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कैंसर से लड़ने के लिए भारत में भी CAR T-Cell Therapy का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, यह थेरेपी कैंसर के इलाज में काफी कारगर साबित हो रही है.
भारत में कैंसर की बीमारी तेजी से बढ़ रही है, National Institutes of Health (NIH) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत में कैंसर के 14 लाख 61 हजार से अधिक केस सामने आए थे. कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका नाम सामने आते ही लोगों के जहन में डर बस जाता है. आकड़ों की मानें तो भारत में हर 5 में से 3 लोग कैंसर के इलाज के बाद दम तोड़ देते हैं.
बता दें कि कैंसर से लड़ने के लिए भारत में भी CAR T-Cell Therapy का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, यह थेरेपी कैंसर के इलाज में काफी कारगर साबित हो रही है. हाल ही में आई एक स्टडी सामने आई है जो बताती है कि भारत में इस थेरेपी का क्या असर हुआ है.
बता दें कि सीएआर टी-सेल थेरेपी यानी काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी शरीर के इम्यून सेल को ट्रेन करती है कि वो खुद से कैंसर के सेल की पहचान कर, उन्हें नष्ट कर दे. एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह सिस्टम विशिष्ट तरह के बल्ड कैंसर के लिए डिजाइन किया गया है. यह थेरेपी उन मरीजों को दी जाती है, जिन्हें या तो दोबारा कैंसर हुआ है या फिर फर्स्ट-लाइन ट्रीटमेंट में कैंसर का पता नहीं चलता है.
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द लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की पहली सीएआर टी-सेल थेरेपी के क्लीनिकल ट्रायल रिजल्ट बताते हैं कि इस ट्रीटमेंट का असर लगभग 73 फिसदी मरीजों पर हुआ है. देश में किया गया यह एक विश्व स्तरीय इनोवेशन है, भारत के औषधि नियामक (Drug Regulator) ने 2023 में इस थेरेपी को मंजूरी दी थी.
यह थेरेपी अब भारत के कई अस्पतालों में उपलब्ध है. रिपोर्ट के मुताबिक इस 73% की प्रतिक्रिया दर के साथ स्टडी ने बल्ड कैंसर के दो टाइप- तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया पेशेंट में बिना किसी प्रगति के औसतन 6 महीने और लिम्फोमा पेशेंट में 4 महीने तक जीवित रहने की सूचना दी.
पॉजिटिव रिजल्ट के साथ इस थेरेपी के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं. पर भी नजर डालना जरूरी है. इस थेरेपी के बाद हेमोफैगोसाइटिक लिम्फोहिस्टियोसाइटोसिस के हाई केस सामने आए हैं. इस स्थिति में इम्यून सेल अनियंत्रित रूप से एक्टिव हो जाते हैं, जिसकी वजह से हाइपर सूजन और ऑर्गन डैमेज तक की समस्या हो सकती है.
इसके अलावा इस थेरेपी के सबसे ज्यादा कॉमन साइड इफेक्ट्स में एनीमिया है. ऐसी स्तिथि में 61% प्रतिभागियों में एनीमिया, 65% मरीजों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया, 96% मरीजों में न्यूट्रोपेनिया और 47% मरीजों में फ़ेब्राइल न्यूट्रोपेनिया का सामना करना पड़ा है. बता दें कि ये पहले से ही बेहद बीमार कैंसर मरीज थे जिन पर बाकी ट्रीटमेंट का कोई असर नहीं हो रहा था.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें.)
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