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भारत
Hamas Terror Attack: हमास के आतंकी हमले की भारत ने निंदा की है लेकिन देश में ही कुछ लोग आतंकी संगठन का समर्थन कर रहे हैं. जानें क्या है ऐसे लोगों की सहानुभूति के पीछे का तर्क और इजरायल को लेकर क्या तथ्य हैं.
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डीएनए हिंदी: एक वक्त था कि जब भारत आतंकी हमलों से दहल जाता था. पिछले कुछ वर्षों से देश में शांति है. एक भारतीय होने की वजह से हम आतंकी हमलों का दर्द समझ सकते हैं। हम इजरायल पर हुए हमास के आतंकी हमले का दर्द भी महसूस कर सकते हैं. अफसोस की बात ये है कि हमारे देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो आतंकी संगठन हमास के पक्ष में खड़े हैं. कुछ लोगों का हमास से समर्थन के पीछे तर्क है कि इजरायल ने जबरन फिलिस्तीन पर कब्जा कर रखा है और लगातार हमले करता रहता है. जानें इन तर्कों के पीछे क्या सच है और ऐतिहासिक तौर पर इजरायल ने अब तक कितनी बार हमले किए हैं और कब अपनी आत्मरक्षा में कदम उठाया है.
कुछ लोग आतंकी संगठन हमास के समर्थन को न्यायसंगत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि हमास ने जो किया वो इसलिए सही है, क्योंकि इजरायल फिलिस्तीनियों पर जुल्म करता है. वो 70 सालों के इतिहास का हवाला भी देते हैं. ये वही लोग हैं जो हमास के आतंकियों की हिंसा का भी समर्थन कर रहे हैं. ये लोग आतंकी हमले में मरने वाले लोगों की गिनती का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे हैं. फिलिस्तीन और इजरायल में कितने लोग मारे गए, इसकी गिनती करके फिलिस्तीन की पक्ष में खड़े हैं.
राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने किया है हमाल का समर्थन
देखा जाए तो किसी भी रूप में किसी आंतकी हमले का समर्थन नहीं होना चाहिए. लेकिन हमारे देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में एक रैली निकाली. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के करीब 400 छात्रों ने हाथों में प्ले कार्ड लेकर फिलिस्तीन के समर्थन में नारेबाजी की. उन्होंने इसके लिए इस्लामिक नारे भी लगाए. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इन छात्रों ने जो इस्लामिक नारे लगाए ठीक वैसे ही नारे हमास के आतंकियों ने बर्बरता के दौरान लगाए थे.
यह समझना जरूरी है कि फिलहाल फिलिस्तीन का समर्थन करने का मतलब, हमास के हमले का समर्थन करना है. हालांकि, इस मामले में पुलिस ने 4 छात्रों पर FIR दर्ज कर ली है.हमारे देश के नेता भी, हमास के समर्थन के लिए फिलिस्तीन के समर्थन वाला रूट अपना रहे हैं. किसी ने भी इस्लामिक आतंकी संगठन हमास, के बर्बर हमले का विरोध नहीं किया. किसी ने भी महिलाओं पर हुए जुल्म का जिक्र नहीं किया. हालांकि वो जानते हैं कि इस जुल्म के पीछे आतंकी संगठन हमास ही था.
हमास हमले का समर्थन करने वालों के ये तथ्य देखना चाहिए
हमास के आतंकी हमले को न्यायसंगत बताने के लिए, इजरायल और फिलिस्तीन के इतिहास का जिक्र किया जा रहा है. जो लोग भारत के ऐतिहासिक तथ्यों को नकारते हुए, मुगल काल में मंदिरों को ध्वस्त किए जाने की घटनाएं नकारते हैं, वही लोग आज फिलिस्तीन-इजरायल के मामले में 70 साल के इतिहास की बात करते हैं. ऐसे लोगों को हम इजरायल और यहूदियों से जुड़ा असली इतिहास बताना चाहते हैं.
यरुशलम 3 धर्मों के लिए है पवित्र शहर
इस्लाम, ईसाई और यहूदी इन तीनों ही धर्मों के लिए यरुशलम एक पवित्र शहर है. जिस जमीन को अरब देश फिलिस्तीन कहते हैं, उसे ही यहूदी समुदाय इजरायल कहता है. हालांकि, सबसे पहले इस ज़मीन पर यहूदी समुदाय रहता था. यहूदी मान्यता के अनुसार आज से 3 हजार वर्ष पहले यहूदियों ने यरुशलम में अपना पहला मंदिर सोलोमन टेंपल बनाया था. ये वही जगह है जहां आज के वक्त में 'अल-अक्सा मस्जिद' मौजूद है.
ईसाई और इस्लाम ने बदली यहूदियों की स्थिति
लगभग 2 हजार वर्ष पहले ईसाई धर्म अस्तित्व में आया और धीरे-धीरे पूरा इजरायल रोमन साम्राज्य के अधीन हो गया. ईसामसीह के जन्म के 135 वर्ष बाद रोमन शासक हाद्रियन ने इजरायल पर हमला किया था और यहूदियों को वहां से निकाल दिया. इसके लगभग 500 वर्ष बाद अरब में इस्लाम अस्तित्व में आ गया था. इसके अगले 50 वर्षों के अंदर पूरे इजरायल पर 'उमय्यद ख़िलाफ़त' का शासन आ गया. फिर 16वीं से 20वीं शताब्दी तक ये क्षेत्र ओस्मानिया सल्तनत के अधीन रहा.
इजरायल वापसी के लिए था जायनिस्ट मूवमेंट
वर्ष 1914 में पहले विश्वयुद्ध में तुर्की से हार गया था, जिसके बाद ये पूरा इलाका ब्रिटेन के प्रभाव में आ गया था. वर्ष 1930 के दशक में जब जर्मनी में हिटलर और नाजी पार्टी सत्ता में आई, तो जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में यहूदियों का दमन चरम पर पहुंच गया था. इस दमन से बचने के लिए यूरोप के हजारों यहूदियों ने वापस इजरायल का रुख किया. यहूदियों को लगा कि जब तक उनका खुद का देश नहीं होगा तब तक उनका दमन चलता रहेगा. इसलिए उन्होंने अपनी ऐतिहासिक धरती इजरायल आ गए. यहूदियों की इस वापसी को ज़ायनिस्ट मूवमेंट कहा जाता है.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 6 लाख यहूदियों की हत्या
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजियों ने यूरोप में 6 लाख यहूदियों का कल्तेआम किया था. जिससे पूरी दुनिया में यहूदियों के लिए सहानुभूति पैदा हुई. दुनिया के कई देश यहूदियों को अलग देश का समर्थन करने लगे.
- दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में एक नया प्रस्ताव रखा. जिसके तहत मिडिल ईस्ट की इस धरती को दो अलग देशों में बांटने की बात कही.
- इसमें मुस्लिमों के लिए फिलिस्तीन और यहूदियों के लिए इजरायल बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया.
- ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित भी हो गया जिसके साथ ही वर्ष 1947 में इजरायल अस्तित्व में आ गया.
- यहूदियों ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब देशों ने इसे मानने से इनकार कर दिया.
-उन्होंने इजरायल के बनने के कुछ महीने बाद ही उस पर हमला कर दिया था.
-वर्ष 1948 से 1949 तक चले इस युद्ध में इजरायल ने सभी अरब देशों को हरा दिया. इसके बाद इजरायल ने कुछ और जमीन पर कब्जा कर लिया.
- इसके बाद 1967 और 1973 में अरब देशों ने दो हमले और किए थे लेकिन इन युद्धों में भी जीत इजरायल की ही हुई.
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इजरायल ने कभी किसी अरब देश पर हमला नहीं किया, बल्कि इन देशों ने ही उस पर पहले हमला किया. हमलों के जवाब में इजरायल ने जवाबी कार्रवाई की. फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास ने भी इजरायल पर पहले हमला किया है. अब इजरायल इस हमले का घातक जवाब दे रहा है.