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लाइफस्टाइल
ऋतु सिंह | Aug 03, 2025, 11:17 AM IST
1. नींद पूरी न होने से असमय मौत तक का खतरा
नींद विशेषज्ञ वर्षों से चेतावनी देते रहे हैं कि बहुत ज़्यादा नींद लेने से हृदय रोग, अवसाद और यहां तक कि असमय मौत का भी खतरा होता है. लेकिन नींद पर दुनिया के सबसे बड़े अध्ययन ने इस सोच पर सवाल खड़े कर दिए हैं. हाल के शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि असली समस्या नींद की मात्रा नहीं है.
2.नींद के इस लोचे को समझिए
लोग अक्सर दावा करते हैं कि उन्हें 8 घंटे से ज़्यादा नींद आती है. लेकिन जब वैज्ञानिकों ने फिटनेस ट्रैकर से उनकी वास्तविक नींद मापी, तो पाया कि कई लोग 6 घंटे से भी कम नींद ले पा रहे थे.
3.लोग 8 नहीं 6 घंटे से कम सोते मिले
3 जून, 2025 को हेल्थ डेटा साइंस जर्नल में प्रकाशित इस शोध में लगभग 90,000 लोगों पर 7 वर्षों तक नज़र रखी गई. प्रतिभागियों ने अपनी कलाई पर फिटनेस ट्रैकर पहने थे. इससे उनकी नींद के बारे में सटीक आंकड़े मिले. पाया गया कि जिन लोगों ने कहा कि वे 8 घंटे से ज़्यादा सोते हैं, उनमें से कई वास्तव में 6 घंटे या उससे कम सोते थे. इससे पता चलता है कि पिछले अध्ययनों ने नींद और बीमारी के बीच एक गलत संबंध स्थापित किया है.
4.सोने से ज्यादा ये है महत्वपूर्ण की कब सोते हैं, कितनी बार जागते हैं
इस अध्ययन का नेतृत्व चीन के थर्ड मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ. किंग चेन ने किया. शोध से पता चला कि यह मायने नहीं रखता कि आप कितने घंटे सोते हैं, बल्कि यह मायने रखता है कि आप कब सोते हैं, कितनी बार जागते हैं, और हर दिन आपकी नींद का पैटर्न कितना एक जैसा है. नींद में गड़बड़ी, जैसे कभी देर रात सोना, कभी जल्दी सोना, और कभी पर्याप्त नींद न लेना, 172 बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़े पाए गए.
5.नींद की गड़बड़ी से किस रोग का खतरा
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि नींद की गड़बड़ी से पार्किंसंस रोग का खतरा 37 प्रतिशत, टाइप 2 मधुमेह का खतरा 36 प्रतिशत और तीव्र गुर्दे की विफलता का खतरा 22 प्रतिशत बढ़ जाता है. यह भी पाया गया कि अच्छी नींद अकेले 92 बीमारियों के 20 प्रतिशत मामलों को रोक सकती है.
6.7-9 घंटे की अच्छी नींद जरूरी
अब तक, स्वास्थ्य विशेषज्ञ 7-9 घंटे की नींद पर ज़ोर देते रहे हैं, लेकिन इस अध्ययन से पता चला है कि नियमित और नियमित नींद लेना ज़्यादा ज़रूरी है. अनियमित नींद का सीओपीडी (फेफड़ों की बीमारी), किडनी फेलियर और मधुमेह जैसी बीमारियों के जोखिम से पहले से कहीं ज़्यादा गहरा संबंध पाया गया है. अमेरिका के एनएचएएनईएस अध्ययन ने भी इन नतीजों की पुष्टि की है.
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