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17 किलोमीटर, 19 मिनट और एक नई जिंदगी! दिल्ली-गाजियाबाद पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बना कर रचा इतिहास, जानें पूरा मामला

दिल्ली-गाजियाबाद पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बनाकर 17 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 19 मिनट में तय कराई और एक 49 वर्षीय मरीज को महिला डोनर का दिल देकर उसकी जान बचा ली.

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17 किलोमीटर, 19 मिनट और एक नई जिंदगी! दिल्ली-गाजियाबाद पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बना कर रचा इतिहास, जानें पूरा मामला

इंसानियत और तकनीक जब साथ मिलें, तो चमत्कार होना तय है. ऐसा ही एक चमत्कार देखने को मिला दिल्ली और गाजियाबाद के बीच, जब पुलिस और मेडिकल टीम ने मिलकर एक मरीज की जान बचाई. गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल से दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल तक सिर्फ 19 मिनट में एक दिल पहुंचाया गया. यह दिल एक 35 वर्षीय महिला डोनर का था, जिसे ब्रेन डेड घोषित किया गया था. दिल की इस सफल डिलीवरी से एक 49 वर्षीय व्यक्ति को नई जिंदगी मिली, जो इस्कीमिक कार्डियोमायोपैथी से पीड़ित था. यह कहानी न सिर्फ मेडिकल कामयाबी की है, बल्कि संवेदनशीलता, टीमवर्क और समय के महत्व की भी मिसाल है.

दिल्ली-गाजियाबाद पुलिस का बेहतरीन तालमेल

दिल्ली और गाजियाबाद पुलिस ने जब ग्रीन कॉरिडोर बनाने की जिम्मेदारी ली, तब उनकी प्लानिंग और तेज कार्यशैली ने यह दिखा दिया कि सही इरादे और टीमवर्क से कुछ भी मुमकिन है. सुबह 11:40 पर दिल गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल से निकला और ठीक 11:59 पर दिल्ली के ओखला स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल पहुंच गया. इस पूरी प्रक्रिया में सिर्फ 19 मिनट लगे, जबकि सामान्य दिनों में इस रूट को तय करने में अधिक समय लग सकता था.

मरीज को मिली नई जिंदगी

दिल की जरूरत एक 49 वर्षीय मरीज को थी जो इस्कीमिक कार्डियोमायोपैथी से जूझ रहा था. यह एक गंभीर बीमारी है जिसमें दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और पंपिंग क्षमता घट जाती है. मरीज पिछले साल अगस्त से NOTTO (नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन) की सूची में था. डोनर का दिल मिलने के साथ ही डॉक्टरों की टीम ने तेजी से ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू की.

डोनर परिवार का बड़ा फैसला

डोनर एक 35 वर्षीय महिला थीं, जिन्हें ब्रेन डेड घोषित किया गया था. उनके परिवार ने एक साहसिक और मानवीय निर्णय लेते हुए अंग दान की अनुमति दी. इस एक फैसले ने कई लोगों को नया जीवन दिया.


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डॉक्टरों और पुलिस का आभार

फोर्टिस अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. विक्रम अग्रवाल ने पुलिस और ट्रैफिक टीम का आभार जताया और कहा कि बिना उनके सहयोग के समय पर ट्रांसप्लांट संभव नहीं हो पाता. यह घटना दिखाती है कि अगर सही समय पर सही कदम उठाए जाएं, तो जिंदगी को बचाया जा सकता है. यह घटना केवल एक सफल ट्रांसप्लांट नहीं, बल्कि एक बड़ी सीख है कि जिंदगी बचाने के लिए एकजुटता, संवेदनशीलता और समय का मूल्य सबसे ऊपर है.

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