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डीएनए एक्सप्लेनर
BSP in Lok Sabha Elections 2024: पिछले कुछ समय से मायावती बहुत ज्यादा एक्टिव नहीं रही हैं. विपक्षी दल उन पर भाजपा की 'बी' टीम बनने का भी आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन अब बात कुछ और लग रही है.
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BSP in Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव भले ही पूरे देश में चल रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा निगाहें उत्तर प्रदेश पर रहती हैं. सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट होने के कारण उत्तर प्रदेश को दिल्ली की सत्ता का दरवाजा कहा जाता है. ऐसे में हर पार्टी यहां ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की ख्वाहिश रखती है ताकि उसे बहुमत के लिए दूसरे राज्यों पर कम से कम निर्भर होना पड़े. उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से भाजपा, सपा और बसपा के बीच ही मुकाबला माना जाता है. लेकिन इस बार बसपा प्रमुख मायावती ने जिस तरीके से टिकटों का बंटवारा किया है, उससे कुछ अलग ही संकेत मिल रहे हैं.
दरअसल बसपा ने पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वी यूपी तक जिस तरीके से टिकटों के बंटवारे में जातीय समीकरण फेंटे हैं, उनसे ऐसा लग रहा है मानो उनकी नजर चुनावों में अपनी पार्टी की जीत से ज्यादा भाजपा की हार पर टिकी हुई है. दरअसल बसपा की तरफ से बांटे गए टिकटों से अधिकतर सीटों पर भाजपा का खेल बिगड़ता हुआ और सपा-कांग्रेस गठबंधन को लाभ मिलता दिख रहा है. महज सहारनपुर सीट पर बसपा के दिए टिकट को इंडी गठबंधन के खिलाफ माना जा सकता है, जहां विपक्ष गठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने बसपा ने भी मुस्लिम को ही टिकट दिया है.
चलिए निम्न 10 सीटों से समझते हैं मायावती का टिकट वितरण कैसे देगा भाजपा को झटका-
मेरठ सीट पर त्यागी समाज का उम्मीदवार
दलितों को बसपा का कोर वोटबैंक माना जाता है. मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर करीब 4 लाख दलित मतदाता हैं. इसके बावजूद मायावती ने इस सीट पर त्यागी वोटर्स वैसे तो महज 60-70 हजार ही हैं, लेकिन इसके जरिये बसपा ने एक बड़ा खेल कर दिया है. दरअसल सपा ने इस सीट पर दलित समुदाय की सुनीता वर्मा को टिकट दिया है, जो मुस्लिम-दलित गठजोड़ के जरिये नगर निगम की मेयर रह चुकी हैं. यदि मायावती पिछले दो चुनाव की तरह मुस्लिम कैंडीडेट उतारती तो इसका नुकसान सपा प्रत्याशी को होता, लेकिन अगड़ी जाति के हिंदू कैंडीडेट को उतारकर मायावती ने उन वोटर्स को विकल्प दे दिया है, जो भाजपा से नाराज हैं, लेकिन सपा के साथ नहीं जाना चाहते. इसक सीधा नुकसान भाजपा को होगा.
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बिजनौर सीट पर जाट को दिया है टिकट
बिजनौर सीट पर सपा ने दीपक सैनी को टिकट दिया है, जो भाजपा के साथ जुड़े सैनी वोट काटने के साथ ही मुस्लिम वोट को अपने साथ जोड़ेगा, जबकि मायावती ने यहां जाट उम्मीदवार विजेंदर सिंह पर दांव खेला है. साल 2019 में बसपा ने यहां गुर्जर नेता मलूक नागर को उतारकर जीत हासिल की थी. इसके बावजूद जाट नेता को टिकट देकर मायावती ने भाजपा-रालोद गठबंधन को झटका दिया है. दरअसल यह सीट भाजपा ने रालोद को दी है, लेकिन जयंत चौधरी ने यहां जाट के बजाय गुर्जर विधायक चंदन चौहान को उतारा है. यह कदम इस उम्मीद में उठाया गया था कि जाट रालोद को वोट देगा ही, लेकिन गुर्जर समुदाय का भी वोट मिलने से चंदन चौहान की जीत पक्की हो जाएगी. अब बसपा कैंडीडेट यहां रालोद के जाट वोट बैंक में ही सेंध लगाएगा, जिसका नुकसान होना तय माना जा रहा है.
आजमगढ़ सीट पर पलट दिया भाजपा का खेल
पूर्वी यूपी में आजमगढ़ को सपा की परंपरागत सीट माना जाता है, लेकिन अखिलेश यादव के इस सीट से इस्तीफा देने पर हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर उतरे भोजपुरी कलाकार निरहुआ ने यहां जीत हासिल की थी. निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को महज 4.5 हजार वोट के अंतर से हराया था. इसके लिए बसपा की तरफ से मुस्लिम नेता गुड्डू जमाली को टिकट देना कारण माना गया था, जिसे करीब ढाई लाख वोट मिले थे. इस बार भी यहां निरहुआ और धर्मेंद्र यादव ही आमने-सामने हैं, लेकिन मायावती ने इस सीट पर अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को उतारा है. इस सीट पर राजभर वोट बेहद कम हैं. इसके बावजूद यहां राजभर कैंडीडेट को उतारने का मकसद सीधेतौर पर सपा को लाभ पहुंचाना और भाजपा उम्मीदवार के वोट काटना माना जा रहा है.
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कैराना सीट पर ठाकुर को दिया है बसपा ने टिकट
पश्चिमी यूपी की कैराना सीट पर बसपा के टिकट पर मुस्लिम नेता जीतते रहे हैं. इसके बावजूद मायावती ने यहां से ठाकुर समुदाय के श्रीपाल राणा को टिकट दिया है. यहां ठाकुर वोटर किसी कैंडीडेट को जिताने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन चुनावी गणित में हेरफेर कर सकते हैं. राजपूत ठाकुर अब तक भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता रहा है, लेकिन इस बार सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर और मेरठ में ठाकुर समुदाय भाजपा से नाराज बताया जा रहा है. इसके चलते यहां ठाकुर उम्मीदवार उतरने से सपा के टिकट पर खड़ी हुईं इकरा हसन को लाभ होगा, जो स्थानीय विधायक चौधरी नाहिद हसन की छोटी बहन हैं. हसन परिवार का राजनीतिक रसूख स्थानीय स्तर पर बेहद अच्छा है. ऐसे में मायावती का ठाकुर उम्मीदवार उतारना उन्हें जीत दिला सकता है. भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी को ही टिकट दिया है, जो गुर्जर समुदाय से हैं. हालांकि भाजपा को रालोद का साथ मिलने के कारण जाट वोट मिलने की उम्मीद है. फिर भी मुकाबला मायावती ने रोमांचक बना दिया है.
मुजफ्फरनगर सीट पर प्रजापति को टिकट
मुजफ्फरनगर सीट पर भाजपा ने जाट नेता व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को तीसरी बार मौका दिया है, जबकि सपा ने उनके सामने कद्दावर जाट नेता हरेंद्र मलिक को उतारा है. ऐसे में बसपा ने यहां से दारा सिंह प्रजापति को उतारकर मामला रोमांचक बना दिया है. दरअसल रालोद का साथ मिलने से भाजपा जाट समुदाय का एकतरफा समर्थन मिलने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन सपा के हरेंद्र मलिक को उतारने से इस वोट बैंक में सेंध लग गई है. ठाकुर वोटर यहां भाजपा से नाराज हैं. ऐसे में वे सपा-बसपा की तरफ जा सकते हैं. मुजफ्फरनगर सीट पर बसपा का कोर दलित बैंक और सपा का मुस्लिम वोटर भी बड़ी संख्या में हैं. ऐसे में प्रजापति के जरिये बसपा ने भाजपा के ओबीसी वोटबैंक की अन्य नाराज जातियों सैनी आदि पर डोरे डालने की तैयारी की है. यदि बसपा ऐसा कर पाई तो इसका लाभ उसे होगा या सपा को, ये तो बाद में पता लगेगा, लेकिन भाजपा को नुकसान होना तय है.
घोसी में बसपा की नजर NDA के नोनिया वोटबैंक पर
भाजपा ने सपा छोड़कर आए पू्र्व विधायक दारा सिंह चौहान को इस कारण मंत्रिमंडल में जगह दी थी कि इसका लाभ घोसी लोकसभा सीट पर NDA उम्मीदवार को मिलेगा. घोसी सीट पर नोनिया समुदाय के करीब 2 लाख चौहान मतदाता हैं. यहां से भाजपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा ने अरविंद राजभर को टिकट दिया है, जबकि सपा ने राजीव राय को उतारा है. बसपा ने इस सीट पर पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को उतारकर नोनिया वोटबैंक में सेंध लगा दी है यानी सीधेतौर पर उसने NDA उम्मीदवार के वोट काटने की तैयारी की है. इसका लाभ सपा को होगा, जिसे इस सीट पर करीब 2.5 लाख मुस्लिम वोटर्स का भी साथ मिलेगा. मुस्लिम वोटर्स यहां पार्टी के बजाय हमेशा भाजपा के विपक्ष में मजबूत दिखने वाले उम्मीदवार को वोट करते हैं. ऐसे में मायावती का यह टिकट भी बसपा को जिताने के लिए कम और भाजपा को हराने के लिए ज्यादा दिख रहा है.
चंदौली सीट पर बसपा ने फिर उतार दिया मौर्य
चंदौली लोकसभा सीट पर यादव और मुस्लिम मजबूत वोटर हैं, जो केवल सपा को वोट करते हैं. सपा ने इस बार यहां पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को टिकट दिया है. 2 बार के विधायक वीरेंद्र सिंह राजपूत समुदाय से हैं, जो निश्चित तौर पर पूर्वी यूपी में भाजपा का मजबूत वोटबैंक कहलाने वाले राजपूत वोटर्स में थोड़ी सेंध लगाएंगे. भाजपा ने यहां महेंद्र नाथ पांडेय को ही मौका दिया है, जो साल 2014 में 1.5 लाख वोट से जीतने के बाद 2019 में बामुश्किल 13 हजार वोट से जीत सके थे. इस आंकड़े से माना जा सकता है कि महेंद्र नाथ पांडेय यहां मजबूत कैंडीडेट नहीं बचे हैं. ऐसे में मायावती ने सत्येंद्र मौर्य को उम्मीदवार बनाकर महेंद्र नाथ पांडेय की लड़ाई और कमजोर कर दी है. दरअसल इस सीट पर मौर्य वोटर्स खासी संख्या में हैं. प्रदेश की भाजपा सरकार में केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री हैं, लेकिन बसपा के यहां मौर्य उम्मीदवार उतारने से इस समुदाय के वोट उसे ही मिलेंगे. इसका सीधा लाभ सपा उम्मीदवार को मिलेगा.
बस्ती सीट पर भाजपा के ब्राह्मण वोटबैंक में सेंध
बस्ती से भाजपा ने दो बार के सांसद हरीश द्विवेदी को उतारा है. इस सीट पर ब्राह्मण वोटबैंक आमतौर पर भाजपा का कोर वोटर रहा है. साल 2019 में भी द्विवेदी ने इस सीट पर सपा के पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी को बसपा का समर्थन होने के बावजूद हराया था. इस बार भी सपा ने चौधरी को ही उतारा है, लेकिन असली खेल बसपा ने किया है. बसपा घोषित तौर पर सपा के साथ गठबंधन में नहीं है, लेकिन उसने यहां से दयाशंकर मिश्र को टिकट देकर भाजपा के ब्राह्मण वोटबैंक में सेंध लगा दी है. मिश्र भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष हैं, जो बागी होकर बसपा में शामिल हुए हैं. भाजपा छोड़कर आने के कारण माना जा रहा है कि वे भाजपा के वोटबैंक को ही तोड़ेंगे. इसका लाभ सपा को ही मिलने जा रहा है.
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