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Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनावों में नई दिल्ली सीट सबसे खास है, क्योंकि यहां से अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित चुनौती दे रहे हैं. ऐसे में दो हिंदू उम्मीदवारों के बीच एक मुस्लिम उम्मीदवार की एंट्री रोचक
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनावों की सरगर्मी अब पूरी तरह परवान चढ़ती जा रही है. इसमें सबसे ज्यादा निगाहें नई दिल्ली सीट पर लगी हुई हैं, जहां से खुद पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) चुनाव लड़ रहे हैं. तीन बार इस सीट पर चुनाव जीत चुके केजरीवाल चौथी बार यहां जीतने वाला पहला कैंडिडेट बनने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं. उन्हें कांग्रेस की तरफ से संदीप दीक्षित चुनौती दे रहे हैं, जो केजरीवाल से पहले इस सीट पर लगातार तीन बार जीतीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं. भाजपा ने अपना उम्मीदवार अब तक तय नहीं किया है, लेकिन इस बीच ऐसा काम हुआ है, जिसने मुकाबले को और रोचक बना दिया है. इस अहम सीट पर एक मुस्लिम उम्मीदवार की एंट्री हो गई है. जनहित दल ने शनिवार को इस सीट पर सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इलियास खान मेव को टिकट दिया है. मुस्लिम उम्मीदवार की एंट्री से इस सीट के समीकरणों पर कितना प्रभाव पड़ने वाला है, चलिए ये हम आपको बताते हैं.
क्या है नई दिल्ली सीट का जातीय समीकरण
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर यदि साल 2011 की जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो 89.8% आबादी हिंदू है, जबकि 4.5% मुस्लिम, 2.9% ईसाई, 2% सिख, 0.4% जैन और बाकी अन्य समुदाय के लोग हैं. हिंदू समुदाय की बात करें तो इस सीट पर ब्राह्मण वोटर सबसे ज्यादा प्रभावी हैं, जबकि उनके बाद पंजाबी और खत्री समुदाय के वोटर्स भी यहां काफी संख्या में है. इसके अलावा सरकारी नौकरियों का वीआईपी जोन होने के चलते इस सीट पर नौकरीपेशा वोटर्स की संख्या भी बहुतायात में है, जिनमें एक बड़ा वर्ग दलित वोटर्स का है.
भाजपा के लिए बहुत अच्छी नहीं रही है ये सीट
यदि इस सीट पर अब तक हुए 7 विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां भाजपा बहुत मजबूत नहीं मानी जाती है. इस सीट पर 1993 में हुए पहले चुनाव में भाजपा को इकलौती जीत मिली थी, जब कुंवर सेन यहां से विधायक निर्वाचित हुए थे. इसके बाद 1998, 2003, 2008 में यहां कांग्रेस के टिकट पर लगातार तीन बार शीला दीक्षित जीतीं और मुख्यमंत्री चुनी गईं. इसके बाद 2013, 2015 और 2020 मे हुए चुनावों में अन्ना आंदोलन की लहर से उभरकर आए अरविंद केजरीवाल ने फतेह का झंडा लहराया है.
कितना प्रभाव डाल पाएगी ऐसे में मुस्लिम उम्मीदवार की एंट्री
नई दिल्ली सीट के वोट डिस्ट्रीब्यूशन के नजरिए से देखें तो जनहित दल के इलियास खान मेव की एंट्री से इस सीट पर भले ही जातीय समीकरण के लिहाज से बहुत प्रभाव ना पड़े, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव की अन्य सीटों तक उनकी एंट्री कई उम्मीदवारों के समीकरण बिगाड़ सकती है. दरअसल इलियास खान सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स के अधिकारों की बहाली की लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके लिए उन्होंने जनहित दल की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में मुकदमा भी दायर किया है. वे सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स के साथ ही बस मार्शलों के अधिकारों की भी लड़ाई लड़ रहे हैं, जो बड़ा वोट बैंक माना जाता है और आम आदमी पार्टी से जुड़ाव रखता है.
इलियास खान को उम्मीदवार घोषित करते समय जनहित दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अंशुमन जोशी ने भी इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने कहा,दिल्ली सरकार पिछले 14 महीनों से सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स की बहाली के लिए आवश्यक विधेयक लाने और पारित करने में असफल रही है. इस वजह से हजारों वॉलंटियर्स को सड़कों पर संघर्ष करना पड़ा है. इलियास खान मेव इस मुद्दे पर ना केवल मुखर रहे हैं, बल्कि उन्होंने इसे एक सशक्त आंदोलन का रूप दिया है.'
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