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J-K Assembly Elections 2024: राज्य नहीं अब है केंद्र शासित प्रदेश, क्या 370 की वापसी कर सकती है जम्मू-कश्मीर विधानसभा? जानें उसके अधिकार

Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में साल 2014 में आखिरी विधानसभा चुनाव हुए थे. साल 2019 में संविधान संशोधन के जरिये अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अब राज्य में पहली बार चुनाव हो रहे हैं.

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J-K Assembly Elections 2024: राज्य नहीं अब है केंद्र शासित प्रदेश, क्या 370 की वापसी कर सकती है जम्मू-कश्मीर विधानसभा? जानें उसके अधिकार

Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024 के पहले चरण के मतदान में पोलिंग बूथ पर जमकर भीड़ उमड़ी है.

Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों का उत्साह चरम पर है. घाटी में आतंकवाद का पहले जैसा डरावना दौर नहीं होने के चलते 18 सितंबर को विधानसभा चुनाव के पहले चरण में जबरदस्त मतदान हुआ है. 24 सीटों के लिए हुए मतदान में करीब 61% वोट डाले गए हैं, जो जम्मू्-कश्मीर में जम्हूरियत की नई बयार का संकेत दे रहे हैं. साल 2019 में केंद्र सरकार द्वारा संविधान संशोधन के जरिये जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त किए जाने के बाद ये पहले विधानसभा चुनाव हैं. जो एक मायने में खास हैं, क्योंकि 2019 के संशोधन में जम्मू-कश्मीर को राज्य की बजाय दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था. ऐसे में ये केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के पहले चुनाव हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब राज्य की विधानसभा के पास क्या अधिकार बाकी रह गए हैं? क्या विधानसभा उसी तरह कामकाज कर पाएगी, जिस तरह 2019 से पहले करती थी. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बनने पर अनुच्छेद 370 को दोबारा लागू करने की भी घोषणा की है. ऐसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या विधानसभा के पास अब ऐसा करने की शक्ति बची है? आइए इन सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

2014 के मुकाबले होगी इस बार बदली हुई विधानसभा

साल 2019 में जम्मू-कश्मीर का विभाजन करते हुए संविधान संशोधन के जरिये कई नियम बदल दिए गए हैं. ऐसे में यह निश्चित है कि इस बार के चुनाव के बाद सामने आने वाली निर्वाचित विधानसभा साल 2014 की विधानसभा के मुकाबले पूरी तरह बदली हुई होगी. नई विधानसभा के पास अलग तरह के अधिकार होंगे और उसे केंद्र सरकार के रहमोकरम पर ज्यादा निर्भर होना होगा. इसे ठीक दिल्ली जैसी स्थिति माना जा सकता है, जहां विधानसभा का निर्वाचन जनता द्वारा होता है और उसके बाद चुने हुए विधायक मुख्यमंत्री का  चयन करते हैं. इसके बावजूद राज्य सरकार को हर कदम पर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होती है.

अनुच्छेद-3 में संशोधन के जरिये हुआ था जम्मू-कश्मीर का विभाजन

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट, 2019 के जरिये केंद्र सरकार ने दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर का गठन किया था. इसके लिए केंद्र सरकार ने संविधान की प्रथम सूची और अनुच्छेद-3 में संशोधन किया था, जो नए राज्यों के गठन और इलाके, सीमा या मौजूदा राज्य के नाम में बदलाव से जुड़ा हुआ है. 

बदलाव के बाद लागू हो गया है अनुच्छेद 239

जम्मू-कश्मीर को संविधान संशोधन के जरिये केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद उस पर अनुच्छेद 239 लागू हो गया है. यह अनुच्छेद संविधान में केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन का निर्धारण करता है. इसमें कहा गया है कि हर केंद्र शासित इलाके का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाएगा. यह काम राष्ट्रपति एक एडमिनिस्ट्रेटर या जैसा उचित तरीका समझा जाए, उसके जरिये करते हैं.

जम्मू-कश्मीर पर लागू होगा अनुच्छेद 239A

भले ही केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन संविधान के अनुच्छेद-239 के जरिये संचालित होता है, लेकिन केंद्र सरकार के साल 2019 के पुनर्गठन कानून की धारा 13 के तहत जम्मू्-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 239A लागू हो रहा है. इस अनुच्छेद के तहत कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा और मंत्रिमंडल का गठन किया जा सकता है. इसी कारण केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का निर्वाचन हो रहा है.

अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पर कभी भी कुतर सकती है केंद्र सरकार

साल 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते के तहत भारत को वहां के रक्षा, विदेश मामले और संचार के मामले में नियम-कानून बनाने का अधिकार मिला था. इसके चलते साल 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण (abrogation of Article 370) से पहले जम्मू-कश्मीर के मामले में सीमित अधिकार मिले हुए थे. अब हालात अलग हैं. इसके चलते केंद्र सरकार जब भी चाहे राज्य विधानसभा के पर कतरकर अब कई अन्य तरह के कानून बनाने को भी केंद्रीय सूची में शामिल कर सकती है.

उपराज्यपाल के पास अब मंत्रिमंडल से ज्यादा अधिकार

पुनर्गठन कानून 2019 के तहत केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते जम्मू-कश्मीर में अब अलग तरह का प्रशासनिक फ्रेमवर्क लागू होता है, जो राज्य विधानसभा के मुकाबले उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार और ज्यादा बड़ी भूमिका देता है. 2019 के कानून में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के जिन अधिकारों का जिक्र किया गया है, उनमें धारा 53 बेहद खास है. इस धारा में उपराज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह कुछ मामलों में निर्वाचित मंत्रिमंडल के निर्णय से अलग अपने विवेकाधिकार के तहत फैसला ले सकते हैं. हालांकि इससे जम्मू-कश्मीर में भी उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच वैसा ही टकराव शुरू हो सकता है, जो हालिया दिनों में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की सरकार और उपराज्यपाल के बीच देखने को मिल रहा है.

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