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Explainer: सच में लड़कियां कानून का गलत इस्तेमाल कर रही हैं? अतुल सुभाष सुसाइड केस के बीच जेंडर न्यूट्रल Law and order की मांग

सोशल मीडिया पर इन दिनों अतुल सुभाष सुसाइड केस चर्चा का विषय बना हुआ है. इस केस के बाद एक बार फिर देश में जेंडर न्यूट्रल कानून व्यवस्था की मांग उठने लगी है. आइए जानते हैं इस विषय पर विशेषज्ञों की राय.

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Explainer: सच में लड़कियां कानून का गलत इस्तेमाल कर रही हैं? अतुल सुभाष सुसाइड केस के बीच जेंडर न्यूट्रल Law and order की मांग

Atul Subhash Suicide Case: सोशल मीडिया पर इन दिनों अतुल सुभाष सुसाइड केस चर्चा का विषय बना हुआ है. बेंगलुरु में एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने लगभग डेढ़ घंटे के वीडियो में बताया है कि उनकी पत्नी, उनके परिवार और फैमिली कोर्ट की जज ने उन्हें परेशान किया. इन आरोपों के बाद इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली. इस केस के बाद सोशल मीडिया से लेकर देशभर में चर्चा चल रही है कि लड़कियां लड़कों पर झूठे आरोप लगाती हैं और कानून का गलत इस्तेमाल करती हैं. इस सब के बीच कानून के जानकार, मनोचिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की क्या राय है, आइए जानते हैं.

क्या बोलीं निर्भया केस की वकील सीमा कुशवाहा  
निर्भया मामले की वकील सीमा कुशवाहा का कहना है कि अगर कोई एक या दो महिला कानून का गलत इस्तेमाल कर रही है तो इसका ये मतलब नहीं है कि सभी महिलाएं गलत हैं. दूसरा, सोचना यह भी होगा कि आखिर अगर कोई महिला झूठा आरोप लगा रही है तो उसके पीछे वजह क्या है? तीसरा सुभाष के केस से यह भी समझना होगा कि लोग जिनके पास न्याय की मांग करने जाते हैं अगर वे ही भ्रष्ट हो जाएंगे तो लोग किसके पास न्याय की मांग करेंगे. सुभाष केस में जज रीता कौशिक पर रिश्वत मांगने का भी आरोप है. ऐसे में सीमा कुशवाहा ने कानून व्यवस्था में जो कमियां हैं, उन पर काम करने की बात कही है. न्यायिक व्यवस्था को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और फेयर ट्रायल करने होंगे.  

'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ की बात करो और बेटों को मार दो'
'पुरुष आयोग' नामक संस्था चलाने वाली बरखा त्रेहन कहती हैं कि अतुल सुभाष कोई पहला केस नहीं है बल्कि देश में ऐसे कितने लड़के हैं जो पत्नियों, लड़कियों के शोषण से मर जाते हैं. हम देश में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ की बात करते हैं, लेकिन पुरुषों की बात नहीं करते. उन्हें मार दें क्या. इस देश में महिलाओं, पेड़-पौधों, कुत्तों, कीड़े-मकौड़ों सभी के लिए मंत्रालय है, कानून है लेकिन पुरुषों के लिए कुछ नहीं है. पुरुषों को झूठे केसेज में फंसकर अपनी जान गंवानी पड़ती है. इस देश में लड़कियों को समझना होगा कि रिवेंज लेने से बराबरी नहीं आएगी. इस देश में अब जेंडर न्यूट्रल कानून की जरूरत है.  

क्या सच में लड़कियां कानून का गलत इस्तेमाल कर रही हैं?
अभिनेत्री और मंडी सांसद कंगना रनौत ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में घटना पर हैरानी जाहिर की. घटना की निंदा की और कहा कि पूरा देश इससे हैरान है. पुरुषों के उत्पीड़न पर छिड़ी बहस के बीच कंगना ने कहा कि एक गलत महिला के कारण महिलाओं के उत्पीड़न को नहीं झुठलाया जा सकता है.  उन्होंने कहा ऐसे मामलों में 99 फीसदी पुरुषों का ही दोष होता है.'  इस मामले में एनसीआरबी के आंकड़े अलग ही सच्चाई बताते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, हर साल 60,000 से ज्यादा पुरुष 498A (घरेलू हिंसा) के झूठे आरोपों के कारण कोर्ट के चक्कर काटते हैं. आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं के मुकाबले 2.5 गुना ज्यादा है, और इनमें से बड़ी संख्या पारिवारिक विवादों के कारण आत्महत्या करने वाले पुरुषों की होती है. झूठे मामलों का सामना करने वाले पुरुषों में से कई मानसिक तनाव, अवसाद (डिप्रेशन) और आत्मघात (सुसाइड) की ओर बढ़ जाते हैं.

'लड़कियां बदनाम हो जाती हैं, पर लड़के नहीं...'
लंबे समय से महिला मुद्दों पर लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार रश्मि काओ कहती हैं कि यह इस समाज का दुर्भाग्य है कि जब लड़कियां थोड़ा बहुत भी गलत करती हैं तो बदनाम हो जाती हैं, लेकिन कानून का सहारा लेकर रेपिस्ट छूट जाता है, आरोपी बरी हो जाते हैं तब सोशल मीडिया या समाज में हंगामा नहीं मचता. अब अतुल सुभाष केस के जरिए एक बार फिर लड़कियों को कहा जा रहा है कि वे कानून का मिसयूज कर रही हैं. क्या लड़के कानून का मिसयूज नहीं करते? क्या रेप विक्टिम के साथ कानून का मिसयूज नहीं किया जाता? लड़कियों को धमकाया जाता है, तब कोई कुछ क्यों नहीं कहता? इस मूल्क में जस्टिस मांगना ही गुनाह है. आप चुप रहें तो किसी को दिक्कत नहीं होती, पर जब बोलने लग जाते हैं तो सभी को समस्या होने लगती है. मैं न स्त्री की तरफ की कह रही हूं न ही पुरुष की तरफ की. मैं सिर्फ जस्टिस के हक में हूं.

कैसे होता है पुरुषों की मानसिक सेहत पर असर?
भोपाल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ.सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कानून बनाए गए हैं, जैसे 498A (घरेलू हिंसा), दहेज निषेध अधिनियम और बलात्कार से जुड़े कानून. इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से सुरक्षा देना है, लेकिन, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, जहां एक ओर ये कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं. वहीं, इनका गलत इस्तेमाल भी एक कड़वी सच्चाई है. कई बार, इन कानूनों का झूठे मामलों में पुरुषों और उनके परिवार को फंसाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह स्थिति पुरुषों के लिए मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद (डिप्रेशन) का कारण बन सकती है.


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डॉ. सत्यकांत कहते हैं कि जब किसी पुरुष पर दहेज उत्पीड़न (498A) या घरेलू हिंसा का झूठा आरोप लगाया जाता है, तो उसे खुद को सही साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है. समाज में पुरुष को अक्सर दोषी मान लिया जाता है, भले ही मामला कोर्ट में लंबित हो. ऐसे में उसे परिवार और समाज की उपेक्षा भी सहनी पड़ती है. झूठे आरोप के कारण लोग उसे अपराधी के रूप में देखना शुरू कर देते हैं, जिससे आत्म-सम्मान पर चोट लगती है.  

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