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जम्मू-कश्मीर में उर्दू को लेकर क्यों छिड़ गई जंग? फिर भाषा विवाद में फंसी BJP

दक्षिण भारत में हिंदी थोपने के आरोप झेल रही बीजेपी एक बार फिर से भाषा विवाद में फंसती नज़र आ रही है. इस बार विवाद जम्मू-कश्मीर में हो रहा है, उर्दू को लेकर. जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां बीजेपी पर जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का आरोप लगा रहे हैं.

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जम्मू-कश्मीर में उर्दू को लेकर क्यों छिड़ गई जंग? फिर भाषा विवाद में फंसी BJP

जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों और मुख्य विपक्षी दल BJP के बीच उर्दू को लेकर ठन गई है. भाषा को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि स्थानीय दलों ने बीजेपी पर जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने की कोशिश का आरोप लगा दिया है. दरअसल, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने LG से मांग की है कि  में होने वाली नायब तहसीलदार की भर्ती के लिए उर्दू के वर्किंग नॉलेज की अनिवार्यता को खत्म कर दिया जाए. 

क्या है जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा?

9 जून को जम्मू-कश्मीर सर्विस सलेक्शन बोर्ड (JKSSB) ने राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार के 75 पदों के लिए वेकेंसी निकाली. JKSSB ने हमेशा की तरह अपने नोटिफिकेशन में लिखा कि लिखित परीक्षा में दूसरे पेपर में उर्दू के कामकाजी ज्ञान का टेस्ट लिया जाएगा. बता दें कि जम्मू-कश्मीर में महाराजा प्रताप सिंह के दौर से उर्दू आधिकारिक भाषा है. महाराजा प्रताप सिंह सन 1885 से 1925 तक जम्मू-कश्मीर के महाराजा रहे, उनके बाद महाराजा हरि सिंह ने गद्दी संभाली थी. महाराजा हरि सिंह ने ही जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने वाले इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन किया था. 

महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में सन 1889 में सर वॉल्टर लॉरेंस को सेटलमेंट कमिश्नर नियुक्त किया गया था. उन्होंने पांच साल का वक्त लगाकर जम्मू-कश्मीर का पहला लैंड सेटलमेंट पूरा किया. ये लैंड सेटलमेंट उर्दू में किया गया था. इसके बाद से जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग के सभी दस्तावेज उर्दू में ही बनाए गए. इस वजह से जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग में भर्ती के लिए उर्दू का कामकाजी ज्ञान अनिवार्य रखा जाता है. 

2020 में केंद्र सरकार लेकर आई जम्मू-कश्मीर लैंग्वेज बिल

अगस्त, 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खारिज कर दिया. इसके बाद सितंबर, 2020 में जम्मू-कश्मीर ऑफिशियल लैंग्वेज बिल पास किया. इस बिल में जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा के रूप में उर्दू के साथ-साथ कश्मीरी, डोगरी, हिंदी और इंग्लिश को शामिल किया गया. बिल में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में अब इन पांचों भाषाओं का इस्तेमाल आधिकारिक कामकाज के लिए होगा.

उर्दू की अनिवार्यता की शर्त क्यों हटाना चाहती है बीजेपी

जम्मू-कश्मीर में नायब तहसीलदार के पद के लिए उर्दू का वर्किंग नॉलेज होना अनिवार्य है.सुनील शर्मा ने बीते हफ्ते जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा से मुलाकात की. उन्होंने उर्दू की इस अनिवार्यता को खत्म करने की मांग की. उन्होंने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर में पांच आधिकारिक भाषाएं हैं. उनमें से केवल उर्दू को मेंडेटरी रखा गया है, उन्होंने इसे संवैधानिक सिद्धांतों और प्रशासनिक निष्पक्षता का उल्लंघन बताते हुए कहा कि इससे उम्मीदवारों के बीच एक अनफेयर बैरियर क्रिएट होता है. उन्होंने तर्क दिया कि यह नियम जम्मू के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाता है.

स्थानीय पार्टियों का बीजेपी पर गंभीर आरोप

जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियां बीजेपी पर उर्दू के ऐतिहासिक महत्व को नजरअंदाज़ करने का आरोप लगा रही हैं. उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली PDP ने बीजेपी नेता के इस मांग की आलोचना की है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा, 'उर्दू का संबंध किसी खास तबके, क्षेत्र या धर्म से नहीं है. इसका महत्व ऐतिहासिक है और जम्मू-कश्मीर में 130 साल से ज्यादा समय से उर्दू का इस्तेमाल प्रशासनिक भाषा के रूप में किया जा रहा है. महाराजा के दौर में पर्शियन में प्रशासनिक काम होते थे, बाद में उर्दू का इस्तेमाल होने लगा. यह मुद्दे को धर्म के ऐंगल से देखना गलत है. जमीनों के रिकॉर्ड सालों से उर्दू में लिखे जाते रहे हैं और उन्हें बदलना अभी संभव नहीं है. यह समझने और स्वीकार करने की ज़रूरत है कि प्रशासन, जुडीशियरी और राजस्व में उर्दू की भूमिका ऐतिहासिक है.'

पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा कि उर्दू भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की भाषा है. उन्होंने कहा कि जब पर्शियन भाषा हटाई गई तो उर्दू को अपनाया गया क्योंकि ये आसान भाषा थी और सबको आती थी. उन्होंने कहा, 'बीजेपी की ये मांग जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने की कोशिश का हिस्सा है.'

इससे पहले बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी को थोपने के आरोप झेल चुकी है. तमिलनाडु ने केंद्र सरकार की त्रिभाषीय नीति को अपनाने से इनकार कर दिया है.

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