डीएनए एक्सप्लेनर
Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar VIdhan Sabha Chunav) में AIMIM ने राजद-कांग्रेस के महागठबंधन के साथ मिलकर उतरने की इच्छा जताई है. हालांकि Asaduddin Owaisi की पार्टी के लिए यह एंट्री आसान नहीं मानी जा रही है.
Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हुए हैं. ऐसे में सभी दलों ने अपने-अपने समीकरण पक्के करने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में बिहार की सियासी सरगर्मी अचानक असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी AIMIM ने बढ़ा दी है, जिसने बिहार चुनाव (Bihar Election 2025) में राजद-कांग्रेस के महागठबंधन के साथ मिलकर उतरने की इच्छा जताई है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रवक्ता आदिल हसन ने महागठबंधन से जुड़ने की इच्छा मीडिया के सामने जताते हुए लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की राजद (RJD) से BJP को हराने के लिए बड़ा दिल दिखाने की अपील की है. राजद ने भी सीधे तौर पर इंकार नहीं किया है. पार्टी की तरफ से इसका फैसला लालू के बेटे और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) पर छोड़ा गया है, जिन्हें लालू अपनी जगह कमान सौंप चुके हैं. लेकिन अब तक एआईएमआईएम का विरोध करने वाले तेजस्वी के लिए क्या उसके लिए बड़ा दिल दिखाना आसान होगा और यदि यह गठबंधन हुआ तो क्या भाजपा-जदयू (JDU) को इसका नुकसान होगा? चलिए इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.
पहले जानिए एआईएमआईएम ने गठबंधन के साथ क्या मांग रखी है
AIMIM प्रवक्ता आदिल हसन ने मंगलवार को पटना में मीडिया के सामने महागठबंधन से जुड़ने की रुचि दिखाई थी. उन्होंने भाजपा को हराने और बिहार को सशक्त बनाने के लिए महागठबंधन में शामिल होने की बात कही है. हालांकि हसन ने खुद माना था कि साल 2020 में भी महागठबंधन ने उनकी पार्टी के आग्रह को ठुकरा दिया था. उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनना है. हमारी मांग केवल सीमांचल के लिए आर्थिक पैकेज की है. इस पर राजद बड़ा दिल दिखाए तो हम साथ आ सकते हैं.
बिहार के सीमांचल इलाके में मजबूत है AIMIM की स्थिति
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने बिहार में इस बार 243 में से 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी है. पिछले चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे के तौर पर उतरी AIMIM ने 20 सीट पर चुनाव लड़ा था और 5 सीट अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, और बहादुरगंज जीती थीं. साथ ही 14.28% वोट शेयर इन सीटों पर हासिल किया था. हालांकि चुनाव के बाद AIMIM के चार विधायक टूटकर राजद में शामिल हो गए थे. लेकिन अपने वोट शेयर के आधार पर ही पार्टी इस बार 50 सीट पर चुनाव लड़ने का दावा ठोक रही है. AIMIM का बिहार के सीमांचल इलाके में बढ़िया प्रभाव माना जाता है. मुस्लिम बहुल इस इलाके में ही पार्टी ने 2020 में अपनी पांचों सीट जीती थीं. इसी इलाके में पार्टी अपने लिए 50 सीट चाहती है.
क्यों मुश्किल है तेजस्वी यादव का AIMIM के लिए बड़ा दिल दिखाना
राजद ने AIMIM को साथ लेने या नहीं लेने का फैसला तेजस्वी यादव पर छोड़ा है, लेकिन उनके लिए यह फैसला लेना बेहद मुश्किल है. तेजस्वी यादव यदि AIMIM के लिए बड़ा दिल दिखाते हैं, तो उन्हें सीमांचल में उसके साथ सीटें बांटनी होंगी. इससे सीमांचल इलाके में ओवैसी की पार्टी की पैठ और ज्यादा गहरी हो जाएगी, जिससे मुस्लिम वोटर्स में उसका जुड़ाव और ज्यादा बढ़ेगा. राजद, कांग्रेस और महागठबंधन में शामिल वामपंथी दल भी मुस्लिमों को अपना कोर वोटर मानती है. वे नहीं चाहेंगे कि मुस्लिम वोट पर किसी और पार्टी का हक जुड़ जाए. ऐसे में तेजस्वी के लिए राज्य में मुस्लिम वोट पर हक जमाने वाली दूसरी पार्टी को खुद ही मजबूत करना आसान फैसला नहीं होगा.
सीट बंटवारा भी बन सकता है राह में रोड़ा
महागठबंधन में AIMIM को लेने पर उसे 50 सीटें देना राजद के लिए आसान नहीं होगा. तेजस्वी यादव किसी भी स्थिति में अपनी पार्टी की सीटों में कमी नहीं करना चाहेंगे. उनका मकसद अपनी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताना होगा ताकि सरकार बनने की स्थिति में महागठबंधन के बाकी दल उन्हें ब्लैकमेल ना कर सकें. यह टार्गेट ओवैसी की पार्टी को 50 सीटें देने पर पूरा नहीं होगा. हालांकि ओवैसी की पार्टी कह चुकी है कि महागठबंधन में आने पर वे कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. हालांकि ये कम सीट कितनी होंगी, यह बात AIMIM ने नहीं खोली है. माना जा रहा है कि ये कम सीट भी 30 से 40 के बीच में मांगी जाएगी. इतनी सीट देने का फैसला करना भी तेजस्वी यादव के लिए आसान नहीं होगा.
ओवैसी यदि राजद-कांग्रेस से जुड़े तो क्या भाजपा को नुकसान होगा?
भाजपा और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जदयू का गठबंधन अब तक बिहार में हिट रहा है. राज्य में यह गठबंधन लगातार सरकार बनाता रहा है. इसमें AIMIM का विपक्षी दलों से अलग चुनाव लड़ना भी भाजपा-जदयू के काम आया है, क्योंकि इससे विपक्षी दलों को मिलने वाली मुस्लिम वोट बंटती रही हैं. राजद और कांग्रेस इसी कारण AIMIM पर भाजपा की बी-टीम होने का भी आरोप लगाते रहे हैं. सीमांचल इलाके में करीब 30 सीट हैं, जो मुस्लिम बहुल हैं. इन सीटों पर AIMIM मुस्लिम वोट काटती है, जिसका नुकसान राजद और कांग्रेस को होता है. इसके उलट ये वोट कटने से भाजपा और जदयू को यहां फायदा होता है. यदि एआईएमआईएम ने महागठबंधन जॉइन कर लिया तो यहां मुस्लिम वोट का बंटवारा थम जाएगा, जिसका सीधा सा नुकसान भाजपा गठबंधन को ही होगा.
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