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डीएनए एक्सप्लेनर
J-K Assembly Election Result 2024: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे पूरी तरह साफ हो गए हैं. फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनना तय हो गया है, जबकि महज तीन महीने पहले उमर अब्दुल्ला अपनी लोकसभा सीट तक नहीं बचा सके थे.
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J-K Assembly Election Result 2024: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे पूरी तरह स्पष्ट हो चुके हैं. फारुक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने इन चुनावों में बाजी मार ली है. इस गठबंधन को 42 सीट मिली हैं, जबकि भाजपा को 29 सीट हासिल हुई हैं. इसके उलट महबूबा मुफ्ती की PDP महज 3 सीटों पर सिमट गई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के इस प्रदर्शन को बेहद हैरानी के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि महज चार महीने पहले लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी को करारा झटका लगा था. उस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस का परफॉर्मेंस विजेता जैसा नजर नहीं आया था और उसे 5 लोकसभा सीटों में से 3 पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद 2 सीटों पर ही जीत मिली थी, जबकि उसके समर्थन के बावजूद कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार हार गए थे. यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री व फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला खुद भी बारामुला सीट पर राशिद इंजीनियर के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवार से हार गए थे. ऐसे में माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस कोई खास असर नहीं छोड़ सकेगी, लेकिन नतीजे इसके ठीक विपरीत आए हैं.
चार महीने में नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए मंजर कैसे बदल गया, आइए पढ़ते हैं इन 5 पॉइंट्स में-
1. पीडीपी का BJP के साथ जाना नहीं भूले लोग, NC को मिला लाभ
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने सबसे तगड़ी चुनौती भाजपा या कांग्रेस की नहीं थी बल्कि उसे महबूबा मुफ्ती की पीडीपी से खतरा था. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और PDP, दोनों का ही कोर वोट एरिया जम्मू रीजन ना होकर कश्मीर घाटी रहा है. ऐसे में उनके बीच ही यहां मुकाबला था. पीडीपी ने 10 साल पहले हुए आखिरी विधानसभा चुनाव में 29 सीट हासिल की थी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को 16 सीट मिली थी. इसके बाद पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी. इस फैसले के चलते पीडीपी का जनाधार घाटी में बेहद कम हुआ था. इसका नजारा लोकसभा चुनाव 2024 में भी देखने को मिला था, जिसमें PDP एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. आज आए विधानसभा चुनाव परिणाम में भी पीडीपी का लगभग सूपड़ा साफ होता दिखा है. पीडीपी के खाते में महज 3 सीट पर ही जीत आई है. महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती तक को हार का सामना करना पड़ा है. माना जा रहा है कि पीडीपी से वोटर्स की इस नाराजगी का सीधा लाभ NC को मिला है.
2. धार्मिक ध्रुवीकरण में नेशनल कॉन्फ्रेंस को दिया लाभ
चुनावों में साफतौर पर धार्मिक ध्रुवीकरण भी दिखाई दिया है. भाजपा को 29 सीट पर जीत हिंदु बहुल जम्मू रीजन में ही मिली है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को कश्मीर घाटी के मुस्लिम बहुल इलाकों में जमकर वोट मिले हैं. इससे साफ दिख रहा है कि धर्म के आधार पर वोटिंग हुई थी, जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों के वोटर्स ने पीडीपी के बजाय नेशनल कॉन्फ्रेंस पर ज्यादा यकीन किया है.
3. अनुच्छेद 370 और राज्य का दर्जा बना बड़ा मुद्दा
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने अपनी चुनावी रैलियों में अनुच्छेद 370 को हटाया जाना और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा छिनने को मुद्दा बनाया था. राहुल गांधी रहे हों या उमर अब्दुल्ला, दोनों ने अपनी रैलियों में भाजपा पर इन दो मुद्दों पर ही निशाना साधा. साथ ही अनुच्छेद 370 और राज्य के दर्जे को दोबारा बहाल करने का वादा किया. माना जा रहा है कि यह चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. अनुच्छेद 370 हटने के बाद बाहरी लोगों के आकर बसने और जम्मू-कश्मीर में नौकरियों में हिस्सेदारी करने का डर बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया था, जिसे लेकर युवाओं ने कई बार हंगामा भी किया था. युवाओं के इसी डर को नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने टारगेट किया, जिससे ये दोनों बात बड़ा मुद्दा बन गईं.
4. भाजपा के खिलाफ इकलौती मजबूत पार्टी का तमगा
नेशनल कॉन्फ्रेंस को भले ही 10 साल पहले ज्यादा वोट नहीं मिली थी, लेकिन पार्टी एक बार भी भाजपा के साथ खड़ी दिखाई नहीं दी. अनुच्छेद 370 हटाने के बाद फारुक अब्दुल्ला व उमर अब्दुल्ला को लंबे समय तक नजरबंद रखा गया. इसमें भी दोनों नेता भाजपा के साथ जाते हुए दिखाई नहीं दिए. इसके उलट पीडीपी ने भाजपा के साथ सरकार बनाई और बाद में उसके कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए. इन सब कारणों से पीडीपी की छवि कमजोर होती पार्टी की बनी. चुनावी विश्लेषकों ने भी इसे नेशनल कॉन्फ्रेंस और भाजपा के बीच नैरेटिव की लड़ाई माना था, जिसमें बाजी फारुक अब्दुल्ला की पार्टी के हाथ लगी है. मुस्लिम वोटर्स ने भाजपा को चुनौती देने वाली पार्टी के तौर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस को ही मजबूत माना और उसके पक्ष में जमकर वोट किए.
5. गुलाम नबी आजाद की बदली छवि का भी लाभ NC को मिला
कांग्रेस छोड़कर पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी. इसके बाद माना जा रहा था कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के वोट काटेंगे और नेशनल कॉन्फ्रेंस को भी नुकसान पहुंचाएंगे, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि लोगों ने आजाद के कई बयानों को भाजपा के समर्थन वाला मानते हुए उन्हें नकार दिया. इसका लाभ भी नेशनल कॉन्फ्रेंस को ही मिला है, जो कश्मीर के मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में बोलने वाली इकलौती मजबूत पार्टी लगी है.
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