डीएनए एक्सप्लेनर
दस्तावेजों के लिहाज से देखें तो आज यानी 18 अगस्त को नेताजी सुभाषचंद्र बोस का 78वां शहादत दिवस है. कागजों में दर्ज है कि ताइवान में हुए विमान हादसे में उनका निधन हो गया था, लेकिन उनके समर्थक कभी फैजाबाद के गुमनामी बाबा तो कभी देहरादून के अनजान साधु के तौर पर उनके जिंदा होने के दावे करते रहे. इसी विवाद में जापान में रखे उनके आखिरी अवशेष कभी स्वतंत्र भारत की जमीन पर नहीं आ सके हैं. पढ़िए इस पूरे विवाद पर ये रिपोर्ट.
डीएनए हिंदी: नेताजी सुभाषचंद्र बोस, यह वो नाम है, जिसे स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और सरदार पटेल (Sardar Patel) के समकक्ष आंका जाता है. माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को नेताजी एक विमान दुर्घटना में उस समय शहीद हो गए, जब वह जापान सरकार से मिलने के लिए जा रहे थे.
इस घटना को 78 साल बीत चुके हैं. इस दुर्घटना के बाद नेताजी के अंतिम संस्कार से बचे अवशेष आज भी जापान (Japan) की राजधानी टोक्यो (Tokyo) में रेन्कोजी मंदिर (Renkoji Temple) में संरक्षित हैं, जहां जापान दौरे पर जाने वाले कई भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उनके दर्शन कर चुके हैं. इसके बावजूद यह बड़ा सवाल है कि 78 साल बाद भी नेताजी के ये अवशेष भारत लाकर उन्हें उचित सम्मान क्यों नहीं दिया गया है?
सबसे पहले बात करते हैं उस दुर्घटना की
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारतीय सरजमीं से भगाने का इरादा लेकर नेताजी की आजाद हिंद फौज डटी हुई थी, लेकिन कई मोर्चों पर हार के बाद परमाणु हमले से बिखरे जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था और आजाद हिंद फौज की सप्लाई बंद हो गई थी. इसी कारण नेताजी जापान सरकार से वार्ता के लिए विमान से टोक्यो के लिए रवाना हुए. उनका सैन्य मालवाहक विमान 18 अगस्त, 1945 को ईंधन लेने के लिए फार्मोसा (मौजूदा ताइवान) के ताइपेई (Taipei) शहर के ताइहोकू एयरोड्रम पहुंचा.
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आज तक हुई जांचों, गवाहों और पुष्ट दस्तावेजों के मुताबिक, नेताजी का विमान 18 अगस्त को ही टोक्यो के लिए उड़ा, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी के कारण उल्टा हवाई पट्टी पर ही गिर गया. विमान में लगी आग में नेताजी के शहीद होने की बात कही जाती है, लेकिन असल में इस बात को लेकर 78 साल बाद आज भी विवाद है कि नेताजी शहीद हुए थे या बच गए थे.
क्या कहा था उनके सहयात्री ने
नेताजी के साथ इस यात्रा में आजाद हिन्द फौज के कर्नल हबीबुररहमान (Habiburrehman) उनके सहायक के तौर पर मौजूद थे. इस हादसे में बच गए कर्नल हबीबुर ने अपने बयान में कहा था कि उड़ान भरते ही इतने जोर की आवाज हुई मानो किसी विमानभेदी तोप का गोला जहाज में लगा हो. नेताजी नीचे गिरने के बाद भी घायल होने के बावजूद सुरक्षित थे, लेकिन विमान से निकलने के रास्ते पर भयानक आग लगी हुई थी.
कर्नल ने कहा, मैंने ठंड लगने के कारण मोटे कपड़े पहने हुए थे, लेकिन नेताजी के कपड़े विमान के पेट्रोल में भीगे हुए थे. इसी हालत में नेताजी साहस दिखाकर आग के बीच से कूदे और बुरी तरह जल गए. मैं पीछे कूदा, मेरे कपड़े मोटे होने के कारण मैं सिर्फ मामूली घायल हुआ. नेताजी के कपड़ों की आग बुझाते समय मेरे दोनों हाथ जल गए.
उन्होंने आगे कहा, हम दोनों को जापानी सैनिक अस्पताल ले गए, जहां अगले छह घंटे तक नेता जी जिंदा थे. वे कभी होश में आते और कभी बेहोश हो जाते. इसी हालत में उन्होंने आबिद हसन (Abid Hasan) को आवाज़ दी. मैंने बताया कि आबिद नहीं ये मैं हूं हबीब. इसके बाद रात में लगभग 9 बजे नेताजी का निधन हो गया. निधन के समय भी नेताजी की जुबां पर आजादी के संग्राम को जिंदा रखने का आदेश था. 20 अगस्त को नेताजी का अंतिम संस्कार किया गया, क्योंकि उनका शव वापस भारत लाने के लिए कोई विमान नहीं था. करीब 25 दिन बाद उनकी अस्थियां जापान पहुंची, जहां उन्हें रेन्कोजी मंदिर में सम्मान के साथ रख दिया गया.
तीन आयोग बनाए भारत सरकार ने, पर रहस्य आज भी बरकरार
स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने नेताजी की शहादत की जांच के लिए तीन बार जांच आयोग गठित किए, लेकिन एक भी आयोग यह पुष्ट नहीं कर सका कि यह दुर्घटना हुई थी या नहीं. साल 1956 में बने कर्नल शाहनवाज आयोग (Colonol Shahnawaj Commision) और साल 1970 में गठित खोसला आयोग (Khosla Commision) ने विमान दुर्घटना में मौत की पुष्टि की, लेकिन 1999 में बने मुखर्जी आयोग (Mukharjee Commision) के अनुसार, यह नकली दुर्घटना थी, जिसके बाद बोस अज्ञातवास में चले गए. हालांकि तीसरी रिपोर्ट को सरकार ने बिना कारण बताए खारिज कर दिया.
ताइवान ने कहा- नहीं हुई थी कोई दुर्घटना
नेताजी की मौत का रहस्य सुलझाने के लिए 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी सबसे आखिरी जांच समिति के सामने आया था कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान दुर्घटना ही नहीं हुई. मुखर्जी आयोग को ताइवान सरकार ने कहा कि उस दिन कोई विमान दुर्घटना रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. जापान सरकार की तरफ से दिए गए दस्तावेजों में भी उस दिन कोई दुर्घटना नहीं होने की बात कही गई थी. हालांकि इस आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश होने के साथ ही तत्कालीन केंद्र सरकार ने उसे खारिज कर दिया था.
जिंदा रहने से जुड़े मिथ और गुमनामी बाबा का रहस्य
सुभाषचंद्र बोस को जिंदा मानने वाले लोगों में उनके परिवार के सदस्य भी शामिल थे. इसके अलावा उनके समर्थक भी मानते हैं कि दुर्घटना में सुभाषचंद्र बोस बच गए थे और तत्कालीन सोवियत संघ की पकड़ में आ गए थे. बाद में वह कई साल तक सोवियत संघ की कैद में रहे. कुछ इसे उनका सोवियत संघ में राजनीतिक शरण लेना भी कहते हैं. कहा जाता है कि उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में जापान का साथ देने के लिए युद्ध अपराधी घोषित किया गया था. इस कारण वे सार्वजिनक तौर पर सामने आकर भारत सरकार के लिए परेशानी का सबब नहीं बनना चाहते थे.
कुछ लोग फैजाबाद के गुमनामी बाबा (Gumnami Baba) को ही सुभाषचंद्र बोस मानते हैं, जिनका साल 1985 में निधन हुआ था. गुमनामी बाबा की शक्ल सुभाष से मिलती थी और वे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के निधन पर उनके पार्थिव शरीर के पास भी देखे गए थे. उनके पास स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे उत्तर प्रदेश सरकार के कई बड़े मंत्री लगातार हाजिरी देते थे. गुमनामी बाबा कभी सार्वजिनक तौर पर नहीं देखे जाते थे, लेकिन वह नेताजी की ही तरह फर्राटेदार बंगाली और जर्मन भाषा व अंग्रेजी बोलते थे.
गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनके कमरे से नेताजी की निजी तस्वीरें, महंगी शराब, नेताजी से जुड़ी खबरों वाले अखबार, पत्रिकाएं, रोलेक्स घड़ी. आजाद हिन्द फौज की वर्दी के साथ ही शाहनवाज व खोसला आयोग की रिपोर्ट भी मिली थी. साथ ही नेताजी की भतीजी ललिता बोस की लिखी एक चिट्ठी भी शामिल थी. इससे उनके नेताजी होने का दावा पुष्ट होता है.
देहरादून के अनजान साधु को भी माना जाता है नेताजी
गुमनामी बाबा के अलावा देहरादून (Dehradun) के ओल्ड राजपुर इलाके की एक कोठी के पीछे बने क्वार्टर्स में रहे अनजान साधु को भी सुभाषचंद्र बोस होने का दावा किया जाता है. इन साधु की शक्ल भी सुभाष से मिलती थी और वह अपनी यादें खोने का बहाना करते थे. बताया जाता है कि उनके निधन के बाद भारतीय सेना के ट्रक में उनका शव लेने के लिए सरकारी अधिकारी पहुंचे थे और उनका अंतिम संस्कार ऋषिकेश (Rishikesh) में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया था. हालांकि इसका कोई सरकारी दस्तावेज मौजूद नहीं है.
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नेताजी की मौत का राज 150 फाइलों में दफन है
नेताजी की मौत का रहस्य माना जाता है कि उन 150 फाइलों में दफन है, जो उनके ऊपर बनी हैं और नेशनल आर्काइव्स में मौजूद हैं. इन फाइलों को सार्वजनिक करने से केंद्र में मौजूद हर दल की सरकार इनकार करती रही है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने साल 2015 में इनमें से 100 से ज्यादा फाइल सार्वजनिक कर दीं, लेकिन अब भी हाई क्लासिफाइड घोषित 39 फाइलों को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
बेटी ने की है तीन दिन पहले डीएनए टेस्ट की मांग
नेताजी की ऑस्ट्रियन पत्नी एमिली से जन्मी उनकी इकलौती संतान अनीता बोस (Anita Bose) हैं. अनीता ने 15 अगस्त वाले दिन आजादी के 75वें अमृत समारोह के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि रेन्कोजी मंदिर में रखे नेताजी के अवशेष भारत लाकर उन्हें आजाद भारतीय जमीन पर रहने का मौका दिया जाए. उन्होंने इन अवशेषों को लेकर किसी भी तरह का शक दूर करने के लिए DNA TEST कराने की भी मांग की है.
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