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भारत
पटना विश्वविद्यालय के चुनाव परिणाम में 5 विजेताओं में से तीन पदों पर महिलाओं की जीत हुई है. इसके बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर क्या सियासी मायने हैं. आइए जानते हैं.
बिहार में इस साल के आखिरी में पटना विश्वविद्यालय के चुनाव होने हैं. ये चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने हैं. इस चुनाव को लेकर सभी पार्टियां पूरजोर तरीके से चुनाव की तैयारी कर रही है. बयानबाजियों का दौर शुरू हो चुका है. साथ ही पार्टियों की ओर से चुनावी रणनीतियां तैयार की जा रही हैं. इसी बीच पटना में छात्रसंघ का चुनाव हुआ है, और उसके नतीजे आ चुके हैं. इस बार के नतीजे ऐतिहासिक रहे हैं. पहली बार पटना यूनिवर्सिटी को एक महिला अध्यक्ष मिला है. अध्यक्ष पद के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की मैथिली मृणालिनी जीती हैं. कुल 5 विजेताओं में से तीन पदों पर महिलाओं की जीत हुई है. इसके बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर क्या सियासी मायने हैं. आइए जानते हैं.
CM नीतीश की ओर से महिला सश्क्तिकरण का दावा
वहीं सीएम नीतीश कुमार की ओर से दावा किया जाता है कि उन्होंने महिला सशक्तिकरण के किए पिछले 19 सालों में काफी कुछ काम किया है. उनका दावा है कि नीतीश कुमार के राज में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बड़ा इजाफा देखने को मिला है. आपको बताते चलें कि 1992 के 73वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक स्वीकृति प्रदान की गई थी. इसके तहत जिसमें पंचायतों में महिलाओं को लेकर 33% कोटा का देने की बात कही गई थी. बिहार के नीतीश सरकार की ओर से 2006 में इसके भीतर बढ़ोतरी की गई, और इसे बढ़ाकर 50% कर दिया गया है. जानकारों के मुताबिक पंचायती राज में इससे महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भारी वृद्धि देखी गई है.
महिला: एक मजबूत वोट बैंक
आपको बताते चलें कि महिलाओं को आधी आबादी के तौर पर समझा जाता है. महिलाओं के वोटिंग पैटर्न में अब खासा बदलाव देखा गया है. एक समय था जब ज्यादातर महिलाएं घर के मुखिया के मुताबिक ही मतदान करती थी. अब इस पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अब महिलाएं स्वतंत्र तौर पर मताधिकार का प्रयोग कर रही हैं. वो अब अपने मुद्दों के अनुसार ही मताधिकार करती हैं. वहीं दूसरी ओर से केंद्र में पीएम मोदी की सरकार की तरफ से भी बड़े स्तर पर महिला सशक्तिकरण के प्रोग्राम को चलाया जा रहा है. साथ ही सभी पार्टियों की ओर से महिलाओं को सियासी तौर पर रिझाया जा रहा है. ताकि बड़ी संख्या में मौजूद उनके वोट्स को अपने पक्ष में किया जाए. बिहार के विधानसभा चुनाव में भी इस ट्रेंड को देखा जा सकता है. हो सकता है कि हमें ये देखने को मिले कि पार्टियां ज्यादा से ज्यादा महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारे. या नई सरकार के गठन में महिलाओं की हिस्सेदारी पहले के मुकाबले बढ़ें.
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