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'आप राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते' Supreme Court पर भड़के उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar, जज कैश कांड पर की खिंचाई, पढ़ें 5 पॉइंट्स

Jagdeep Dhankhar On Supreme Court: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से नाराज हैं, जिसमें विधानसभा से पारित बिलों पर फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालो के लिए डेडलाइन तय की गई है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को खरी-खरी सुनाई है.

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'आप राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते' Supreme Court पर भड़के उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar, जज कैश कांड पर की खिंचाई, पढ़ें 5 पॉइंट्स

Jagdeep Dhankhar On Supreme Court: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को जमकर खरी-खरी सुनाई है. उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आप देश के राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते हैं. राष्ट्रपति बेहद ऊंचा पद है और वह संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेता है. उपराष्ट्रपति ने यह नाराजगी सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय के कई दिन बाद जताई है, जिसमें टॉप कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए सदन से पारित बिलों पर फैसला लेने के लिए डेडलाइन तय की है. इसे लेकर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका के खिलाफ बेहद कड़ा रुख दिखाया है. धनखड़ ने कहा कि हमारे यहां यह व्यवस्था नहीं हो सकती, जिसमें कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकती है. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 (Article 142 of the Constitution) को लेकर भी निशाना साधा, जो सुप्रीम कोर्ट को स्पेशल पॉवर्स देता है. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 न्यायपालिका के लिए लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ चौबीसों घंटे उपलब्ध परमाणु मिसाइल बन गया है.' उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के जज के यहां भारी मात्रा में मिली नकदी के मामले में की गई कार्रवाई पर भी सवाल उठाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को लेकर सवाल करते हुए तंज कसा कि संविधान में व्यवस्था नहीं होने के बावजूद जजों के लिए अलग ही सिस्टम काम कर रहा है.

आइए आपको 5 पॉइंट्स में बताते हैं कि जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट से क्या-क्या कहा है-

1. 'सुपर पार्लियामेंट की तरह व्यवहार कर रहे हैं जज'
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित 10 बिलों को लेकर एक फैसला दिया है, जिसमें राष्ट्रपति से लेकर राज्यपालों तक के लिए विधानसभाओं से पारित बिलों पर फैसला लेने के लिए 1 महीने की डेडलाइन तय की गई है. इसे लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बेहद नाराज हैं. उपराष्ट्रपति गुरुवार को राज्य सभा इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा,'भारत का राष्ट्रपति बेहद ऊंचा पद है, जो  संविधान की सुरक्षा, संरक्षण व बचाव की शपथ लेता है. हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिए गए हैं. हम किस दिशा में जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें अति संवेदनशील होना पड़ेगा. यह रिव्यू दाखिल करने या नहीं करने की बात नहीं है. हमने इस दिन के लिए कभी लोकतंत्र का मोलभाव नहीं किया था.' धनखड़ ने कहा,'राष्ट्रपति को कहा जा रहा है कि वह तय समय में फैसला ले, वरना वो कानून बन जाएगा. हमारे पास ऐसे जज हैं, जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद की तरह व्यवहार करेंगे, और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता.' धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को मिली स्पेशल पॉवर्स के प्रावधानों पर बोलते हुए कहा, 'हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर? आपके पास संविधान में अनुच्छेद 145(3) के तहत केवल संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है. उसके लिए भी 5 या उससे ज्यादा जज होने चाहिए. अनुच्छेद 142 की बात करें तो यह लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध रहने वाली परमाणु मिसाइल जैसा बन गया है.' 

2. दिल्ली हाई कोर्ट के जज के यहां मिली नकदी को लेकर की खिंचाई
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा (Judge Yashwant Varma) के यहां भारी मात्रा में मिली नकदी पर भी बात की. उन्होंने कहा,'यह घटना (नकदी मिलना) नई दिल्ली में 14 और 15 मार्च की दरम्यानी रात में एक जज के घर पर हुई थी. सात दिन तक इसके बारे में कोई नहीं जानता था. हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए. क्या देरी का कोई कारण है? क्या यह माफी योग्य है? क्या यह कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठाता? किसी भी सामान्य परिस्थिति में (सामान्य परिस्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं) चीजें अलग होतीं.'

3. 'देश सांस रोककर जज की नकदी मामले में कार्रवाई का इंतजार कर रहा है'
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, धनखड़ ने जज के यहां मिली नकदी पर आगे कहा,'21 मार्च को एक अखबार ने इसका खुलासा किया, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं देखे गए सदमे में थे. इसके बाद हमें सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक स्रोत से पब्लिक डोमेन में इनपुट मिला, जिसने दोष साबित होने का संकेत दिया. लेकिन कुछ तो है, जिसकी जांच होनी चाहिए. देश सांस रोककर कार्रवाई का इंतजार कर रहा है. राष्ट्र बेचैन है, क्योंकि हमारी एक संस्था, जिसे लोग हमेशा सर्वोच्च सम्मान और आदर के साथ देखते हैं, उसे कटघरे में खड़ा किया गया है.' \

4. 'संविधान में जजों पर एफआईआर के लिए मंजूरी लेने जैसी व्यवस्था नहीं'
धनखड़ खुद राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील के तौर पर वकालत कर चुके हैं. धनखड़ ने कहा,'जज के खिलाफ नकदी मिलने पर कोई FIR दर्ज नहीं की गई. इस देश में किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है, किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ, यहां तक ​​कि आपके सामने मौजूद व्यक्ति के खिलाफ भी. इसके लिए केवल कानून के शासन को सक्रिय करना होता है. इसके लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन अगर यह जजों और उनकी कैटेगरी का मामला है, तो एफआईआर सीधे दर्ज नहीं की जा सकती. इसके लिए न्यायपालिका में संबंधित लोगों से मंजूरी लेनी होती है, लेकिन संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दी गई है. भारत के संविधान में अभियोजन के खिलाफ इम्युनिटी केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही दी गई है तो फिर कानून से परे एक कैटेगरी (जजों) को यह इम्युनिटी कैसे मिली?' धनखड़ ने आगे कहा,'इसके दुष्परिणाम सब महसूस कर रहे हैं. हर भारतीय इस पर बहुत चिंतित है. अगर यह घटना उनके (आम भारतीय के) घर पर हुई होती, तो कार्रवाई की गति इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट की तरह होती. फिलहाल इसकी गति मवेशी गाड़ी जैसी भी नहीं है.'

5. 'तीन जजों की समिति क्यों कर रही है इसकी जांच?'
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने जज कैश कांड की जांच तीन जजों की समिति को सौंपने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि जांच करना कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है, फिर कैश कांड की जांच तीन जजों की समिति क्यों कर रही है? उन्होंने सवाल पूछा,'क्या तीन न्यायाधीशों की इस समिति को संसद से पारित किसी कानून के तहत मंजूरी मिली हुई है? यह समिति क्या कर सकती है? समिति अधिक से अधिक सिफारिश कर सकती है. किसे और किसके लिए सिफारिश? जजों के लिए हमारे पास जिस तरह का सिस्टम है, उसमें संसद ही अंतिम रूप से कार्रवाई कर सकती है. जब निष्कासन की कार्यवाही शुरू होती है, तो एक महीना बीत चुका होता है, उससे भी ज्यादा और जांच में तेजी, तत्परता, दोषी ठहराने वाली सामग्री को सुरक्षित रखने की जरूरत होती है. देश का नागरिक होने और संवैधानिक पद पर आसीन होने के नाते, मैं चिंतित हूं. क्या हम कानून के शासन को कमजोर नहीं कर रहे हैं?' 

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