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डीएनए एक्सप्लेनर
Hyderabad University Forest Row: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अप्रैल) को एक बार फिर तेलंगाना के अधिकारियों से कहा कि कांचा गाचीबोवली के जंगल को फिर से पहले जैसा बनाने का प्लान लेकर आइए. ऐसा नहीं करने पर जेल जाने के लिए तैयार हो रहिए.
Hyderabad University Forest Row: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अप्रैल) को एक बार फिर हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली के जंगल की कटाई को लेकर नाराजगी जाहिर की. पिछले सप्ताह सुनवाई के दौरान तेलंगाना के चीफ सेक्रेटरी को इस जंगल का रिस्टोरेशन नहीं होने पर जेल जाने की चेतावनी देने वाले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फिर से अधिकारियों को अलर्ट किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जंगल को पहले जैसी यथास्थिति में लाना उसकी पहली प्राथमिकता है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा,'हमारे पास उस 100 एकड़ जमीन पर दोबारा पहले जैसा जंगल बनाने का प्लान लेकर आइए, वरना अधिकारी जेल जाने के लिए तैयार हो जाएं.' बेंच ने तेलंगाना के वाइल्डलाइफ वार्डन को भी जंगल की कटाई से प्रभावित हुए जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने का आदेश दिया है. तेलंगाना सरकार की तरफ से जवाब देने के लिए समय मांगने पर बेंच ने उसे 4 सप्ताह का समय दिया और इस मामले में अगली सुनवाई 15 मई को तय कर दी है.
'अगली सुनवाई तक नहीं कटेगा एक भी पेड़'
बेंच ने सुनवाई की अगली तारीख तय करते हुए तेलंगाना सरकार की तरफ से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी को चेतावनी भी दी. बेंच ने कहा कि अगली सुनवाई तक उस इलाके में एक भी पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए. साथ ही यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार ने उस जमीन पर दोबारा जंगल को यथास्थिति में लाए जाने का विरोध किया तो उसके अधिकारियों को वहीं पर 'अस्थायी जेल' में भेज दिया जाएगा. इस पर मनु सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि उस इलाके में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सभी तरह के विकास कार्य रोक दिए गए हैं.
'क्या कोर्ट से ऊपर हैं अधिकारी?'
बेंच ने सिंघवी से यह पूछा कि क्या राज्य ने पेड़ों को काटने से पहले वन अधिकारियों से अनुमति ली थी? इस पर सिंघवी ने बताया कि WALTA एक्ट के तहत स्व-प्रमाणन के जरिये 1,300 से अधिक पेड़ों को काटने की छूट दी गई थी. इस पर बेंच ने आश्चर्य जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के साल 1996 के एक आदेश की याद दिलाई और पूछा,'क्या वे (अधिकारी) सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से ऊपर हैं?' बेंच ने साफतौर पर कहा कि यदि तेलंगाना ने ऐसा किया है तो यह 1996 के फैसले का उल्लंघन है. हम नौकरशाहों या मंत्रियों की व्याख्या पर नहीं चलेंगे. राज्य सरकार यह बताए कि उसने कोर्ट के 1996 के आदेश को कैसे दरकिनार कर दिया?'
निजी कंपनी के पास गिरवी रख दी है जंगल की जमीन
इस मामले में एमिकस क्यूरी (कोर्ट की मदद करने वाले वकील) के तौर पर काम कर रहे सीनियर वकील के. परमेश्वर ने बेंच को CEC (केंद्रीय अधिकार प्राप्त कमेटी) की ताजा रिपोर्ट की जानकारी दी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तेलंगाना के अधिकारियों ने पेड़ों को गिराने के लिए बुलडोजर लाने से पहले ही इस इलाके को एक निजी कंपनी को 10,000 करोड़ रुपये में गिरवी रख दिया था, लेकिन राज्य के चीफ सेक्रेट्री ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में जानकारी नहीं दी है. उन्होंने बेंच को बताया कि इस गिरवी अनुबंध की शर्तों के मुताबिक निजी कंपनी कभी भी इस इलाके पर अपने कब्जे का दावा कर सकती है. बेंच ने कहा कि फिलहाल उसकी चिंता 100 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बहाल करना है. जस्टिस गवई ने तेलंगाना सरकार के वकील को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि आप चाहते हैं चीफ सेक्रेट्री पर कड़ी कार्रवाई ना हो तो आप उस 100 एकड़ जमीन पर फिर से जंगल बहाल करने की योजना लेकर आएं. नहीं तो हम नहीं जानते कि आपके कितने अधिकारियों को अस्थायी जेल में जाना होगा. राज्य सरकार पेड़ों की कटाई को उचित ठहराने के बजाय उन्हें फिर से उगाने की योजना बनाने को बेहतर उपाय मांगे. इस पर सिंघवी ने राज्य सरकार से निर्देश लेकर सुप्रीम कोर्ट को सूचित करने की बात कही.
क्या है गाचीबोवली के जंगल का पूरा विवाद
कांचा गाचीबोवली का जंगल हैदराबाद यूनिवर्सिटी से सटा हुआ है. हैदराबाद की सबसे सुंदर जगह माने जाने वाले इस इलाके में 400 एकड़ जमीन पर तेलंगाना सरकार ने जंगल की कटाई शुरू करा रखी है. यह जंगल संरक्षित माना जाता है, जिसमें 8 तरह के अनुसूचित सूची में शामिल जानवर रहते हैं. तेलंगाना की कांग्रेस सरकार यहां जंगल काटकर IT पार्क विकसित करने के लिए तेलंगाना औद्योगिक अवसंरचना निगम (TGIC) के जरिये नीलाम करने की योजना बना रही है. इसे लेकर ही हंगामा मचा हुआ है. एकतरफ हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र इस कटाई के खिलाफ जुटे हुए हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू करा रखी है. इस जंगल की कटाई का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह जगह हैदराबाद निवासियों तक स्वच्छ ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए 'फेफड़े' का काम करती है. इसके उलट राज्य सरकार का तर्क है कि यह जंगल संरक्षित सूची में नहीं है और शहर को विकसित करने के लिए इसे काटने की जरूरत है.
जंगल के जानवरों ने भी जताया था विरोध
जंगल को काटने का मुद्दा सोशल मीडिया पर उस समय बहुत ज्यादा वायरल हो गया था, जब इस जंगल के जानवर भी कटाई के विरोध में आगे आ गए थे. जंगल की कटाई के लिए लाए गए बुलडोजर और अन्य बड़ी-बड़ी मशीनों से हाथी सिर से टक्कर मारकर भिड़ गए थे, जिससे एक हाथी के माथे में गहरा घाव भी हो गया था. इस हाथी का वीडियो सोशल मीडिया पर बेहद वायरल हुआ था और इसे लेकर पूरे देश में बहस शुरू हो गई थी. इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले में हस्तक्षेप किया था.
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