डीएनए एक्सप्लेनर
Bihar Lok Sabha Elections 2024: बिहार में जातीय गणित हमेशा से प्रभावी रहा है. वहां BJP, Congress, RJD और JDU जैसी बड़ी पार्टियों को LJPR, VIP, HAM, RLM जैसे छोटे-छोटे दल अपने जातीय गणित के बूते ही आंखें दिखाते रहे हैं.
Bihar Lok Sabha Elections 2024: पूरे देश में इस समय लोकसभा चुनाव की सरगर्मी शबाब पर है. लेकिन जो हलचल बिहार में दिखती है, वो कहीं और देखने को नहीं मिलेगी. बिहार में लोकसभा चुनाव पर इस कारण भी निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि वहां जातीय समीकरणों ने छोटे-बड़े सभी दलों में हलचल मचाई हुई है. भाजपा नेतृत्व वाले NDA के लिए यह सबसे अहम राज्यों में से एक हैं, जहां इस गठबंधन ने पिछले दो लोकसभा चुनाव के दौरान सफलता के नए झंडे गाड़े हैं. हर बार भाजपा की सीटें बढ़ती ही दिखाई दी हैं. इस बार फिर भाजपा ने सफलता का यही रथ जारी रहने का दावा किया है, क्योंकि चुनाव से पहले पार्टी ने बिहार में अपने सभी बिखरे सहयोगियों JDU, LJPR, HAM और RLM को साथ जोड़कर जातीय समीकरणों का गणित तकरीबन अपने पक्ष में कर लिया है. हालांकि बिहार की राजनीति के पुराने महारथी लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के लंबी बीमारी से उबरकर फिर से एक्टिव दिखने के कारण चुनाव रोमांचक हो गया है.
जातीय समीकरणों की अहमियत ऐसे समझिए
बिहार में साल 2014 में भाजपा नेतृ्त्व वाले NDA ने 40 में से 31 सीट जीती थीं, जबकि 2019 में उसकी सीट बढ़कर 39 हो गई थीं. एकतरह से NDA ने 2019 में विपक्षी दलों को पूरी तरह चित कर दिया था. NDA की इस जीत का कारण उसकी सोशल इंजीनियरिंग यानी छोटे क्षेत्रीय दलों को जोड़कर जातीय समीकरण अपने पक्ष में कर लेना बनता रहा है. बिहार में जातीय समीकरण कितने हावी हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2009 से 40 में से 17 सीट पर पार्टी कोई भी जीती हो, लेकिन जीतने वाला उम्मीदवार एक ही जाति का रहा है. इसका मतलब है कि जिस सीट पर 2009 में जिस जाति का उम्मीदवार जीता था, साल 2014 और फिर 2019 में भी उसी जाति का उम्मीदवार जीता है.
सवर्ण जातियों के खाते में रही हैं 8 सीट
40 में से जातीय दबदबे वाली 17 सीट में 8 सीटें सवर्ण जातियों कायस्थ, राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मणों के खाते में गई हैं. पिछले तीनों चुनाव में महाराजगंज, वैशाली, औरंगाबाद और आरा लोकसभा सीटों पर राजपूत उम्मीदवार को ही जीत मिली है.
बिहार का चित्तौड़गढ़ रही है औरंगाबाद सीट
बिहार का चित्तौड़गढ़ कहलाने वाली औरंगाबाद सीट पर हमेशा ही राजपूत समुदाय का दबदबा रहा है. यहां से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजपूतों के दिग्गज नेता रहे सत्येंद्र नारायण सिंह 1952, 1971, 1977, 1980 और 1984 में जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. लोकसभा चुनाव 1999 में सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पुत्रवधू श्यामा सिन्हा और 2004 में दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार इस सीट पर जीते. साल 2009 से यह सीट सुशील सिंह जीतते आ रहे हैं.
भूमिहारों का गढ़ रहे हैं नवादा-मुंगेर
पिछले 3 दशक से नवादा और मुंगेर लोकसभा सीटों पर भूमिहार समुदाय का दबदबा रहा है. 2009 में यहा भाजपा के टिकट पर भोला सिंह जीते थे तो 2014 में गिरिराज सिंह ने यहां से जीत हासिल की. साल 2019 में यह सीट राम विलास पासवान की LJP को दी गई तो उन्होंने चंदन सिंह को उतारा, जिन्होंने जीत हासिल की. इस बार NDA ने इस सीट पर भाजपा के भूमिहार नेता विवेक ठाकुर पर दांव खेला है.
मुंगेर सीट पर 2009 में JDU के उपाध्यक्ष रहे ललन सिंह ने जीत हासिल की थी तो 2014 में LJP की वीणा देवी ने यहां NDA के टिकट पर उतरकर जीत का सेहरा अपने सिर बांधा. 2019 में फिर से ललन सिंह यहां से विजयी हुए थे. इस बार भी ललन सिंह NDA कैंडीडेट के तौर पर मैदान में मौजूद हैं.
दरभंगा में ब्राह्मण, तो पटना साहिब में कायस्थ भारी
दरभंगा सीट पर ब्राह्मण वोटर्स भारी रहे हैं. साल 2009 और 2014 में पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने यहां ब्राह्मण उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की तो साल 2019 में भाजपा नेता गोपालजी ठाकुर यहां जीतने वाले ब्राह्मण नेता रहे. NDA ने इस बार भी गोपालजी ठाकुर पर ही दांव खेला है.
पटना साहिब लोकसभा सीट पर कायस्थों का दबदबा रहा है. यहां 2009 और 2014 में बॉलीवुड अभिनेता से राजनेता बने शत्रु्घ्न सिन्हा ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की थी तो 2019 में पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद इस सीट पर विजेता बने थे. रविशंकर प्रसाद इस बार भी चुनावी मैदान में हैं.
बिहार के सबसे बड़े वोट बैंक यादवों के खाते में तीन सीट
बिहार में साल 2009 से एक ही जाति के दबदबे वाली 17 सीटों में तीन सीटों मधेपुरा, मधुबनी और पाटलिपुत्र पर यादव समुदाय का उम्मीदवार ही जीतता रहा है. यादव समुदाय को हालिया जातीय जनगणना में बिहार का सबसे बड़ा ओबीसी ग्रुप माना गया है. बिहार की जनसंख्या में यादवों की करीब 14% हिस्सेदारी पाई गई है. मधेपुरा सीट पर 2009 में JDU के शरद यादव जीते थे तो 2014 में बाहुबली पप्पू यादव ने RJD के टिकट पर जीत हासिल की थी. हालांकि बाद में पप्पू JDU में ही चले गए थे. साल 2019 में JDU के दिनेशचंद्र यादव ने यहां से जीत हासिल की थी. मधुबनी सीट पर 2009 और 2014 में भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने जीत हासिल की थी तो 2019 में उनके बेटे अशोक यादव भाजपा के ही टिकट पर जीते थे. इस बार भी भाजपा ने अशोक पर ही दांव खेला है. पाटलिपुत्र सीट सबसे ज्यादा चर्चित सीट रही है, जिस पर रंजन यादव ने JDU के टिकट पर 2009 में लालू प्रसाद यादव जैसे दिग्गज नेता को मात दी थी. साल 2014 और 2019 में लगातार दो बार इस सीट पर भाजपा के रामकृपाल यादव ने लालू की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती को हराया है.
बाकी सीटों के रहे हैं ऐसे समीकरण
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