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मराठी के लिए 19 साल बाद साथ आए ठाकरे बंधु! उद्धव और राज के साथ आने के मायने क्या हैं?

महाराष्ट्र की राजनीति एक दिलचस्प मुहाने पर आकर खड़ी हो गई. बरसों पहले अलग हुए दो भाई फिर से साथ आ रहे हैं. मराठी भाषा के लिए. दूसरी तरफ, हिंदी थोपने के आरोप झेल रही देवेंद्र फडणवीस सरकार को केंद्र के तीन भाषा फॉर्मूले से पीछे हटना पड़ा है. शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने ऐलान किया है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 6 जुलाई को मराठी के लिए रैली करेंगे. चलिए जानते हैं महाराष्ट्र सरकार ने क्या फैसला किया है और ये भी कि उद्धव और राज के साथ आने का महाराष्ट्र की राजनीति में क्या असर पड़ेगा.

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मराठी के लिए 19 साल बाद साथ आए ठाकरे बंधु! उद्धव और राज के साथ आने के मायने क्या हैं?

महाराष्ट्र की राजनीति एक दिलचस्प मुहाने पर आकर खड़ी हो गई. बरसों पहले अलग हुए दो भाई फिर से साथ आ रहे हैं. मराठी भाषा के लिए. दूसरी तरफ, हिंदी थोपने के आरोप झेल रही देवेंद्र फडणवीस सरकार को केंद्र के तीन भाषा फॉर्मूले से पीछे हटना पड़ा है. शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने ऐलान किया है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 6 जुलाई को मराठी के लिए रैली करेंगे. चलिए जानते हैं महाराष्ट्र सरकार ने क्या फैसला किया है और ये भी कि उद्धव और राज के साथ आने का महाराष्ट्र की राजनीति में क्या असर पड़ेगा.

तीन भाषा फॉर्मूले पर महाराष्ट्र सरकार का फैसला

केंद्र सरकार ने पूरे देश में तीन-भाषा फॉर्मूला लागू करने का फैसला किया है. इसके तहत गैर हिंदी भाषी राज्यों में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य किया गया है. हालांकि, कई राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. महाराष्ट्र सरकार ने तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने का रिसॉल्यूशन लिया था, जिसके बाद से सरकार पर हिंदी थोपने के आरोप लग रहे हैं. अब सरकार ने इस रिजॉल्यूशन को कैंसिल कर दिया है.

देवेंद्र फडणवीस ने कहा, 'हमने तय किया है कि शिक्षाविद् डॉक्टर नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक कमिटी बनाई जाएगी, यह कमिटी ये तय करेगी कौन सी कक्षा से नई भाषा इंट्रोड्यूस की जाएगी और इम्प्लिमेंटेशन कैसे होगा और छात्रों को भाषा के लिए कौन-कौन से चॉइस दिए जाएंगे. कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने पर अंतिम फैसला लेगी. तब तक के लिए 16 और 17 जून को सरकार द्वारा लिए गए दोनों रिजॉल्यूशन रद्द किए जाते हैं.' 

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे करेंगे जॉइंट रैली

शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने ऐलान किया है कि राज्य के स्कूलों में हिंदी थोपने के खिलाफ उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 6 जुलाई को जॉइंट रैली करेंगे. हालांकि, 19 साल पहले दोनों भाई अलग हो गए थे. उद्धव को बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की कमान दी, वहीं राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया. बीते कुछ सालों से दोनों भाई राजनीतिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं. राज ठाकरे यह कह चुके हैं कि महाराष्ट्र की बेहतरी के लिए वो उद्धव के साथ हुई छोटी लड़ाइयों को भूल सकते हैं. वहीं, उद्धव ने भी इस शर्त पर हाथ मिलाने पर सहमति जताई कि राज महायुति के पाले में खड़े नहीं होंगे. अगर दोनों साथ आते हैं तो इसे ठाकरे ब्रांड को रिवाइव करने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है, राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि दोनों इसमें सफल भी हो सकते हैं.

क्यों अलग हुए थे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे?

बाला साहेब ठाकरे ने सन 1966 में शिवसेना का गठन किया था. शिवसेना मराठी मानूस और हिंदुत्व के लिए काम करने वाली पार्टी थी. बाला साहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव को पार्टी की कमान सौंपी. इससे नाराज़ होकर साल 2006 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए. उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का गठन किया. MNS  ने मराठी मानूस और हिंदुत्व की पॉलिटिक्स जारी रखी. शुरुआत में MNS एक प्रॉमिसिंग पॉलिटिकल पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन करीब एक दशक से राज ठाकरे संघर्ष कर रहे हैं.

uddhav Raj

 साल 2019 में जब उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने तो शिवसेना की राजनीति में एक शिफ्ट आया. पार्टी ने हिंदुत्व की हार्डलाइन से  खुद को अलग किया और लिबरल पार्टी के तौर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश की. इससे नाराज़ होकर साल 2022 में एकनाथ शिंदे विधायकों के एक दल के साथ पार्टी से अलग हो गए और उन्होंने अपने गुट के असली शिवसेना होने का दावा कर दिया. अब महाराष्ट्र में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की लाइन पर चलते हुए बीजेपी अपनी जगह मजबूत कर चुकी हैं. वहीं, एक समय पर महाराष्ट्र की राजनीति का दूसरा नाम कहा जाने वाला ठाकरे परिवार अपनी राजनीतिक ज़मीन बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने के मायने क्या हैं?

महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी सेंटर स्टेज ले चुकी है. हालांकि, मराठी मानूष के मुद्दे पीछे छूट गए हैं. शिंदे की शिवसेना फिलहाल बीजेपी के साथ है, ऐसे में बीजेपी की नीतियों का समर्थन करना उसकी मजबूरी है. एक दौर ऐसा था जब महाराष्ट्र में शिवसेना और  मनसे ने ऐसा माहौल बनाया था कि महाराष्ट्र में रहने वाले गैर मराठी लोगों के लिए मराठी बोलना जरूरी हो गया था, मराठी नहीं बोलने वालों को महाराष्ट्र से निकालने तक की बातें की जा रही थीं. उस दौर में बड़े स्तर पर उत्तर भारतीय लोगों से मारपीट की घटनाएं भी खूब सामन आई थीं. अगर राज ठाकरे और उद्धव साथ आते हैं तो वो अपनी राजनीति के कोर- मराठी सबसे पहले- पर काम कर सकते हैं. ऐसे में तीन भाषा फॉर्मूला को उद्धव और राज के लिए एक बेहतरीन मुद्दा बन सकता है. 

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे उस बड़े पेड़ की शाखाएं हैं जो चार दशक से भी ज्यादा समय तक महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्र रहा. साथ मिलकर दोनों इसका फायदा उठा सकते हैं. महाराष्ट्र की जनता का भावनात्मक जुड़ाव आज भी ठाकरे परिवार के साथ है, यह उनके काम आ सकता है. महाराष्ट्र का एक बड़ा तबका आज भी ठाकरे परिवार को शिवसेना मानता है, अगर राज और उद्धव साथ आते हैं तो वो मराठी मानूस को सेंटर स्टेज पर लाकर एकनाथ शिंदे के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. 

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