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मर्दानगी बन रही मौत की वजह, पुरुष पड़ रहे अकेले, TCS मैनेजर मानव शर्मा की मौत के बाद उठ रहे 'कैसा पति' जैसे सवाल

TCS मैनेजर मानव शर्मा की खुदकुशी के एक बार फिर मर्दों के मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा शुरू हो गई है. इस केस के बाद लोग फिर अतुल सुभाष केस को याद करने लगे हैं. यहां समझें इस समस्या से कैसे निपटें.

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मर्दानगी बन रही मौत की वजह, पुरुष पड़ रहे अकेले, TCS मैनेजर मानव शर्मा की मौत के बाद उठ रहे 'कैसा पति' जैसे सवाल

Toxic masculinity and mental health: अतुल सुभाष केस के बाद अब TCS मैनेजर मानव शर्मा की खुदकुशी के बाद एक बार फिर ये बहस छिड़ गई है कि आखिर मर्द खुद की जान ले क्यों रहे हैं? क्या मात्र उनकी पत्नियां ही उनकी मौत की वजह हैं या ये समाज और उसमें व्याप्त पितृसत्ता और उससे जन्मी मर्दानगी वजह है. लैंगिक समानता के लिए काम करने वाली मधुबाला का कहना है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आत्महत्या करने वालों में 72.5% पुरुष और 27.5% महिलाएं थीं. इससे समझ आता है कि पुरुष आत्महत्या ज्यादा करते हैं. पुरुषों की आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं. 

'सामाजीकरण है समस्या'
मधुबाला कहती हैं कि सामाजीकरण ने मर्दों को जिस तरह से पाला है, उसमें पावर मर्दों के हाथों में ज्यादा है और जब ये पावर छिनती है तो मौत जैसे कदम उठाए जाते हैं. मर्दों को मर्दानगी से लड़ना नहीं बल्कि दर्द को छुपाना सिखाया जाता है. मर्दानगी ने सिखाया कि पत्नी पर तुम्हारा हक है. अगर पति पत्नी को कंट्रोल नहीं कर पाया तो उस पर 'कैसा पति' है जैसे सवाल उठते हैं.  समाज उनसे बार-बार पूछता है कि तू कैसा पति अपनी पत्नी को कंट्रोल में नहीं रख पाया. तू कैसा मर्द है अपनी औरत को अपने पास नहीं रख पाया. ये जो कैसा मर्द होने का डर होता है वो इंसान को मौत की तरफ ले जाता है. 

'सामाजिक ढांचे पर सवाल'
भोपाल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि यह घटना एक बार फिर उस सामाजिक ढांचे पर प्रश्नचिह्न लगाती है, जो पुरुषों से कठोर, सहनशील और भावनात्मक रूप से मजबूत रहने की उम्मीद करता है. जब पुरुष इससे इतर बिहेव करता है तो उसे अलग नजरों से देखा जाता है.  इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है इमोशनल लिबरेशन, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की आजादी रखते हों. वहीं, पुरुष अगर खुद को अकेला महसूस कर रहा है तो अपने दोस्त, परिवार या मनोचिकित्सक से बात करें. बात से ही समाधान है. आत्महत्या से नहीं.  

शादी है वजह?
इस तरह के केस आने के बाद भारत में युवा शादी न करने की बात कहने लगते हैं. वहीं, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट भी बताती है कि भारत में युवाओं के बीच शादी न करने की प्रवृत्ति में बढ़ी है. 2011 में, 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के अविवाहित व्यक्तियों का अनुपात 17.2% था. 2019 में, यह अनुपात बढ़कर 23% हो गया. वहीं, मधुबाला का कहना है कि शादी करना या न करना, एक निजी मसला है लेकिन मर्दानगी ने पावर सिखाया और पावर ने दूसरों को हथियाना सिखाया. जब कोई एक जोड़ा एक-दूसरे के साथ सहज नहीं हैं तो उसका विकल्प खिंचातानी और मौत नहीं है. दोनों को एक-दूसरे को समझना होगा. एक-दूसरे की पावर समझनी होगी. सत्ता के आयाम को समझना होगा.

यौनिकता पर सवाल
TCS मैनेजर मानव शर्मा ने वीडियो बनाकर बताया है कि वह अपनी पत्नी के अफेयर से परेशान था. ऐसे में मधुबाला बताती हैं कि बात जब यौनिकता पर आती है तो अगर एक औरत दूसरे पुरुष के पास यौनिकता के लिए जाती है तो पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है क्या उसकी डिजायर को लेकर समाज ने सोचा है. क्या कभी दोनों एक-दूसरे से अपनी इच्छाओं को लेकर बात की है?  वहीं, जब एक पुरुष किसी दूसरी औरत के पास जाता है तो क्या सिर्फ मर्दानगी है या 'मैं दूसरों पर राज करता हूं' की सोच होती है. उसको इस बात से ज्यादा दिक्कत है कि मैं मर्द होकर फेल हो गया और अपनी औरत को कंट्रोल में नहीं रख पाया. मैं कैसा मर्द हूं जो अपनी औरत को अपने पास नहीं रख पाया. ये जो कैसे मर्द होने का डर है ये मृत्यू की तरफ ले जाता है.  

'पावर से रिश्ते नहीं बनते'
अपनी मर्दानगी को समझना है. जिन रिश्तों में पावर रिलेशन है. वो रिश्ते कभी नहीं टिकेंगे. पास्ट किसका नहीं होता. क्या औरतें इसी तरह से सुसाइड करती हैं. ज्यादातर औरतें लड़ रही हैं. हम एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं. हमारी लड़ाई सोच की लड़ाई है. इंसानियत के तौर पर कोई एक-दूसरे से नफरत नहीं करता है. न मातृसत्ता अच्छी है और पितृसत्ता अच्छी. ये महिला बनाम पुरुष की लड़ाई नहीं है. ये बनाम सिर्फ एक प्रोपेगैंडा बना दिया है.  हमें समाज को जेंडर न्यूट्रैलिटी की तरफ ले जाना होगा, जहां एक ऐसी सोच जिसमें किसी भी लिंग को प्राथमिकता न देकर समान अवसर दिए जाते हैं. 


यह भी पढ़ें - महिलाओं को मारना, काटना, टुकड़े करना Othello Syndrome या मर्दानगी की ताकत? पार्टनर पर बहुत गुस्सा आए तो क्या करें


 

'स्त्री बनाम पुरुष' नहीं, ये है समाधान
जब भी इस तरह की आत्महत्याएं होती हैं तो उसके बाद स्त्री बनाम पुरुष की एक बहस शुरू हो जाती है. दोनों एक-दूसरे के विरोधी हो जाते हैं, जबकि यहां विरोधी नहीं सोच की बात है. लड़ाई सोच से है इंसान से नहीं. इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए  मानसिक स्वास्थ्य पर खुली चर्चा, सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव, पारिवारिक और कार्यस्थल का सहयोग और लैंगिक समानता और संतुलन जैसे समाधान अपनाकर स्त्री-पुरुष को बचाया जा सकता है. प्यार के रिश्ते को बचाया जा सकता है. 

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