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Justice Yashwant Varma विवाद के बीच एक बड़ा फैसला, कैश कांड में बरी हुईं Justice Nirmal Yadav, जानें क्या था 17 साल पुराना केस

Cash at Judge’s Door Case: दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के घर होली के दिन लगी आग में भारी मात्रा में कैश जलने का विवाद जारी है. साल 2008 में ऐसे ही एक विवाद में जस्टिस निर्मल यादव (Justice Nirmal Yadav) भी फंसी थीं.

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Justice Yashwant Varma विवाद के बीच एक बड़ा फैसला, कैश कांड में बरी हुईं Justice Nirmal Yadav, जानें क्या था 17 साल पुराना केस

Justice Nirmal Yadav को उनके ऊपर लगे आरोप से पूरी तरह बरी कर दिया गया है. (फाइल फोटो)

Cash at Judge’s Door Case: दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के घर आग में करोड़ों रुपये की नकदी जलने का विवाद चर्चा में है. इस विवाद में जांच बैठ गई है और जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर हो गया है. जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की मांग बार एसोसिएशन ने उठाई है. इस विवाद के बीच एक ऐसे केस का फैसला आया है, जिसकी चर्चा जस्टिस वर्मा के विवाद के बीच शुरू हुई थी. चंडीगढ़ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने शनिवार को 17 साल पुराने 15 लाख रुपये की नकदी से भरे पैकेट के मामले में रिटायर्ड जज जस्टिस निर्मल यादव (Justice Nirmal Yadav) को बरी कर दिया है. साल 2008 में इस नकदी का पैकेट एक अन्य जज जस्टिस निर्मलजीत कौर (Justice Nirmaljit Kaur) के घर पहुंच गया था, जिन्होंने इसकी रिपोर्ट पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) के तत्कालीन चीफ जस्टिस से कर दी थी. जस्टिस निर्मल यादव उस समय पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट की सीटिंग जज थीं. अब उन्हें इस केस में निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया गया है.

जस्टिस निर्मल यादव ने कही बरी होने पर ये बात
चंडीगढ़ स्पेशल सीबीआई कोर्ट की जज अलका मलिक ने शनिवार को जस्टिस निर्मल यादव के केस में फाइनल फैसला सुनाया. उन्होंने जस्टिस निर्मल यादव के साथ ही इस केस में अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया है. फैसला आने के बाद रिटायर्ड जस्टिस निर्मल यादव ने अपना बयान जारी किया है, जिसमें उन्होंने कहा,"मैंने कोई अपराध नहीं किया था और पूरे ट्रायल के दौरान भी मेरे खिलाफ कोई आपराधिक सबूत नहीं मिला है.'

अब जान लीजिए क्या था पूरा मामला
17 साल पहले 13 अगस्त, 2008 को एक व्यक्ति 15 लाख रुपये की नकदी से भरा पैकेट लेकर जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंच गया था. यह पैकेट उसे कथित तौर पर जस्टिस निर्मल यादव के आवास पर ले जाना था, लेकिन एक जैसे नाम के कंफ्यूजन में वह व्यक्ति गलती कर गया और पैकेट जस्टिस कौर के आवास पर लेकर पहुंच गया. जस्टिस कौर ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ ही चंडीगढ़ पुलिस (Chandigarh Police) को भी इस बात की जानकारी दी. इसके बाद 16 अगस्त, 2008 को इस मामले में पहली FIR दर्ज की गई. 10 दिन बाद चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के तत्कालीन प्रशासक जनरल (रिटायर्ड) एसएफ रोड्रिग्स ने इस केस को CBI के हवाले कर दिया, जिसने 28 अगस्त, 2008 को इस केस में नए सिरे से FIR दर्ज की.

जांच में सामने आया हरियाणा के पूर्व ASG का नाम
पुलिस जांच के दौरान यह बात सामने आई कि 15 लाख रुपये का पैकेट लेकर आने वाला शख्स हरियाणा के पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल (ASG) संजीव बंसल का क्लर्क था, जिसने कथित तौर पर जस्टिस कौर को फोन करके बताया था कि यह धनराशि वास्तव में निर्मल सिंह नामक व्यक्ति के लिए थी, लेकिन गलती से उनके आवास पर पहुंच गई. जनवरी, 2009 में सीबीआई ने इस मामले में जस्टिस यादव को खिलाफ अभियोजन दाखिल करने की मंजूरी मांगी. हाई कोर्ट ने करीब डेढ़ साल बाद नवंबर, 2010 में इस बात की मंजूरी दी. जस्टिस यादव ने सीबीआई को केस चलाने की मंजूरी दिए जाने के खिलाफ याचिका दाखिल की, जो खारिज हो गई. इसके बाद राष्ट्रपति कार्यालय ने मार्च, 2011 में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी, जिसके बाद उसी महीने में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दी.

84 गवाह बनाए गए, जिनमें से 69 ने ही दी गवाही
इस मामले में ट्रायल शुरू होने पर अभियोजन ने 84 लोगों का गवाह के तौर पर नाम पेश किया, लेकिन इनमें से केवल 69 ने ही गवाही दी. इस साल फरवरी, 2025 में हाई कोर्ट ने सीबीआई को इनमें से 10 गवाहों का चार सप्ताह के अंदर दोबारा परीक्षण करने की इजाजत दी और ट्रायल कोर्ट को भी कहा कि इस मामले में और कोई बेफिजूल स्थगन नहीं दिया जाएगा.

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