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डीएनए एक्सप्लेनर
दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे. माना जा रहा है कि अपने जन्मदिन पर वह अपने बाद के दलाई लामा के चुनाव की प्रक्रिया के लिए क्लियर गाइडलाइन तय करेंगे.
दलाई लामा का जन्मदिन 6 जुलाई को है. इस साल दलाई लामा 90 साल के हो जाएंगे. साल 2011 में उन्होंने ऐलान किया था कि जब वो 90 साल के हो जाएंगे तो इस पर तिब्बत के वरिष्ठ लामाओं के साथ मिलकर दलाई लामा के पद के भविष्य को लेकर विचार करेंगे. कयास लगाए जा रहे हैं कि दलाई लामा के जन्मदिन पर अगले Dalai Lama के चुनाव को लेकर फ्रेमवर्क तैयार किया जा सकता है.
सितंबर 2011 में दलाई लामा ने कहा था, 'साल 1642 से लेकर अब तक 369 सालों से दलाई लामा ने आध्यात्मिक लीडर्स के साथ-साथ पॉलिटिकल लीडर्स की भूमिका निभाई है. मैं अब इसे खत्म कर रहा हूं और मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि हम दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही लोकतांत्रिक व्यवस्था अपना सकते हैं. मैंने 1969 में ही साफ कर दिया था कि संबंधित लोगों को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या भविष्य में पुनर्जन्म की प्रक्रिया को जारी रखा जाए.' उन्होंने कहा था कि क्लियर गाइडलाइन नहीं होने की स्थिति में इस प्रक्रिया के गलत इस्तेमाल का खतरा बना रहेगा. उन्होंने कहा था,'इसलिए मुझे ये जरूरी लगता है कि जब तक मैं शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हूं तब तक अगले दलाई लामा की पहचान को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए जाएं.'
दलाई लामा के जन्म का नाम ल्हामो थोंडुप (Lhamo Thondup) है. उनका जन्म तिब्बत के एक किसान परिवार में साल 1935 को हुआ था. जब वो दो साल के थे तब ही उन्हें दलाई लामा का 14वां पुनर्जन्म मान लिया गया था. दलाई लामा को तिब्बत का संरक्षक संत माना जाता है. इन्हें करुणा का बोधिसत्व भी कहा जाता है. बौद्ध धर्म में बोधिसत्व का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है और उनकी पूजा भी की जाती है. बौद्ध धर्म के मुताबिक, बोधिसत्व लोगों के बीच रहकर उनकी तकलीफों को दूर करते हैं, उन्हें सत्य और ज्ञान का रास्ता दिखाते हैं. दलाई लामा का आध्यात्मिक के साथ-साथ पॉलिटिकल महत्व भी होता है.
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साल 1950 में चीन की सेना ने तिब्बत पर आक्रमण किया और तिब्बत पर कब्जा जमाने की कोशिश शुरू की. दलाई लामा ने शांति स्थापित करने और चीन के नेताओं के साथ बातचीत की भी कोशिश की. लेकिन चीन का दबाव बढ़ता गया. साल 59 में उन्हें तिब्बत छोड़ना पड़ा था. वह धर्मशाला में रह रहे हैं.
तिब्बती परंपरा के अनुसार, दलाई लामा के निधन के बाद उनका पुनर्जन्म होता है. उनकी पहचान की जाती है और नए दलाई लामा के तौर पर उनके नाम का ऐलान किया जाता है. पहचान के लिए सबसे पहले पूर्ववर्ती दलाई लामा की चिट्ठी पढ़ी जाती है, जिसमें उन्होंने अपने अगले पुनर्जन्म को लेकर निर्देश लिखे होते हैं और ये भी लिखा होता है कि अगले दलाई लामा में क्या देखना है. इसके बाद ये देखा जाता है कि संभावित दलाई लामा को अपने पिछले जन्म की बातें याद हैं या नहीं. क्या वो उनकी चीज़ें पहचान सकते हैं या फिर क्या वो अपने करीबी लोगों को पहचान सकते हैं. इसके साथ ही आध्यात्मिक गुरुओं के परीक्षण के बाद अगले दलाई लामा के नाम का ऐलान किया जाता है.
मौजूदा दलाई लामा कई मौकों पर ये कह चुके हैं कि दलाई लामा की संस्था को बनाए रखने पर फैसला किया जाना चाहिए. उन्होंने साल 2019 में कहा था, 'एक मौका आया जब दलाई लामा की संस्था को शुरू किया गया. इसका मतलब है कि एक मौका ये भी आ सकता है कि दलाई लामा की संस्था की जरूरत न हो. ऐसे में रोक दो. कोई समस्या नहीं है. ये मेरी चिंता नहीं है. मुझे लगता है कि चीन के कम्युनिस्ट इसे लेकर ज्यादा चिंतित हैं.'
खबर है कि चीन दलाई लामा के पहचान की प्रक्रिया में दखल दे सकता है.चीन इस तरह का कदम एक बार उठा भी चुका है. तिब्बत में बौद्ध धर्म के दूसरे प्रमुख पद पांचेन लामा के पद पर दलाई लामा ने 1995 में 6 साल के Gedhun Choekyi Nyima को चुना था. वह बच्चा लापता हो गया. आरोप लगे की चीन की सरकार ने ही उसे गायब किया था. इसके बाद चीन की सरकार ने Gyaltsen Norbu को पांचेन लामा बना दिया.
तिब्बत की स्ट्रेटेजिक लोकेशन के चलते चीन के लिए तिब्बत जरूरी है. वह तिब्बत पर अपना पुरा हक चाहता है. तिब्बत में दलाई लामा का पद आध्यात्मिक दृष्टि के साथ-साथ राजनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस वजह से चीन की नज़र दलाई लामा के चुनाव पर है. इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन प्रक्रिया को प्रभावित करके एक ऐसे दलाई लामा का चुनाव कर सकता है जो चीन समर्थक हो. करीब चार दशक के दलाई लामा की मांग है कि चीन के अंदर तिब्बत को पूरी स्वायत्तता मिले.
दलाई लामा का पद भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है. फिलहाल दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बत की सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन का संचालन भारत से ही हो रहा है.
अमेरिका की बात करें तो उसने साफ किया है कि चीन के साथ उसके संबंधों के लिए तिब्बत एक जरूरी मुद्दा है. जो बाइडन सरकार ने साल 2024 में तिब्बत डिस्प्यूट ऐक्ट पास किया था, इसका मकसद ये था कि चीन की सरकार और दलाई लामा आपसी बातचीत से तिब्बत के मुद्दे का समाधान निकालें.
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