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डीएनए एक्सप्लेनर
Sikkim Flash Floods: सिक्किम में ग्लेशियर झील के ऊपर बादल फटने से तीस्ता नदी में आई बाढ़ से जमकर तबाही मची थी. इस जल सैलाब में 14 लोगों के शव मिल चुके हैं, जबकि भारतीय सेना के 22 जवानों समेत सैकड़ों लोग लापता हैं.
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डीएनए हिंदी: Sikkim Cloudburst Updates- चीन सीमा से सटे संवेदनशील पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम में इस समय तबाही मची हुई है. तबाही का कारण है सिक्किम के हिमालयी ग्लेशियर में मौजूद ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने से जल सैलाब का आना. बादल फटने से झील की सीमाएं टूट गईं और सारा पानी तीस्ता नदी में समा गया, जिससे भयानक बाढ़ आ गई. इसका शिकार आम आदमी से लेकर भारतीय सेना तक हुई है. इस जल सैलाब के लिए कई कारण जिम्मेदार बताए जा रहे हैं. सबसे ज्यादा विश्वसनीय कारण बादल फटना माना जा रहा है, लेकिन अब एक और दावा सामने आया है. यह दावा कुछ भू-वैज्ञानिकों ने किया है, जिसमें कहा जा रहा है कि सिक्किम में मची तबाही के लिए उससे ठीक पहले नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार है. सुनने में ये अजीब सी बात लगती है और आज हम इसी दावे का DNA टेस्ट कर रहे हैं.
पहले बाढ़ के कारण मची तबाही के बारे में जान लीजिए
झील टूटने के बाद तीस्ता नदी का पानी 54 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बहते हुए हर तरफ तबाही मचा गया. सिक्किम को देश से जोड़ने वाला National Highway Ten भी बह गया. कई Bridge और Hydro Power Plant भी बर्बाद हो गए. ल्होनक झील के पास मौजूद Army Camp को FLash Flood ने सबसे पहले अपना शिकार बनाया था. पूरा का पूरा Army Camp बाढ़ में बह गया और वहां खड़ीं सेना की गाड़ियां भी डूब गईं. बाढ़ का पानी निकल जाने के बाद इन गाड़ियों की हालत देखिए, जो बिलकुल कबाड़ हो चुकी हैं. चारों तरफ सिर्फ मलबा ही मलबा दिख रहा है. इसी Camp में मौजूद 22 जवान लापता बताए जा रहे हैं, जिनके जिंदा होने की संभावना अब कम लग रही है. वहां से आ रही तस्वीरों और वीडियोज को देखकर ही पता चलता है कि सिक्किम में आई ये आपदा कितनी बड़ी और भयानक थी, लेकिन ये आपदा आई क्यों? इस आपदा से इतनी तबाही कैसे मच गई?
पहले जान लीजिए भू-वैज्ञानिकों ने इसे लेकर क्या Chronology बताई है-
किस आधार पर जोड़ा जा रहा है भूकंप और बाढ़ का लिंक
अब सोचने वाली बात ये है कि नेपाल में जो भूकंप आया, सिक्किम उसके Intensity Zone में था ही नहीं यानी भूंकप का असर सिक्किम पर पड़ा ही नहीं था. फिर वैज्ञानिक किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि सिक्किम में Flash Flood के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार है? दरअसल इस दावे का आधार है वो Satellite तस्वीरें हैं, जो ISRO ने जारी की हैं. ये तीनों सेटेलाइट तस्वीरें सिक्किम में ल्होनक झील की हैं.
पहली तस्वीर में दिख रहा है कि 17 सितंबर को झील करीब 162.7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई थी. दूसरी तस्वीर में झील का Size थोड़ा बढ़ गया. 28 सितंबर की तस्वीर में झील का कुल क्षेत्रफल बढ़कर 167.4 हेक्टेयर हो गया, लेकिन बादल फटने के बाद 4 अक्टूबर की जो सैटेलाइट तस्वीर ISRO ने जारी की है, उसमें झील का क्षेत्रफल सिर्फ 60.3 Hactare ही रह गया है. इन तस्वीरों को देखकर पता चलता है कि बादल फटने से पहले जो झील करीब 168 हेक्टेयर में फैली थी, बादल फटने के बाद वो सिमटकर सिर्फ 60 हेक्टेयर में रह गई यानी झील का 100 हेक्टेयर इलाका टूट गया. लेकिन अब सवाल ये है कि झील के टूटने की वजह, नेपाल में आया भूकंप ही था, ये कैसे कहा जा सकता है, क्योंकि 3 सितंबर की दोपहर में भूकंप आने के बाद की कोई Satellite Image नहीं है, जिससे ये साबित हो कि भूकंप की वजह से ही झील सिकुड़ी थी.
एक्सपर्ट्स ने दकाई है सिर्फ संभावना, सबूत कोई नहीं
News Agency PTI को केंद्रीय जल आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसको लेकर Explanation दिया है. जिन्होंने कहा है कि नेपाल में आया भूकंप सिक्किम में अचानक आई बाढ़ का कारण हो सकता है. झील पहले से ही असुरक्षित थी और 168 हेक्टेयर में फैली हुई थी. इसका क्षेत्रफल अब कम होकर 60 हेक्टेयर हो गया है. हालांकि अभी ये पता लगाना मुश्किल है, लेकिन सिर्फ बादल फटने से ऐसे नतीजे नहीं आते. घटनास्थल पर गए कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप के कारण वहां बाढ़ आई होगी यानी वैज्ञानिकों ने सिर्फ आशंका जताई है कि नेपाल में आए भूकंप और सिक्किम में झील टूटने से मची तबाही के बीच संबंध हो सकता है और ये आशंका सही हो, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है.
भूकंप की थ्योरी सही नहीं तो झील क्यों फट गई?
नेपाल में आए भूकंप की वजह से सिक्किम में तबाही मचने वाली Theory सिर्फ एक दावा है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वैज्ञानिकों ने इतनी बड़ी आशंका, बिना किसी पुख्ता वैज्ञानिक जांच के ही जता दी. अब सवाल फिर वही है कि बादल फटने से ल्होनक झील क्यों फट गई? तो इसकी वैज्ञानिक वजह आपको बताते हैं.
दो साल पहले ही दे दी गई थी ल्होनक झील फटने की चेतावनी
इन रिपोर्ट के आधार पर देखें तो ल्होनक झील के फटने की आशंका कई वर्षों से जताई जा रही थी. वर्ष 2014 में तो सिक्किम सरकार के Science And Technology Department ने झील को फटने से बचाने के लिए जल्द से जल्द उपाय करने की सलाह भी दी थी, लेकिन तमाम Research Report में जताए गए खतरों को नजरअंदाज किया गया. इसका ही नतीजा है कि आखिरकार जिसका डर था, वो हो गया.
केदारनाथ में भी ऐसी ही तबाही मची थी.
सिक्किम में आपने तबाही का जो मंजर देखा है, वैसे ही मंजर साल 2013 में उत्तराखंड त्रासदी के वक्त भी दिखे थे. जब केदारनाथ के ऊपर चोराबारी ग्लेशियर की झील के ऊपर बादल फटा था. अब दस साल बाद सिक्किम में भी यही हुआ है. दरअसल जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार पूरी दुनिया में बढ़ी है, लेकिन उसके खतरों को कम करने के कोई प्रयास नहीं हुए हैं.
केदारनाथ-सिक्किम पर ही नहीं थमेगा ये सिलसिला
संसद की STANDING COMMITTEE ने 29 मार्च 2023 को एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें सरकार ने ये माना है कि ग्लेशियर्स के पिघलने से नदियों के बहाव में अंतर आया है और इससे Glacier Lakes के फटने, Avalanche और भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ गई हैं, लेकिन इन घटनाओं को रोकने का कोई कारगर उपाय या जरिया नहीं है यानी दस साल पहले जो उत्तराखंड में हुआ था, वो अब सिक्किम में हुआ है. और आने वाले वक्त में कहीं और भी होगा.
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