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Dak Kanwar Yatra 2022: क्‍यों अलग होती है डाक कांवड़ यात्रा, जानें इसकी रोचक बातें

आज से यानी 14 जुलाई से सावन की कांवड़ यात्रा (Sawan Kanwar Yatra) भी शुरू हो गई है. सावन मास में भगवान शिव (Lord Shiva) का गंगाजल से अभिषेक (Abhishek with Gangajal) करने के लिए कांवरिए कठिन नियमों के साथ कठोर शारीरिक श्रम (Hard Physical Labor with Strict Rules) भी करते हैं. डाक कांवड़ के नियम आम कांवड़ यात्रा से अलग होते हैं. तो चलिए जानें कि कावड़ यात्रा कब और किसने शुरू की थी और सावन में और कितने तरह की कांवड़ यात्रा होती है.

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Dak Kanwar Yatra 2022: क्‍यों अलग होती है डाक कांवड़ यात्रा, जानें इसकी रोचक बातें

डाक कांवड़ यात्रा है बेहद कठिन और अलग, इन नियमों का करना होता है पालन

डीएनए हिंदी:  कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में लंकाधिपति रावण ने की थी. भगवान शिव के परम भक्‍त रावण के बाद इस यात्रा को मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी कावंड़ यात्रा की थी. कांवड़ बांस से बनी होती है और इसे बहंगी कहा जाता है. सावन में कांवडि़ए बहंगी में गंगाजल भर के लाते हैं और उसी जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं लेकिन डाक कांवड़ यात्रा आम कांवड़ यात्रा से थोड़ी अलग होती है. 

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डाक कावंड़ यात्रा एक निश्चित समय में करनी होती है पूरी

कांवड़िये अक्सर कांवड़ को लेकर लंबी यात्राएं करते हैं और बीच-बीच में विश्राम भी करते हैं. लेकिन डाक कांवड़ में  ऐसा नहीं किया जाता है. असल में डाक कांवड़ में जब एक बार कांवड़ या बहंगी उठा लिया जाता है तो उसे लेकर उन्‍हें लगातार चलते ही रहना होता है. कांवड़ियों को एक समय सीमा के अंदर ही निश्चित शिवालय में ही जलाभिषेक भी करना होता है. यात्रा के दौरान व्रती मूत्र- मल तक नहीं त्‍याग सकते हैं. अगर नियमों की अवहेलना हो तो यात्रा खंडित हो जाती है. अमूमन डाक कावंडि़ए झुंड में चलते हैं और कुछ वाहनों से अपनी यात्रा को पूरा करते हैं. शिवरात्रि के साथ ही कांवड़ यात्रा समाप्त हो जाती हैं.

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डाक कावडि़ए अपनी यात्रा को नाचते-गाते करते हैं पूरी

कांवड़ यात्रा के नियम (Kanwar Yatra 2022 Rules)

  • कांवड़ यात्रा शुरू होने के बाद कांवड़ियों को सात्विक जीवन जीना होता है. 
  • यात्रा के दौरान कांवडि़ए को तामसिक भोजन और किसी भतर के नशे से दूर रहना होता है. 
  • कांवड़ यात्रा में पैदल चलने का विधान है लेकिन अगर संभव न हो तो वाहन से भी यह यात्रा कि जा सकती है. 
  • कांवड़ यात्रा में शुद्धता बहुत जरूरी है. इसलिए बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगाना चाहिए.
  • यात्रा के दौरान गंगाजल भरे कांवड़ को नीचे जमीन पर रखना मना होता है इसे किसी ऊंचे स्थान पर या स्टैंड पर रखना होता है. जमीन पर रखने से यात्रा खंडित हो जाती है. 

कितनी तरह की होती है कांवड़ यात्रा
डाक कांवड़: मान्यता है कि डाक कांवड़ यात्रा की शुरुआत से कांवड़िए शिव के जलाभिषेक तक बिना रुके लगातार चलते रहते हैं. शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं.

खड़ी कांवड़: कुछ शिव भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं. इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई सहयोगी उनके साथ चलता है. जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ ले लेता है और कांवड़ को लेकर वह एक ही जगह पर डुलाते रहता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 


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