डीएनए एक्सप्लेनर
तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने बीते दिनों एक कॉलेज में जय श्री राम के नारे लगवाए. इन नारों के बाद चारों तरफ विवाद बढ़ गया है. विशेषज्ञों से जानें कि राज्यपाल द्वारा ये नारे लगवाना संवैधानिक रूप से सही है या गलत?
Tamil Nadu Governor controversy: तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि 12 अप्रैल को मदुरै में एक सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए गए थे. यहां वे साहित्यिक प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार देने पहुंचे थे. अपने भाषण के दौरान उन्होंने छात्रों से तीन बार 'जय श्री राम' कहने को कहा. राज्यपाल द्वारा ये नारे लगवाना अब विवाद बन गया है.
राज्यपाल के इस बयान पर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या एक उच्च पद पर बैठा शख्स इस तरह के नारे लगवा सकता है? क्या किसी राज्यपाल को छात्रों से ये नारे लगवाना शोभा देता है? इस तरह के नारों पर संविधान क्या कहता है? आइए विशेषज्ञों से जानें कि संविधान इस पर क्या कहता है?
आगे बढ़ने से पहले जान लें राज्यपाल की पूरी बात. मदुरै के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में राज्यपाल आरएन रवि ने कहा, आज के दिन हम उस महापुरुष को श्रद्धांजलि दें, जो श्रीराम के महान भक्त थे. मैं कहूंगा 'जय श्री राम', आप भी कहिए 'जय श्री राम.' ये नारे छात्रों से लगवाए गए.
राज्यपाल के इस बयान पर सत्ताधारी डीएमके ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. पार्टी प्रवक्ता धरनीधरन ने कहा, 'यह देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है. राज्यपाल बार-बार संविधान का उल्लंघन क्यों करना चाहते हैं? उन्होंने अब तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया? वह आरएसएस के प्रवक्ता बन चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में उन्हें उनकी 'जगह' दिखा दी है.'
इस घटना के बाद शिक्षा विशेषज्ञों के संगठन स्टेट प्लेटफॉर्म फॉर कॉमन स्कूल सिस्टम-तमिलनाडु (SPCSS-TN) ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राज्यपाल को उनके पद से हटाने की मांग की. एसपीसीएसएस-टीएन का कहना है कि राज्यपाल ने इस प्रकार का नारा लगवाकर संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना का उल्लंघन किया है. संगठन के महासचिव पी.बी. प्रिंस गजेन्द्र बाबू ने कहा कि राज्यपाल का यह कृत्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 (राज्यपाल की शपथ) का उल्लंघन है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और शिक्षा भी एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है. ऐसे में किसी विशेष धर्म के भगवान का नाम लेकर नारा लगवाना न सिर्फ गलत है, बल्कि यह राज्यपाल की संवैधानिक जिम्मेदारियों के खिलाफ भी है.'
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सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता टेकचंद बताते हैं कि राज्य के किसी संवैधानिक पदाधिकारी (जैसे राज्यपाल) का यह दायित्व है कि वे संविधान की धर्मनिरपेक्षता का पालन करें. यदि कोई राज्यपाल या सरकारी अधिकारी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों में किसी विशेष धार्मिक नारे को बुलवाने का प्रयास करते हैं, तो यह संविधान की प्रस्तावना, अनुच्छेद 14-15 और अनुच्छेद 28 का उल्लंघन है.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के लैंडमार्क जजमेंट SR Bommai v. Union of India (1994) में स्पष्ट किया गया है कि राज्य की कोई धार्मिक पहचान नहीं हो सकती और अगर कोई सरकार धार्मिक आधार पर कार्य करती है, तो यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन माना जाएगा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील ए.पी विनोद बताते हैं कि संविधान में निर्दिष्ट कार्य के अलावा छात्रों को कुछ भी करने के लिए मजबूर करना गैरकानूनी है.
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता सुमित बहुगुणा का कहना है कि संविधान या किसी भी अन्य संवैधानिक विधि में गवर्नर को छात्रों द्वारा किसी धार्मिक नारे को लगवाने की शक्तियां नहीं दी गई हैं. अगर कोई इस तरह की गतिविधि करता है तो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और इससे राज्य समर्थित धार्मिक प्रोपेगैंडा जैसी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, जो भारतीय संविधान के तहत असंवैधानिक है. अगर ऐसे कार्य किए जाते हैं, तो उन्हें उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) या सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) में चुनौती दी जा सकती है.
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