका कट्टर समर्थक है.
8. नागा, मणिपुर का सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. यह संघर्ष में शामिल नहीं होना चाह रहा है. उनकी राजनीतिक पार्टी, नागा पीपुल्स फ्रंट की स्टेट युनिट, बीरेन सिंह का समर्थन करती है. वे मैतेई और कुकी के बीच शांति स्थापित करने में मददगार साबित हो सकते हैं. केंद्र सरकार के साथ उनकी बातचीत चल रही है.
9. मिज़ोरम सरकार की भागीदारी ने मणिपुर सरकार और मैतेई समुदाय को प्रभावित कर दिया है. मिज़ो जनजाति का कुकी, ज़ो और चिन जनजातियों के साथ घनिष्ठ संबंध है. केंद्र सरकार और बीरेन सिंह, दोनों की नाराजगी के बाद भी मिजोरम ने म्यांमार और मणिपुर के विस्थापित लोगों को आश्रय दिया है.
10. मणिपुर के प्रमुख हिस्सों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) की वापसी हो गई है. सेना अब पहले की तरह सैन्य ऑपरेशन नहीं कर सकती है. सेना के हाथ बंधे हुए हैं. हिंसाग्रस्त राज्य में सेना की भूमिका मूकदर्शक बने रहने तक सीमित हो गई है.
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