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Open Letter जिसमें देश-जनता तुमसे कह रही है, बहुत हुआ अब Shut Up! You Kunal...

अपने हालिया शो से विवादों की आग को आंच देने वाले स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा सुर्खियों में हैं. ऐसे में देश और जनता की तरफ से एक ऐसा खुला खत जो उन्हें इस बात का एहसास कराएगा कि वो एक परफ़ॉर्मर नहीं बल्कि मौकों को भुनाने वाले मौकापरस्त हैं.

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Open Letter जिसमें देश-जनता तुमसे कह रही है, बहुत हुआ अब Shut Up! You Kunal...

डिअर

कुणाल कामरा 

और ब्रो पड़ गई कलेजे को ठंडक? अब तक तो आ ही गया होगा तुम्हारे बेचैन दिल को करार? क्यों है न? अरे तुम यही तो चाहते थे... देखो अब तुम भले ही 'सफाई देने' के नाम पर लेटर पर लेटर लिखकर बांस और यूकोलिप्टस के सारे पेड़ दुनिया से सफा कर दो. लेकिन सच्चाई क्या है? ये बात न तो तुमसे छुपी है. न ही इस निर्मोही दुनिया से. देखो यार मैटर बिलकुल जलेबी की तरह 'सीधा' और इमरती की तरह 'गोल' है. 

ये बात हम सभी जानते थे कि बीते कुछ वक़्त से तुम अज्ञातवास में थे और जब तुम आओगे तो धमाल करोगे. अब इसे इत्तेफाक़ कहें या कुछ और.  तुमको लेकर हममें से कोई गलत नहीं था. तुम आए. तुमने कॉमेडी जैसा कुछ करने की कोशिश की और तुम चले गए. उसके बाद क्या हुआ? क्या उसका जिक्र करने की जरूरत है?

तुम कुछ जवाब दो. इससे पहले हमारे लिए भी जरूरी हो जाता है कि, हम तुम्हें ये बताएं कि सैकड़ों लोगों को सामने बैठाकर स्टेज से तुमने जो किया, वो भले ही कुछ भी हो. मगर कॉमेडी तो नहीं है. 

देखो ब्रो समझो इस बात को कि हास्य, व्यंग्य, कटाक्ष, ताने और भौंडेपन में कुछ अंतर होता है.  तुमने स्टेज से जो किया, लिखने बताने या फिर आलोचना के नाम पर यूं तो उसपर ग्रंथ लिखे जा सकते हैं. लेकिन एक शब्द में कहा जाए तो एजेंडेबाजी का लबादा ओढ़कर तुमने जो किया वो भौंडापन है. 

ये बात तो तुम भी जानते हो कि तुमने इतनी मेहनत सिर्फ एक वर्ग और एक राजनीतिक दल को रिझाने के लिए की है. ऐसे में हमारा सवाल बस ये है कि क्या वाक़ई तुम्हें इसकी जरूरत थी? क्या तुम पब्लिसिटी के इतने भूखे हो गए थे कि यूं इस तरह गिरने के अलावा तुम्हें और कोई रास्ता समझ में नहीं आया? 

तुम खुद बताओ क्या कॉमेडी में प्रधानमंत्री को, महाराष्ट्र समेत कुछ अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री रह चुके लोगों को घेरकर ही सफलता अर्जित की जा सकती थी? हमें पूरा यकीन है कि न तो कभी तुम इस बात को मानोगे. न ही इससे सहमत होगे. लेकिन मौजूदा वक़्त का एक बड़ा सत्य यही है कि, तुम एक ऐसे गिद्ध हो जो अपना पेट भरने के लिए किसी जानवर के मरने का इंतजार करता है. 

हो सकता है ऊपर लिखी कुछ बातें तुम्हें आहत कर जाएं (हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है. विवाद ही तुम्हें संतुष्टि देते हैं) तुम बुरा मान जाओ लेकिन सत्य का तकाजा तुम्हें मौकापरस्त की संज्ञा देता है. मानो या नहीं मानो लेकिन तुम यही चाहते हो कि देश रख का ढेर और लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. 

देखो इससे पहले कि तुम कुछ गलत समझो, तुम्हें इस बात को समझना होगा कि बतौर ऑडियंस हमें तुम्हारी कॉमेडी या तुम्हारे प्रोफेशन से कोई ऐतराज़ नहीं है. तुम अगर सिस्टम की ही कमियां उजागर कर रहे थे तो कितना अच्छा होता कि तुमने कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह को कभी आड़े हाथों लिया होता. तुम सिख नरसंहार और इंदिरा गांधी पर भी मुखर होते.  

कुणाल ब्रो तुम अपने शो में मौके बेमौके गुजरात दंगों का जिक्र करते हो. तो तुम्हारा ज्ञानवर्धन करने के लिए ये बता देना बहुत जरूरी है कि गुजरात से पहले यह देश 17 बड़े दंगों का साक्षी बना है. 

पता नहीं तुम्हें पता है या नहीं लेकिन इसी देश यानी हमारे भारत में भागलपुर में दंगे हुए थे. बतौर नागरिक मैंने हमेशा चाहा कि कोई उन दंगों का जिक्र करे ताकि दोषियों को सजा मिले. लेकिन मेरा या सपना महज एक सपना बनकर रह गया है. और हां मैं इस बात को भली प्रकार जानता हूं कि इसका जवाब मुझे शायद ही कभी मिलेगा.

बहरहाल, अब डायरेक्ट होते हुए थोड़ी बहुत बात तुम्हारे शो के और स्वयं तुम्हारे संदर्भ में की जाएं. तो भाई जैसा कि मैंने ऊपर ही तुम्हें गिद्ध की संज्ञा दे दी हैं तो जब मैं तुम्हारी गतिविधियों को देखता हूं और उनका अवलोकन करता हूं तो कुछ बातें स्वतः साफ़ हो जाती हैं. 

बतौर भारतीय नागरिक मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि ये सब तुम उस चाशनी लगी कुल्फी के लिए कर रहे हो जो तुम्हारे अनुसार एक दिन तुम्हें देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी देगी. लेकिन मेरा सवाल है कि क्या तुम उस कुल्फी का मजा ले पाओगे?

शायद नहीं. और अगर अब भी तुम्हें डाउट हो तो उसी संविधान की कसम खाकर बताना जिसकी आड़ लेकर तुमने न केवल अपने शो में भौंडी बातें की बल्कि बचने की भी कोशिश की. 

शेष फिर कभी. मुझे पूरी आशा है कि तुम कम लिखे को ज्यादा, बहुत ज्यादा समझोगे.

तुम्हारा 

इस देश का एक आम नागरिक 

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