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Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर घमासान मचा है. छोटे दल अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं और बीजेपी-जेडीयू पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, एनडीए के अंदर सीटों को लेकर सियासी खींचतान तेज हो गई है. बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के बड़े स्तंभ हैं, लेकिन छोटे दलों जिनमें लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), राष्ट्रीय लोक जनता दल और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने अपनी हिस्सेदारी को लेकर नाराजगी जतानी शुरू कर दी है. इन दलों के नेता बीते कुछ दिनों से लगातार बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में इस पूरी कवायद को 'गीदड़भभकी' के तौर पर देखा जा रहा है या फिर इसे गठबंधन में बराबरी की लड़ाई का हिस्सा माना जा रहा है? आइए जानते हैं आखिर पूरा माजरा क्या है?
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से बीजेपी और जेडीयू करीब-करीब बराबर हिस्सेदारी चाहते हैं यानी 100-105 सीटें हर पार्टी के हिस्से में जाएं. ऐसे में छोटे दलों के लिए बची सीटें काफी कम हैं.जिससे वो नाखुश दिख रहे हैं. सूत्रों की माने तो चिराग पासवान 40-50 सीटों की मांग कर रहे हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा को 10-15 सीटें चाहिए. जितन राम मांझी भी 20-30 सीटें चाहते हैं. मगर रिपोर्ट्स के मुताबिक लोजपा (रामविलास) को 22-25 सीटें, हम पार्टी को 5-7 सीटें और रालोमो को 4-5 सीटें मिलने की उम्मीद है.
बीते कुछ दिनों में जिस तरह से बिहार की राजनीति में बयानबाजी हो रही है उससे इसका अनुमान लगाना सटीक हो गया है कि एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर काफी उथल-पुथल मचा है. हाल ही में कुशवाहा ने बयान दिया, 'अगर मैं डूबा तो आप भी डूबेंगे.' वहीं चिराग पासवान ने कहा, 'बिहार मुझे बुला रहा है,' जो साफ संकेत हैं कि ये नेता गठबंधन में अनदेखी से नाराज हैं. जानकार मानते हैं कि ये बयान महज गठबंधन पर दबाव बनाने के लिए हैं, ताकि सीटों की संख्या बढ़वाई जा सके.
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अगर ये छोटे दल गठबंधन से बाहर जाते हैं या कमजोर चुनावी प्रचार करते हैं, तो इसका सीधा असर दलित, पिछड़ा और क्षेत्रीय वोट बैंक पर पड़ सकता है. इससे एनडीए की जीत मुश्किल हो सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां इन दलों का सीधा प्रभाव है. बिहार में एनडीए के अंदर सीटों को लेकर जो खींचतान चल रही है, वह सिर्फ आंकड़ों की नहीं बल्कि राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है. अब देखना यह है कि बीजेपी और जदयू इन नेताओं की गीदड़भभकी को नजरअंदाज करती है या समझौते का रास्ता निकालती है.
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