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डीएनए एक्सप्लेनर
Uttarakhand Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जिले में बदरीनाथ धाम के करीब आखिरी गांव माणा के पास ग्लेशियर के टूटकर गिरने से एवलांच आया है. पहले भी उत्तराखंड में कई बार ग्लेशियर टूटकर तबाही ला चुके हैं. यह तबाही और ज्यादा भयानक हो सकती है.
Uttarakhand Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जिले में शुक्रवार (28 फरवरी) सुबह ग्लेशियर टूटने के कारण तबाही मची है. बदरीनाथ धाम से 3 किलोमीटर आगे आखिरी गांव माणा के करीब ग्लेशियर टूटने से बर्फीला तूफान आया है, जिसमें बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (BRO) के करीब 57 मजदूर दब गए हैं. अब तक 16 से ज्यादा मजदूरों को रेस्क्यू किया जा चुका है, लेकिन अभी भी बाकी मजदूरों को निकालने का काम करीब 15 घंटे बाद भी जारी है. यह पहला मौका नहीं है हिमालय में ग्लेशियर खिसकने या टूटने के कारण तबाही मची है. यह तबाही वक्त बीतने के साथ और ज्यादा खतरनाक तरीके से सामने आने के आसार बढ़ते जा रहे हैं. दरअसल दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती जा रही ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियर्स को पिघलाना शुरू कर दिया है. इसके चलते ग्लेशियर अपनी जगह से खिसक रहे हैं और उनके पिघलने से बड़ी-बड़ी झीलें बन रही हैं. ये झीलें ही तबाही मचा रही हैं. कुछ समय पहले एक रिपोर्ट में उत्तराखंड समेत देश के 5 राज्यों में ऐसी झीलों से तबाही मचने का खतरा जताया गया था. उत्तराखंड में तो ग्लेशियर झीलों के कारण देश के सबसे बड़े बांध टिहरी डैम के भी टूटने का खतरा जताया गया था, जिसके चलते दिल्ली तक जल प्रलय मच सकती है.
ग्लेशियर क्यों पिघल रहे हैं, क्यों टूट रहे हैं और कैसे ये चिंता बढ़ रही है, आइए 7 पॉइंट्स में सबकुछ जानते हैं-
1. देश में ग्लेशियर टूटने से हालिया सालों में हुए हादसे
2. क्यों टूटता है ग्लेशियर, कैसे तबाही लाती है इसकी बाढ़?
पहाड़ों के ग्लेशियर अल्पाइन होते हैं. ग्लोबल वार्मिंग के कारण इनकी मोटी पर्त के ऊपर साल दर साल वातावरण से ब्लैक डस्ट गिरकर अपनी पर्त बना रही है. यह ब्लैक डस्ट की पर्त सूरज की गर्मी को सोखती है, जिससे ग्लेशियर की बर्फ की मोटी पर्त पिघलने लगती है. इससे बर्फ की आपस की पकड़ कमजोर होती है और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से वे कई टुकड़ों में बंट जाते हैं. इसके अलावा ग्लेशियर के किनारों पर यदि किसी कारण टेंशन बढ़ जाती है, तब भी ये टूट जाते हैं. ग्लेशियर से बर्फ का कोई टुकड़ा अलग होने की प्रक्रिया को काल्विंग कहते हैं.
यदि हम इसके कारण आने वाली बाढ़ की बात करें तो इसके दो कारण होते हैं. ग्लेशियरों के पिघलने से उनके करीब झीलें बनने लगती हैं, जिन्हें ग्लेशियल लेक कहते हैं. यह आकार में बढ़ती जाती हैं, लेकिन इनके किनारे बहुत कमजोर होते हैं. कई बार ग्लेशियर का टुकड़ा टूटकर इनमें गिरने से हुई हलचल से ये किनारे टूट जाते हैं और भारी मात्रा में पानी सैलाब बनकर दौड़ पड़ता है. यह हलचल कई बार भूकंप या बादल फटने से हुई बारिश से भी हो जाती है. इसके अलावा हर ग्लेशियर के अंदर बर्फ पिघलने से पानी बहता रहता है. कई बार इस पानी के बहने का रास्ता यानी ड्रेनेज ब्लॉक हो जाती है. इस ब्लॉकेज में पानी अपनी राह तलाशता है तो ग्लेशियर टूटने लगता है. कई बार यह प्रक्रिया इतनी ज्यादा हो जाती है कि पूरा ग्लेशियर टूटकर गिर जाता है, जिससे भयानक एवलांच आते हैं और बाढ़ आती है. इसे आउटबर्स्ट फ्लड (Outburst flood) कहते हैं.
3. 13 साल में 33 फीसदी बढ़ गईं ग्लेशियर झीलें
केंद्रीय जल आयोग (DWC) ने साल 2024 में ग्लेशियर झीलों को लेकर एक रिपोर्ट दी थी. इसमें बताया गया था कि हिमालयी इलाके के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे ग्लेशियर झीलों की संख्या और आकार बढ़ रहा है. देश के 5 राज्यों उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में झीलों का आकार 2011 से 2024 के दौरान करीब 33.7 फीसदी बढ़ गया है. इनमें भी 67 झीलें ऐसी हैं, जिनका आकार 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है. 2011 में 1,962 हेक्टेयर में फैलीं भारतीय ग्लेशियर झीलों का आकार सितंबर 2024 तक 2,623 हेक्टेयर हो गया था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि हिमालयी इलाके की उच्च जोखिम वाली ग्लेशियर झीलों से निचले क्षेत्रों में कभी भी बाढ़ की तबाही मच सकती है. भारतीय राज्यों पर यह खतरा सीमा से सटे चीन, तिब्बत, भूटान और नेपाल के हिमालयी इलाकों से भी मंडरा रहा है. वहां भी ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ रहा है, जिनके टूटने का असर भारतीय इलाकों में भी होगा.
4. ग्लोबल वार्मिंग ऐसे बन रही है खतरा
5. उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झील बेहद संवेदनशील
उत्तराखंड में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साल 2024 में 13 ग्लेशियर झीलों को बेहद संवेनशील माना था. इनमें भी 5 हिम लेक को संवेदनशीलता की A कैटेगरी में रखा गया था. इनमें से वसुधारा झील चमोली जिले में ही है, जबकि 4 झील पिथौरागढ़ जिले में हैं. इनसे थोड़ी कम संवेदनशील 4 झील B कैटेगरी में है, जिनमें एक चमोली, एक टिहरी और दो पिथौरागढ़ जिले में हैं. इनसे भी कम संवेदनशील 4 झील उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिलों में हैं.
6. अरुणाचल प्रदेश में भी 32 सालों में खत्म हो गए 110 ग्लेशियर
पिछले साल आई एक स्टडी में दावा किया गया था कि लगातार पीछे हट रहे हिमालय के ग्लेशियरों से विनाशकारी बाढ़ लगातार देखने को मिल सकती हैं. इसमें दावा किया गया था कि ग्लेशियर्स 16.94 किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे हट रहे हैं, जो बेहद खतरनाक स्थिति है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पूर्वी हिमालय में ग्लेशियर्स का सबसे बड़ा भंडार अरुणाचल प्रदेश है, जहां पिछले 32 साल में 110 ग्लेशियर हमेशा के लिए खत्म हो गए हैं.
7. महज बाढ़ नहीं जल संकट का भी कारण बनेगी ग्लेशियरों की अनदेखी
ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार यदि इसी तरह जारी रही तो साल 2099 तक हिमालयी इलाके के 80% ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे, जिनसे निकलने वाली नदियों पर निर्भर देशों यानी भारत, चीन, तिब्बत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान आदि में भयानक जल संकट भी पैदा हो सकता है, जिससे करीब 165 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं. पिछले साल आई इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की रिपोर्ट में 2011 से 2020 तक ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार की तुलना 2000 से 2010 के बीच की रफ्तार से की गई थी. इस तुलना में सामने आया था कि ग्लेशियर अब पहले से 65% ज्यादा तेज गति से पिघल रहे हैं, जो बेहद चिंता की बात है.
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